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Stories related to महामूर्ख हास्य कवि सम्मेलन

Mohan Sardarshahari

# कवि का कारवां

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White यह कुछ ऐसा ही ‌है 
जैसे घी तोलते 
घी पी लेते हैं हाथ
साथ रहते - रहते
बन जाती है बात। 

जैसे पतझड़ में अनयास 
पतों की बरसात
बरसात में भीगकर
आती गर्माहट की बात। 

जैसे अंधेरे में रहते
अनपढ़ के उद्गार
अक्षर के प्रकाश से 
खोल देते नये द्वार।।

हां यह कुछ ऐसा ही ‌है 
जैसे पढ़ते - पढ़ते कोई किताब
याद आती लेखक की बात
बात से ही निकलती बात
पूछ बैठते खुद से ही औकात। 

यह कुछ ऐसा ही ‌है 
जब पढ़ते हैं हम कोई तहरीर 
खुद को भी देखते हैं उस जहां 
करने लगते हैं खुद से बातें 
शायद यही है कवि का कारवां।।

©Mohan Sardarshahari # कवि का कारवां

Ramji Tiwari

Unsplash 
विधा-दोहा छंद 

नेट प्रमाण प्रदान कर, करते हैं सम्मान।
सहयोग राशि के रूप, लेते कवि से दान।।

जो देकर पैसा मिला,वह कैसा सम्मान।
जो धन देकर मान ले, नहीं है कवि महान।।

गाना आता है नहीं, करते कविता पाठ।
जो चोरी कविता पढ़ें, उनके हैं अब ठाठ।।

रचना पढ़ते हैं नहीं, देते सुन्दर राय।
गैरों की रचना कभी, तनिक नहीं मन भाय।।

करे सृजन अवहेलना,कैसा रचनाकार।
सच्चे लेखक के हृदय,बहे प्रेम रस धार।।

      स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
                            उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari #दोहा
#कवि 
#poem 
#Friend 
#साहित्य

काली स्याही डिटेक्टिव

कवि

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©BABA कवि

Manojkumar Srivastava

#हास्य और व्यंग्य# हिंदी चुटकुले

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हास्य-व्यंग्य

©Manojkumar Srivastava #हास्य और व्यंग्य# हिंदी चुटकुले

वरुण तिवारी

#snow हास्य रचना

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सर्द रातों की हवाओं ने सताया इस तरह।
मैं ठिठुरता रह गया बिस्तर कंटीले हो गए॥

बर्फ से कुछ बात  करती  चल रही थी ये  हवाएं,
फिर अचानक सायं से कम्बल के अंदर आ गई।
पांव  को   कितना   सिकोड़ूं  पांव  बाहर ही रहा,
अवसर मिला ये फेफड़ों से जाने' कब टकरा गई॥

खाँसियां  रुकती  नहीं  सब  अंग  ढीले  हो  गए।

कपकपाती  ठंड  में  फैशन  हमारा था चरम पर
कान  के  दरवाजों  से  ये  वायु  घुसती  ही  गई।
सनसनाती घुस चुकी थी कुछ हवाएं इस बदन में
मेरे  तन  की  हड्डियां  हर  पल अकड़ती ही गई॥

पूस  की   इस   रात  सब  मंजर  रंगीले  हो  गए।

कर्ण में धारण किए श्रुति यंत्र को घर की तरफ,
ठंड  से  छुपते  छुपाते  गीत  सुनते  जा  रहे  थे।
पेट  में   मेरे    अचानक   दर्द  ने  आहट  दिया,
साथ ही संगीत सारे सुर में सहसा बज उठे थे॥

अंततः  चुपके  से'  अंतर्वस्त्र   पीले   हो  गए॥

©वरुण तिवारी #snow हास्य रचना

Kavi Himanshu Pandey

कवि का दर्द.. #beingoriginal Hindi

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दर्द को सहना पल पल दीवानों का काम है, कमजोरों का नहीं,
शब्दों से धरा में कंपन कराना कवियों का काम है, अकवियों का नहीं! 
.... Er. Himanshu Pandey

©Kavi Himanshu Pandey कवि का दर्द.. #beingoriginal #NojotoHindi

Vilas Bhoir

#GreenLeaves मराठी हास्य विनोदी कविता राजकीय टोलेबाजी

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green-leaves बंदिस्त या खोक्यामध्ये तु दिलेली आठवण 
अजुनही जपून ठेवली आहे...

©Vilas Bhoir #GreenLeaves  मराठी हास्य विनोदी कविता राजकीय टोलेबाजी

Sayah~

comedystory कविता हास्य इश्क Shayari

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Shailendra Anand

भक्ति सागर कवि शैलेंद्र आनंद

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रचना दिनांक। 4,, दिसंबर,,2024,,
वार   बुधवार 
समय सुबह  पांच  बजे
्््भाव से काम कर रहे वह आज चेहरे पर मुस्कान लिये अधरो की मुस्कान बने,, 
यही मेरी स्वरचित कविता भाव में स्थित सोच पर जिंदगी में,
 एक स्वर पुकार नाद प्रेम शब्द ही आनंद है ्््
््निज विचार ््
्भावचित्र ्
भावचित्र में सनातन वैदिक विचारधारा शाश्वत सत्यता पर
ख्यालात अपने विचार व्यक्त आस्था प्रकट कर सकते हैं ्
वर्तमान समय में जिस प्रकार निराकार साकार लोक में भ़मण करते हुए
ईश्वर रुप में भारतीय नागरिक मतदाता होने पर एक दिलचस्प बात यह है,
देश में अवाम में खुशहाली आती है तो देश आगे बढ़ेगा
और आज हमारे देश में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा आयोजित सेवा में समर्पित करिष्यामि नमन वन्दंनीय है,,
्््भावचित्र है मां गौमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित कर सकल 
सनातन विचार सच में एक जीवंत प्रयास करें ,,
यही भाव से मेरी स्वरचित रचना में मालवी भाषा में, कुछ लिखने का प्रयास किया गया है ्शीर्षक ्
मनुज जणम जोणि में धरम करम का रोणा में,
रौवे जींव जगत का‌ मैला ढोने लाग्या रै््।।1।।
।म्हणे मनुज जणम पायोजी मैंने,,
थाके सेवाणी गौवंश गौसेवा में,
 सजल नयन अश्रुजल से,नहलायो तन मन को।।2।।
चौरासी लख जणम जोणि में,,
पण मण धण में जींव म्हारो असो लांगे।।3।।
माणो गौरक्षधाम प्यारों श्याम सुंदर णे ,
माखण मिश्री की मटकी फोड़ी,
ग्वाल धेनूबाल संग वन में रोटीयां से ,
माखण सब कुछ,बांटचुटकर खावी जावे।।4।।
तण मण जोगण बरसाणा में,,
लागी लगण राधिका श्याम में।।5।।
मण धण में जींव म्हारो घट में,,
लुफ्त है प्राण असो प्यारो लांगे रै।।6।।
मण आंन्दणो जाणो माणो,,
गौरक्षधामणो में पंछी बणके,
रचिया बसिया चुगणा लाग्या।।7।।
प्रेम भक्ति का दाणा चुगिणे ,,
चाल्या अपणा अपणा घोंसला में।।8।।

््कवि शैलेंद्र आनंद ्
4, दिसंबर 2024,,

©Shailendra Anand  भक्ति सागर
                  कवि शैलेंद्र आनंद

Shailendra Anand

भक्ति सागर कवि शैलेंद्र आनंद

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रचना दिनांक 3 दिसम्बर 2024
वार  मंगलवार
समय सुबह दस बजे
््भाव रस से भावचित्र ््
्निज विचार ्
्््छाया चित्र में दिखाया गया जिसे हम इस नश्वर शरीर में
 प्राण वायु और पंचतत्व से बना हुआ प्राणतत्व में
माया मोह में फंसे हुए जीवन में कर्मलीला कर्मशील नायक बम्हदेव वरदानित 
भाव है क्या देव असुर, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, मनुज देह है प्राण गंवाए है मारिच असूर सर्वग्य भाव में निश्चल सत्य अदृश्य शक्ति दिव्यता कोटीश्यं प्रमाणितं
 ब़म्हकर्मसाक्ष्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम है ््
्््
,,निज मानस स्वरचित है भावचित्र स्वज्ञान है,,
़््
कंचन मृग मारिच असूर,मन हरण,
सियाजानकी रघुराज लीला करत ,मारिचप्रान  अधार करंहि,,
 लखन राम राम उच्चारण ही हरण,शरण, 
दासहनुं््यमदूत शोकविनाशमं काल है,।।
छल माया मोह ््मद सब धर्मों में,
भेद नहीं भाव नहीं है,
सब कर्म भूमि पर जातक जींवजीवाश्म प्राणी में ,
प्राण वायु सब कुछ एक है,,
््कवि््शैलेन्द़ आनंद ््
3,, दिसंबर 2024,,

©Shailendra Anand  भक्ति सागर
         कवि शैलेंद्र आनंद
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