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Stories related to नगरीय बस्ती क्या है

हिमांशु Kulshreshtha

क्या रिश्ता है..

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नहीं जानता क्या रिश्ता है
मेरी रूह से तुम्हारी रूह का
जो भी है ये, मगर खूब है
ये अधूरा सा रिश्ता हमारा
तन के रिश्ते,
ना थे पहचान कभी
मेरे इश्क की….
रूहों के मिलन से से होगा नायाब
ये अधूरा सा रिश्ता हमारा

©हिमांशु Kulshreshtha क्या रिश्ता है..

RUPESH Kr SINHA

क्या यह सही नहीं है

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Ghumnam Gautam

#ghumnamgautam #तिनका #,बस्ती

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ये बस्ती आँखवालों की है लेकिन
है ऐसा कौन जो अंधा नहीं है?

 न जाना चाहिए दरिया में उनको
कि जिनके हाथ में तिनका नहीं है

©Ghumnam Gautam #ghumnamgautam 
#तिनका 
#,बस्ती

Parasram Arora

आखिर ये धर्म है क्या?

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White धर्म!

आखिर ये धर्म है क्या? 
 
मैंने तो  सिर्फ जीवन को ही जाना है 
जीवन के अलावा 
मैंने किसी को नहीं 
जाना  है.

और मेरी दृष्टि मे जीवन 
 का अर्थ है.
खेत   हल कुवा और  
लहल्हाती फसल 
जीवन का अर्थ है  पत्नी 
बच्चे और सुखद सफल 
दाम्पत्य

©Parasram Arora आखिर ये धर्म है क्या?

Pradip kumar

सुना है आग लग गई बेवफाओं की बस्ती में

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Matangi Upadhyay( चिंका )

प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay

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प्रेम क्या है..?

मन की व्यथा जब कहनी ना पड़े, 
तन की पीड़ा जब बतानी ना पड़े, 
आँसू गिरे तो किसी की हथेली नर्म कर दे, 
निगाहें उठे तो गुस्सा शांत कर दे, 
मन जब उस मुकाम पर किसी के
 कंधे पर सर रख कर मुस्कुराए
 और आँखें भीग जाए, 
वो एहसास वो मुकाम प्रेम है..!

©Matangi Upadhyay( चिंका ) प्रेम क्या है??
#matangiupadhyay #Nojoto

katha Darshan

क्या बदलता है ! Katha Darshan

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White धुआं लकड़ी का हो या 
यादों का आँखे तो जलती ही हैं

©katha Darshan #Nojoto क्या बदलता है ! Katha Darshan

Manish।।।।।

#mothernature जिन्दगी भीड़ है क्या???

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katha Darshan

क्या बदलना है ! Katha Darshan

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White कौन
         
झाँक रहे है इधर उधर सब।
अपने अंदर झांकें  कौन ?

 ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ में कमियां ।
अपने मन में ताके कौन ?

दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते ।
खुद को आज सुधारे कौन ?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।
खुद पर आज विचारे कौन ?

हम सुधरें तो जग सुधरेगा
यह सीधी बात स्वीकारे कौन?

©katha Darshan #Nojoto क्या बदलना है ! Katha Darshan

नवनीत ठाकुर

बस्ती हो और कोई मकान न हो#

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White 

बस्ती हो और मकान न हो।
महफिल हो और शराब न हो।

तेरे हुस्न की चर्चा रहे हर लम्हा,
फिर भी तेरा दीदार न हो।

तेरे हुस्न का जादू, जैसे नसीब का खेल,
वरना तेरे बिना महफिल भी, सुनसान हो।
तू हो पास, तो हर दिल में बहार हो,
तू जैसे रेत पर खड़ी, ख्वाबों की दीवार हो।

हर ग़ज़ल में जिक्र तेरा,
तेरे बिना हर लफ्ज़ बेकार हो।

तेरी यादों का नशा, हर लम्हा ताज़गी बक्शे,
तेरे बिना कोई जश्न, जैसे बंजर कोई बाग़ हो।
तू ही राहत, तू ही सुकून,
तेरे बिना अधूरा जैसे हर ख्वाब हो।

महफिल हो और शराब न हो,
तेरा चर्चा रहे  
बस तेरा दीदार न हो।

©Navneet Thakur बस्ती हो और कोई मकान न हो#
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