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Shravan Goud
महानवमी और आयुध पूजा की शुभकामनाएं। माता रानी हम सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखना। जय माताजी 🌹🙏 महानवमी और आयुध पूजा की शुभकामनाएं। माता रानी हम सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखना। जय माताजी 🌹🙏
SmArT-KinG-Gurudayal
मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ पर, न जानें, बात क्या है ! इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है, फूल के आगे वही असहाय हो जाता , शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता रामधारी सिंह 'दिनकर' मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ प
Divyanshu Pathak
तेरी शोख़ अदाओं से ये दिल दर्पण बन जाता है जब तुम नजऱ नहीं आती तो मन तर्पण कर जाता है ! देख तेरी सुथरी सीरत से मन जोगी बन जाता है जग विसराकर भोला "पंछी" सब अर्पण कर जाता है ! Good morning ji ☕☕🍨🍨💕💕😊🍧🍧💕👴☕☕☕☕☕ तेरे मेरे बीच सूत का एक प्यारा सा बंधन है तू तेरी जाने ना जाने पर एक न्यारा सा चंदन है ! आकर गले लगाले मुझक
Divyanshu Pathak
मुक़द्दर मुक़द्दस हो न हो दिल में मोहब्बत समंदर सी है। Good morning ji ☕☕🍨🍨💕💕😊🍧🍧💕👴☕☕☕☕☕ तेरे मेरे बीच सूत का एक प्यारा सा बंधन है तू तेरी जाने ना जाने पर एक न्यारा सा चंदन है ! आकर गले लगाले मुझक
Ravendra
Ashay Choudhary
कारीगर मैने रास्ते में एक दुकान को देखा उस दुकान पर बिकते समान को देखा एक पिंजरा देखा ठिठका और सोचा... शेष रचना अनुशीर्षक में पढ़ें। कारीगर मैने रास्ते में एक दुकान को देखा उस दुकान पर बिकते समान को देखा एक पिंजरा देखा ठिठका और सोचा... ओ कारीगर, उस पंछी के पर कतरने ये पिं
Ravendra
Ravendra
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥5॥ वह महल श्री राम के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती॥वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज हनुमान हर्षित हुए॥ 5॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी और विभीषण का संवाद राक्षसों की नगरी में, सत-पुरुष को देखकर, हनुमानजी को आश्चर्य हुआ लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥ मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1॥ और उन्हीने सोचा की यह लंका नगरी तो राक्षसोंके कुलकी निवासभूमी है, राक्षसो के समूह का निवास स्थान है। यहाँ सत्पुरुषो के रहने का क्या काम॥ इस तरह हनुमानजी मन ही मन में विचार करने लगे।इतने में विभीषण की आँख खुली॥ हनुमानजी, विभीषण को, राम नाम का जप करते देखते है राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥ एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥ और जागते ही उन्होंने – राम! राम! – ऐसा स्मरण किया,तो हनुमानजीने जाना की यह कोई सत्पुरुष है।इस बात से हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ॥ सत्पुरुषों से क्यों पहचान करनी चाहिये? हनुमानजीने विचार किया कि इनसे जरूर पहचान करनी चहिये, क्योंकि सत्पुरुषोके हाथ कभी कार्यकी हानि नहीं होती,बल्कि लाभ ही होता है॥ हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करते है बिप्र रूप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥ करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥3॥ फिर हनुमानजीने ब्राम्हणका रूप धरकर वचन सुनाया,तो वह वचन सुनतेही विभीषण उठकर उनके पास आया॥और प्रणाम करके कुशल पूँछा कि, हे ब्राह्मणदेव!, जो आपकी बात हो सो हमें समझाकर कहो(अपनी कथा समझाकर कहिए)॥ विभीषण हनुमानजी से उनके बारे में पूछते है की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई॥ की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी॥4॥ विभीषणने कहा कि, क्या आप हरिभक्तो मे से कोई है?क्योंकि मेरे मनमें आपकी ओर बहुत प्रीती बढती जाती है,आपको देखकर मेरे हृदय मे अत्यंत प्रेम उमड़ रहा है॥अथवा मुझको बडभागी करने के वास्ते, भक्तोपर अनुराग रखनेवाले आप साक्षात दिनबन्धु ही तो नहीं पधार गए हो॥(अथवा क्या आप दीनो से प्रेम करने वाले स्वयं श्री राम जी ही है,जो मुझे बड़भागी बनाने, घर-बैठे दर्शन देकर कृतार्थ करने आए है?) विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 210 से 220 नाम 210 गुरुतमः ब्रह्मा आदिको भी ब्रह्मविद्या प्रदान करने वाले 211 धाम परम ज्योति 212 सत्यः सत्य-भाषणरूप, धर्मस्वरूप 213 सत्यपराक्रमः जिनका पराक्रम सत्य अर्थात अमोघ है 214 निमिषः जिनके नेत्र योगनिद्रा में मूंदे हुए हैं 215 अनिमिषः मत्स्यरूप या आत्मारूप 216 स्रग्वी वैजयंती माला धारण करने वाले 217 वाचस्पतिः-उदारधीः विद्या के पति,सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाले 218 अग्रणीः मुमुक्षुओं को उत्तम पद पर ले जाने वाले 219 ग्रामणीः भूतग्राम का नेतृत्व करने वाले 220 श्रीमान् जिनकी श्री अर्थात कांति सबसे बढ़ी चढ़ी है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देख