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Avinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी है जिंदगी जरा मुस्करा दे दौड़ तेरे मन की खत्म ना होगी ईश्क ही सब मर्ज की दवा है जरा अपने को अच्छे से समझा ले बेहतर जिंदगी ,हर हाल में खुश रहने में है दौड तेरी कभी खत्म नही होगी सजे है मेले आकर्षण के जग में इन मे रमने से,तृप्ति कभी पुरी नही होगी छोड़ दिये तूने अंहकार में अपने रिश्ते गरीबी अमीरी अवस्थाओं के अधीन है धन लोलुपता भय और बीमारी है इससे हक किसी का छीनता जरूर है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sad_quotes धन लोलुपता भय और बीमारी है #nojotohindi
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