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Sneh Lata Pandey 'sneh'
ले वसंत मधु आ गया, हुआ मुखर मृदु प्रीत। हृदय रागिनी छेड़ती, मधुर मिलन के गीत।। गीत राग के गा रहा, मादक भ्रमर वसंत। प्रिया विरहिणी सोचती,कब आयेंगे कंत।। शीत चली गति मंद ले, चला शिशिर भी संग। इठलातये यौवन भार से, आया वसंत ले रंग। वसुधा ओढ़े धूप को, मुस्काये ले ताप। चार माह की त्रासदी, शीत उडी बन भाप।। हरित चूनरी ओढ़ के, रंगीले जड़ तार। पिय वसंत पहना रहे, पुष्प गुच्छ गल हार।। कोयल राग सुना रही, मुखर नाचता मोर। वायु आकुला बह रही,करे सन सन सन शोर। पाती लिखती प्रियतमा, कहूँ पिया करजोर। आ जाओ मधु मास में, द्रवित नयन के कोर।। नहि इच्छा है हार की, नहि इच्छा श्रृंगार। पिया चले आओ लिये , इस वसंत में प्यार। ©Sneh Lata Pandey 'sneh' #वसंत का राग
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Dr.asha Singh sikarwar
बसंत ! तुम लौट जाओ अपने गाँव वहाँ खेत-खलिहान बयार-दुलार यहाँ क्या रखा शहर में टोकरी भर फूल बरौनीभर धूप विष गंध में घुटती साँसे गाँव में माँ है जिसकी आखों से तु झरता है निश-दिन और 'वो' भी जिसकी कोर से सटकर बैठा 'तु ' डॉ आशासिंह सिकरवार अहमदाबाद गुजरात 10.2.19 #NojotoQuote वसंत #वसंत वसंत #best #hindi #poetry
Ek villain
जनवरी का महीना कभी-कभी गुजरा हुआ में शीत लहर के जो रहे थे सौभाग्य से सामने वाले फ्लैट में कोई कुत्ता नहीं रहता पर दुर्भाग्य तो उसको लेट में कुत्ते से भी बड़ा एक आदमी रहता है बूढ़ा बूढ़ा गलत रहता है मैंने बालकनी से पसंद का जायजा लेना चाहता हूं उसकी बूढ़े की आवाज सुनकर मैं मन कुंठित हो उठता हूं मैं बालकनी के द्वार बंद कर घर के भीतर आ गया किचन में पत्नी बड़ा वाला है 3:00 हॉस्पिटल बसंत कब आएगी अब सारा काम पड़ा है कभी-कभी तो रुला देती है वह संत ने इस वतन के ख्यालों में खोया पूछ रहा हूं कि मुझसे कुछ कह रही हो क्या मैं अपने स्वभाव में बसते कहती है मैं अभी वसंत की छुट्टी कर ही रहूंगी देखो तो बना 11:15 बज गए लेकिन अभी तक पसंद नहीं आया थोड़ा धीरज रखो पसंद तो आ ही रहा है बसंत भी आ जाएगा मुझे प्राणों से भी पसंद की प्रतीक्षा और पत्नी को मुझसे भी पसंद की इंतजार बसंत के कारण कोई काम नहीं रुक रहा है यदि पसंद नहीं आई तो घर में झाड़ू नहीं लगेगी ना बर्तन साफ होंगे पत्नी आदेश देती है देखो बसंती देख तो नहीं रही है मैं अपनी दृष्टि का विस्तार को चारों ओर खुला छोड़ देती हूं तभी मैं क्या देखता हूं वसंत आ रही है मुझे प्रतीक्षा बसंत की है आ रही है बसंती सच्चाई है सोचिए यदि और बसंती तो मुझे घर के बर्तन साफ करने पड़ते ©Ek villain #वसंत या बसंती का आना #promiseday
r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla
मुझे पता है रात का ढल जाना तय है। सुबह का आना तय है। उलझन, परेशानी, थोड़ी सी बेचैनी थोड़ी सी हैरानी, डर कुछ खोने का, शुन्य सी ये जो दशा है। बस कुछ पल का है, बस कुछ पल का है।। शून्य मे एक और एक मे अनेक शुन्य जुड़ जाना तय है। हवा अभी खुद के विरुद्ध है तो क्या एक दिन इसका सुर मे ताल मिलाना तय है।। इन चुनौतियों का हार जाना तय है। मुझे पता है, शायद आज नही, कल नही हो सकता है परसो भी नही,, लेकिन एक ना एक दिन मेरा जीत जाना तय है।। पतझड़ का जाना तय है। वसंत का आना तय है।। ©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla #ballet वसंत का आना तय है।
sarika thakur
वसंत आया है, ऐसे ही तुम भी आओ ,पीली सरसों खिली, कोयल की कूक बोली, पेड़ों पर फूल खिले, फूलों से भंवरे मिले,मिलकर कहने लगे वसंत आया है तुम भी चले आओ वसंत
Yashpal singh gusain badal'
वसंत लता वसन संग रति करेँ सदनानन मेँ । पियूष भरा पुष्प शोभित आनन मेँ । मदन उत्साह ,अनंग मधु विकसत तन मेँ । तरु-मरु शोभित, भ्राँति करे तूर्य सी जन मेँ । अनंग छबि भरे, परिपूर्ण मुग्ध धौर आभा । श्रंग गिरि सरि मेँ ,मन मोहित करे आभा । मारुत हिलोर दे तन्वी ,न्रत्य कटि मटकावे । भानु शशि सम लगे , पुष्प मास हर्षावे । रचना- यशपाल सिह बादल . ©Yashpal singh gusain badal' वसंत