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Alok Vishwakarma "आर्ष"
यमुना के किनारे उपवन में, आँखें वृन्दा को पुकार रहीं । तितली तृण कुसुम चिरइया को, वृन्दा ही मान निहार रहीं ।। मैं काव्य गीत जो रचता हूँ, तुम शब्दों में सिल जाती हो । मैं श्राव्य भीत जो सजता हूँ, तुम स्तब्ध हुई खिल जाती हो ।। होंठों से बोलती नहीं मगर, धुन की लय में मुस्काती हो । तुम आत्मसात कर सरगम को, झुकते से नयन शरमाती हो ।। सुनता ही रहूँ बस तुमको ही, राधा का श्रवण अब श्याम पिये । दिल बुला रहा है आ जाओ, मधुमय मन की आवाज़ लिये ।। यमुना के किनारे उपवन में, आँखें वृन्दा को पुकार रहीं । तितली तृण कुसुम चिरइया को, वृन्दा ही मान निहार रहीं ।। मैं काव्य गीत जो रचता हूँ, तु