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Pooran Bhatt

छाया वाद के आधार स्तम्भ पंत जी ने अपने जीवन काल मे अपनी मातृ बोली कुमाऊँनी मे सिर्फ एक ही कविता लिखी यहाँ भी प्रकृति सौंदर्य को शब्दों मे ढा

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सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां ।

सल्ल छ , दयार छ , पई अयांर छ ,
सबनाक फाडन में पुडनक भार छ ,
पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग ,
रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ ।

सारि दुनि में मेरी सू ज , लै क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ ।

काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आँखोड़ छ ,
हिसालु , किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ ,
पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ ,
फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ?

सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा ॥

- सुमित्रानंदन पन्त  छाया वाद के आधार स्तम्भ पंत जी ने अपने जीवन काल मे अपनी मातृ बोली कुमाऊँनी मे सिर्फ एक ही कविता लिखी यहाँ भी प्रकृति सौंदर्य को शब्दों मे ढा

DrLal Thadani

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सांध्य जीवन की आस तुम्ही हो 
शुष्क अधरों की प्यास तुम्ही हो 
मधुर  सुखमय श्रृंगार तुम्ही हो
मेरी हौसला मधुमास तुम्ही हो 
सुकून भरा बाहुपाश तुम्ही हो 
महकी सांसों का विश्वास तुम्ही हो 
खिले गुलज़ार का उज़ास तुम्ही हो

डॉ लाल थदानी
#अल्फ़ाज़_दिलसे

- Dr Lal Thadani
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AK__Alfaaz..

कल, ​मन के अहाते में, ​एक बहती शीतल पुरवईया, ​हौले से आयी, ​दस्तक देकर, ​दहलीज पर मेरी, ​वो स्नेह के, #yqbaba #yqhindi #yqquotes #testimonial

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कल,
​मन के अहाते में,
​एक बहती शीतल पुरवईया,
​हौले से आयी,
​दस्तक देकर,
​दहलीज पर मेरी,
​वो स्नेह के,
​किवाड़ों को खटखटायी,
​
​मैंने भी,
​अलसाई नींद से उठकर,
​जब किवाड़ खोले,
​तो..वो पुरवईया,
​वात्सल्य से मेरा,
​माथा सहलाकर कानों में,
​ममता पूर्वक,
​कुछ फुसफसायी, 
कल,
​मन के अहाते में,
​एक बहती शीतल पुरवईया,
​हौले से आयी,
​दस्तक देकर,
​दहलीज पर मेरी,
​वो स्नेह के,
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