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Gaurav Pratap Singh
अब अधटूटी सी मंशाएँ, दे सब्र-ओ-करार आंखों में यादों में फिर से आई हैं, उस धोखे को रुसवाई को, जो मैंने बचाकर रखी थी तुमने कल फिर से गायी हैं, लग रहा मुझे अब ऐसा कल अपनों सा अपना आया था, कल रात जो सपना आया था!! आगे का लिखूं!!
सुधांशु पांडे़
उसे भी सह कर रह लूंगा,परंतु खेद इसी बात का है कि मैं किसी के यहां बंध कर नहीं रह सकता| राजू:- चोट से घायल पड़ोसियों से पूछता है कि तुम सब की क्या?राय है भाइयों, सभी एक साथ फकीरी गई भाड़ में कम से कम कर्णधार साहब के यहां रहकर मजे की रोटी तो खाएंगे|हंसते हुए राजू:-बड़ी उत्तम सोच है तुम सब की|राजू कुछ बोल पाता उससे पहले ही:- जो मजा साहब के यहां मिलेगा वो फकीरी में असंभव है| राजू सोचते हुए:- किस कारण से ये सब ऐसा बोल रहे हैं?कुछ समझ नहीं आता, खैर उनका अपना मन मुझसे दुनिया से क्या लेना देना| कर्णधार साहब आगे कुछ बोल पाते उससे पहले ही:- राजू अपने बाल बच्चों को साथ लेकर एक कदम भी आगे ना रख पाया तभी,कर्णधार साहब:- अरे राजू जाकर घर में देख ले कम से कम क्या पता कुछ कीमती वस्तु ही मिल जाए, हंसते हुए:- अरे!साहब हम फकीरो को क्या मालूम क्या कीमती है क्या नहीं? जहां मांगूगा वही दो रोटी मिलेगी," क्या लाया ही था जो लेकर जाऊंगा" अरे साहब जौहरी से ज्यादा हीरो के बारे में किसे परख होगी! अपने परिवार के साथ राजू चलने लगता है तभी:- कर्णधार साहब भगवान आपकी रक्षा करें| भाग(3) रामाधार भानु प्रताप और विशेश्वर ये तीनो #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# कहानी फकीरी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
ही बारी-बारी से कर्णधार साहब के यहां अपना-अपना फर्ज बेखूबी से निभाया करते हैं, और निभाए भी क्यों ना?क्योंकि वो फकीरी जिसके दम पर वो चैन से रोटी खाते थे आखिर वो अब ना रही| इन तीनों को वही करना है जो कर्णधार साहब कहेंगे, क्योंकि दास जो ठहरे,परंतु ऐसा कहना आगे ठीक ना होगा| इन तीनों के प्रति कर्णधार साहब अपना जीवन इस प्रकार न्योछावर करते प्रतीत हो रहे हैं जैसे एक मां अपना जीवन न्योछावर कर देती है अपने पुत्र के खातिर, समय पर खाना नहाना और इन तीनों के सोने की चिंता का ख्याल कर्णधार साहब बहुत बेवखूबी से रखते थे| एक सगा बाप इतना ज्यादा ख्याल नहीं रखता अपने बेटो का जितना ख्याल कर्णधार साहब इन तीनों का रखते हैं| मैं अक्सर इन्हीं घटनाओं को देखकर इसलिए स्तब्ध रह जाता हूं क्योंकि जहां जो काम नहीं होना चाहिए अक्सर अदबदा कर वहा वही होता है, जैसा कि बीते पलों में हुआ|" इन तीनों का जीवन सलामती से बीत जाए यही मेरी ऊपर वाले से कामना है, क्योंकि अपना तो उसूल है साहब जब तक जियो दिल खोलकर जियो नहीं तो इससे अच्छा मरना ही सुखद होता है| कुछ दिनों बाद:-कर्णधार साहब के प्रेम जाल में ये तीनों अब मछली के भांति फंस चुके है| अरे साहब हम तीनों अपने से कहीं, ज्यादा विश्वास अब आप पर करते हैं. #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
तुम लोगों से एक जरूरी बात करनी थी,तो वही सोचा पहले बात कर लू फिर खा लूंगा| अरे ऐसी कौन सी बात आ गई?जिससे कारण आप इतना जल्दी में हो. कर्णधार साहब:- ऐसी बात नहीं है बेटा कुछ बातें हुआ ही ऐसी करती है जिनका निवारण अगर समय रहते ना कर लिया जाए तो आगे चलकर बहुत घातक साबित होती है| अरे ऐसी कौन सी बात हो गई?थोड़ा मैं भी तो जानू. प्रश्न करते हुए:- तुम सबको जानना है, हां पिताजी जी, तो आओ अपने-अपने दर लो फिर बात को आगे बढ़ाते हैं, सभी अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाते हैं, कर्णधार साहब:- तुम तीनों की जो वहां वाली जमीन है,उस पर संपूर्ण मोहल्ले के लोगों की नजर है कोई भी शख्स मोहल्ले का ऐसा नहीं है जो उस जमीन के पीछे ना पडा हो,तुम तीनों अपने अपने विवेक से सोच कर बताओ, क्या वो बाप चैन की नींद ले सकता है,जिसके बेटों के ऊपर ऐसे संकट आए हो, तीनों एक साथ:-नहीं पिताजी. तीनों कुछ समय विचार करने के उपरांत:- पिताजी जो आप उचित समझीऐ वही किया जाए उस जमीन का," थप्पड़ चाहे इस गाल पर मारो या उस गाल पर पीड़ा तो दोनों ही तरफ होगी" कर्णधार:-हां!बातों में तो दम है तुम सबके| #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
की कितनी जल्दी रात ढले और सूरज दरवाजे पर दस्तक दे और हम इन तीनों को लेकर कचेहरी पहुंचे,ताकि उन्हें अपना उल्लू सीधा करने में समय ना लगे, कब रात गुजरी कब सूरज दरवाजे पर दस्तक दे गया और कब इन तीनों को संघ लेकर कर्णधार साहब कचहरी पहुंच गए कुछ पता ही ना चला| अब से कुछ ही घंटों बाद कर्णधार साहब का उल्लू सीधा होने में कोई कसर न छूटेगी. भाग(4) वैसे तो उस बस्ती में फकीर नाम मात्र से भी कम बचे थे,और जो उस मोहल्ले में बचे हुए थे उन्हें फकीरों की श्रेणी में रखा नहीं जा सकता.आप यूं कह लीजिए कि वो भी अमीर है परंतु कर्णधार से कम,एक से बढ़कर एक बनी कोठी उस नगर की सुंदरता में वृद्धि कर रही हैं,"परंतु एक बात तो है अमीरों के पास सब कुछ होता है"पर उनके पास दिल बडे नहीं होते".चाहे निम्न कोटि का अमीर हो या उच्च कोटि का| कर्णधार साहब गला फाड़कर:- बीच मोहल्ले में जाकर है कोई कर्णधार के सामने खड़ा होने वाला,उत्साहित होकर:-बोलो बोलो.दो चार शख्स मोहल्ले के आपस में:-अरे!भाइयों इसे क्या हो गया?जो इतना गला फाड़ रहा है मूर्खों की तरह,अरे!कुछ नहीं,पा गया होगा हीरे की मुदरी. बात पकड़ते हुए:-सही कहे तुम सब हीरे की मुदरी ही मेरे हाथों लग गई है,सब आपस में आश्चर्यचकित होकर कह क्या रहा है?ये कुछ समझ नहीं आता. #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
उत्तर ना मिलने पर| बोलते क्यों नहीं तुम सब,मुंह में दही जमा रखा है क्या? वो बेचारे बोलते भी कैसे?दिल की चोट थी ना तो सही जा रही थी ना हीं जा रही थी| इन सभी की गहरी चोटों पर मरहम ही लगा रहा था तभी, कर्णधार साहब:- चोट गहरी है राजू स्वस्थ होने में वक्त लगेगा| सम्मान पूर्वक:- कर्णधार साहब कैसे चोट की बात कर रहे हैं आप? तभी पीछे से दो-चार और:- अरे हमने जो इन्हें दिया है| राजू कुछ बोल पाता उससे पहले ही, अगर तू चाहता है ऐसी हालत तेरी ना हो तो अपने चमचों को उठाओ और कहो फकीरी छोड़कर कर्णधार साहब के यहां जाकर कामकाज संभाल ले( नौकर बने) और सुन तू अपने आप को स्वतंत्र मत समझ तुझे भी वही करना है जो ये सब करेंगे| राजू:- कर्णधार साहब की ओर मुखातिब होते हुए, साहब हम सब फकीर भले हैं परंतु जितना अधिकार आपको चैन की रोटी खाने का है उतना ही अधिकार हम सब को भी है|" भगवान ने केवल आपको अमीर और हम सबको गरीब बनाया है बाकी जो अधिकार आपको मिला वहीं मुझे भी" ठहरते हुए:- साहब बुरा ना माने तो एक बात कहूं| कर्णधार साहब:-कहो जल्दी से|राजू:- साहब मैं इन सब का तो नहीं जानता परंतु मैं इस मोहल्ले को छोड़कर इससे भी ज्यादा, अगर भगवान दुख देगा तो #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश
सुधांशु पांडे़
कर्णधार साहब की आंखों में आंखें डालते हुए,आप तो हमारे पिता तुल्य हैं साहब| फिर आप पर विश्वास करना कोई बड़ी बात थोड़ी है, तसल्ली देते हुए:- अच्छा ठीक है मेरे प्यारे बेटे अब चलो नहा धो लो आखिर भोजन पानी भी तो करना है, हंसते हुए:-वास्तव में तुम सब बहुत बकवास करते हो| तीनो नहाने धोने चले जाते हैं उसके बाद- मन में सोचते हुए:- अगर इन तीनों की जजात मिल जाए तो कितना अच्छा होगा|अगर ऐसा हो गया तो दो-चार मोहल्ले के अमीर एक साथ अपना पांव हमारे सम्मुख जमाना चाहेंगे तो भी नहीं जमा पाएंगे| भगवान को मनाते हुए:- अरे ऊपर वाले आधी रकम ना सही अगर मेरा यह कार्य सिद्ध हो गया,तो तू जो कहेगा सो करूंगा|अगर तू मेरी जान लेना चाहेगा तब पर भी पीछे ना हट लूंगा," सच कहता हूं अगर मैं भगवान होता तो इन जैसे व्यक्तियों की मनोकामना मांगने से पहले पूरी कर देता" अब चाहे कुछ भी हो जाए पर जजात तो लेकर रहूंगा| कर्णधार साहब का हट देख कर तो ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे पांडु पुत्र भीम की तरह इन्हें भी सौ हाथियों का बल प्राप्त हो गया है| इन्हीं ख्वाबों में डूबे कर्णधार साहब के कानों में एक आवाज दस्तक देती है, तीनों एक साथ:- पिता जी हम सब का तो भोजन हो गया, मगर आप भोजन किए कि नहीं| कर्णधार साहब:- अभी नहीं पर कर लूंगा, कब कर लेंगे?जाकर करिए भोजन| अरे कर लेंगे ना, #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
पिताजी सोचने का वक्त नहीं है, अब जो कुछ भी करना है जल्दी करिए| कर्णधार साहब:- अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूं,तीनों एक साथ:- जी इसमें क्या बुरा मानना जो कुछ भी कहना हो बेझिझक कहिए|कर्णधार साहब :-मेरा मन तो यही कहता है कि तुम सब एक-एक करके अपने-अपने हिस्से की जमीन मेरे हवाले कर दो, ताकि हिस्से में बटी जमीन एक साथ हो जाएगी और उस पर अपना अधिकार अधिक बढ़ जाएगा| कटाक्ष मारते हुए:- परंतु पिताजी जमीन चाहे हम तीनों के नाम रहे या आपके अधिकार तो बराबर ही रहेगा ना| कर्णधार साहब:- यही तो तुम लोग आज तक समझ नहीं पाए| क्या?कर्णधार साहब:-जो प्रबलता लकड़ी के पास एक साथ जुड़े रहने पर रहती है वो प्रबलता अलग-अलग हो जाने पर नहीं होती, समझे| जी पिताजी. तो आगे क्या करना है? आज्ञा करिए, कर्णधार साहब:- क्या करना है क्या? कल तुम तीनों साथ चल कर अपने-अपने हिस्से की जमीन हमारे नाम कर दो फिर देखो हम मोहल्ले वालों की कैसी हजामत बनाते हैं, हंसते हुए:- उनकी हजामत देखते ही बनेगी, जैसी आपकी इच्छा| कर्णधार साहब को बारह घंटे की रात मानो चौबिस घंटे की प्रतीत होने लगी, खुशी के मारे कर्णधार साहब को रात भर नींद ना आई, उनके दिलो और दिमाग पर बस एक ही बात चल रही थी, #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-