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सुधांशु पांडे़
यह पूरा संसार बूचड़खाना है, और इसमें ठहरने वाले हम सब शराबी! ऊपरवाला साकी बनकर माया रूपी, मदिरा पैमाने में भरता जाता है! उसे हम सब अमृत समझ कर, जीवन भर घूंट पर घूंट लेते रहते हैं! "सुधांशु निराला" #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# #spiritual thought# nirala.je
सुधांशु पांडे़
सुनैना:-आप हमारे सिर पर अपना हाथ धर के सौगंध खाइए कि आज आप मेरी फरियाद अवश्य पूरी करेंगे,नहीं तो आप जैसों का क्या भरोसा?बात कहते ही पलट जाते हैं|हालात की मार जब व्यक्ति पर पड़ती है तो औरो की बात क्या कहें?बच्चे-बच्चे का विश्वास उस पर से उठ जाता है, पर मेरी हालात इतनी भी गई गुजरी नहीं थी परंतु हो सकता है कंजूसी के कारण ये सब सुनने को मिल रहा हो| बिटिया की आंखों से लगातार बहती अश्रुधारा मुझसे देखी नहीं जा रही थी,मैं बिना वक्त गंवाए उसके सिर पर हाथ रखकर सौगंध खाया कि- तुम्हारी फरियाद अवश्य पूरी करूंगा चाहे खुद को ही बेचना पड़े| उसका मुरझाया चेहरा अचानक फूलों सा खिल उठा उदास मुखड़े को जैसे आनंद के भाव से कोई भर दिया हो ऐसा खुशी के मारे सहसा उछल कर कहने लगी- सुनैना:-बाबूजी पिछले कई दिन से दालमोट चबाने का मन है,पर आज तक मन को मैं समझाती रही,परंतु ये कमबखत आज समझने को राजी नहीं होता| तो तुम्हें दालमोट चाहिए| सुनैना:-हां! #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# मेरा ₹100 कहानी का दूसरा अंश
सुधांशु पांडे़
-:"मेरा सौ रुपया":- बिटिया पैरों से लिपटी रो रही है,मैं कमबखत आज दीन ना होता तो ये सब मंजर मेरे सम्मुख न प्रकट होते,परंतु इसमें ना तो ऊपर वाले का दोष है ना ही मेरा,अगर किसी का दोष है तो वो है कर्म| मुझे पता है बिटिया के रोने का कारण परंतु उसका दिल रखने की खातिर फिर भी मैं पूछ बैठा-पैरों से उठाकर गालों पर स्नेह का चुंबन देते हुए, सुनैना बिटिया क्या हुआ तुम्हें? आज बताओ क्या चाहिए मैं ला कर दूंगा| सुनैना:-बाबू आप हर दफा तो यही कहते हैं ला के दूंगा परंतु आज तक आप मेरी एक भी फरियाद पूरी नहीं कर पाए, यह शब्दवेदी बाण हृदय पर लगते ही गहरा चोट किए परंतु कर्म दंड समझ कर भूल जाना ही सुखद समझा, मन तो हुआ जड़ दूं दो चार थप्पड़ गाल पर परंतु इसके लिए हृदय गवाही न दिया,सहसा मै बोल उठा:-तुम्हारी सौगंध खाता हूं, आज फरियाद अवश्य पूरी करूंगा| #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# मेरा सौ रुपया कहानी का प्रथम अंश|
सुधांशु पांडे़
जब चेहरा बदसूरत दिखने लगे तो, सफाई चेहरे की नहीं आईने की करो! "सुधांशु निराला" #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# बड़ी बात.👆👆👆
सुधांशु पांडे़
कौन कमबख्त कहता है साहब रात काली है, अकेला चांद आज खुद कई चरागों पर भारी है! "सुधांसू निराला" #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला#
सुधांशु पांडे़
कामकाज में पुनः जुट गए, और जुटते भी क्यों ना? कर्णधार साहब का खौफ था जो| 🌹🖋"सुधांशु निराला"🖋🌹 #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी का आखरी अंश! rajat sharma Dervaliya Anil $ubha$"शुभ" Ritika suryavanshi Micku Nagar😘😘
सुधांशु पांडे़
ना खाने को मिलता ना सोने को और ना ही ढंग से रहने को,"अब आप यूं कह लीजिए धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का"कर्णधार साहब किसी काम से आज बाहर चले गए थे,तभी तीनों भानु प्रताप,रामाधार,विश्वेश्वर जैसे ही चैन से एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालते हैं,तभी बहती अश्रुधार को देखकर प्रतीत होता है जैसे बादल का सीना फट गया है,और होने वाले अकूत वर्षा थमने का नाम ही नहीं ले रही हो| कहा जाता है कि सुख की घड़ी इतना जल्दी बीतती है,कि पता ही नहीं चलता कब जीवन में दुख आ गया,इसी बात चिंतन करते-करते घंटो बीत गए|,आकस्मिकता से,भानु प्रताप:- यार भाइयों हम सब तो बहुत रो धो लिए,अगर कर्णधार साहब आ गए तो हम सब की हजामत बनने में तनिक देर ना लगेगी|रामाधार,विश्वेश्वर एक संघ:-हां वो तो है. तीनों आपस में:- लगता है अब हम सबको कर्णधार साहब मरने के बाद ही मुक्ति प्रदान करेंगे.कर्णधार साहब को कोठी के भीतर दाखिल होते ही देख वो तीनों इतना भयभीत हुए जैसे काल को देखकर मरने वाला प्राणी होता है. इस दफा उन्हें बताने की जरूरत ना पड़ी वो खुद ही समझ गए"जो मजा फकीरी में है वो मजा दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलता" साहब को देखते ही अपनी-अपनी हालत ऐसी बना लिए जैसे दुनिया का सारा सुख इन्हें ही मिल गया हो,उदास चेहरे पर खुशी लगाकर सब अपने-अपने #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी का अगला अंश:-
सुधांशु पांडे़
कर्णधार साहब:-समझ में भी नहीं आएगा अब तुम सबको,कर्णधार साहब:- जिस जमीन पर तुम सब मोहल्ले वालों की नजर थी,आज से वो जमीन मेरे हवाले आ गई है| क्रोध से:-अगर कोई भी मोहल्ले का शख्स उस जमीन पर गंदी नजर डालेगा तो उसे कर्णधार बक्से गा नहीं.चारों शख्स:-अरे!कौन नजर ही डाल रहा है उस पर कौन सी मेरे बाप की जजात है जो उस पर हम सब नजर डाले के लिए आतुर है चारों शख्स:-मरे रोये वो जिसकी जमीन थी हम सब क्यों?उस पर नजर डालेंगे अपनी हजामत बनवाने के लिए. इतना कहकर वो सब अपने-अपने घर की ओर रवाना हो गए,मन में सोचते हुए कि अब रामाधार,भानु प्रताप और विश्वेश्वर का क्या होगा?,कर्णधार साहब तो अब ऐसा बदल गए जैसे रुपया पाते ही गवाह बदल जाता है,कर्णधार साहब के व्यक्तित्व में बहुत बदलाव आ गया इन तीनों के प्रति| अब तक जितना इनके हीत के बारे में सोचते थे,अब उसका तिहावा हिस्सा भी नहीं सोचते कर्णधार साहब|"वही वाली हाल हो गई अपना काम बनता भाड़ में गई जनता" कर्णधार साहब के इन तीनों बेटों की इज्जत इस कोठी में रहने वाले नौकर से भी बत्तर हो गई| स्वप्न में भी रामाधार,भानु प्रताप,विश्वेश्वर सोच नहीं सकते थे, कि मेरे इज्जत की धज्जियां इस प्रकार उड़ेंगी.दिन भर कोल्हू के बैल की तरह काम करवाता और खाने-पीने के नाम पर, अंगूठा दिखाकर खिल्ली उड़ाता| बेचारे काम तो दिन भर खूब करते, #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-
सुधांशु पांडे़
की कितनी जल्दी रात ढले और सूरज दरवाजे पर दस्तक दे और हम इन तीनों को लेकर कचेहरी पहुंचे,ताकि उन्हें अपना उल्लू सीधा करने में समय ना लगे, कब रात गुजरी कब सूरज दरवाजे पर दस्तक दे गया और कब इन तीनों को संघ लेकर कर्णधार साहब कचहरी पहुंच गए कुछ पता ही ना चला| अब से कुछ ही घंटों बाद कर्णधार साहब का उल्लू सीधा होने में कोई कसर न छूटेगी. भाग(4) वैसे तो उस बस्ती में फकीर नाम मात्र से भी कम बचे थे,और जो उस मोहल्ले में बचे हुए थे उन्हें फकीरों की श्रेणी में रखा नहीं जा सकता.आप यूं कह लीजिए कि वो भी अमीर है परंतु कर्णधार से कम,एक से बढ़कर एक बनी कोठी उस नगर की सुंदरता में वृद्धि कर रही हैं,"परंतु एक बात तो है अमीरों के पास सब कुछ होता है"पर उनके पास दिल बडे नहीं होते".चाहे निम्न कोटि का अमीर हो या उच्च कोटि का| कर्णधार साहब गला फाड़कर:- बीच मोहल्ले में जाकर है कोई कर्णधार के सामने खड़ा होने वाला,उत्साहित होकर:-बोलो बोलो.दो चार शख्स मोहल्ले के आपस में:-अरे!भाइयों इसे क्या हो गया?जो इतना गला फाड़ रहा है मूर्खों की तरह,अरे!कुछ नहीं,पा गया होगा हीरे की मुदरी. बात पकड़ते हुए:-सही कहे तुम सब हीरे की मुदरी ही मेरे हाथों लग गई है,सब आपस में आश्चर्यचकित होकर कह क्या रहा है?ये कुछ समझ नहीं आता. #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-