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Bharat Bhushan pathak

#City अब खो गया है कहीं! वो शान्त सा गाँव जहाँ रिश्तों की चौपाल लगा करती थी। शहर सा ही हर ओर नजारा है, जहाँ भोले-भाले लोग नहीं मँझे हुए व्या #SAD

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healthy tips

🤷🏻‍♂️🤔☝🏻सूरत के अरबपति हीरा व्यापारी ने अपने पुत्र को घर से बाहर निकाल दिया और 45 दिन सामान्य नागरिक की तरह जीवन यापन करने को कहा । 40 दिन स #प्रेरक

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है । मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।। दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे । #शायरी

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ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।
मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।

दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।
उनकी खातिर दिल अब महतारी होने लगता है ।।

रूठ नही जाएं हमसे हरपल चिंता है रहती ।
सोंच सोंच कर दिल मेरा भारी होने लगता है ।।

झुक जाता था शीश हमारा देख सामने जिनको ।
रिश्तों का वो यारों व्यापारी होने लगता है ।।

कितने और जन्म ले लूँ बोलों मैं उनकी खातिर ।
हर जीवन तो उनका ही आभारी होने लगता है ।।

माँग भरा शृंगार कराया अपना हर सपना भूला ।
मगर प्रीत माँगता तो भिखारी होने लगता है ।।

दो टूके भी खिला न सकता बाते करता ऊँची ।
आते द्वार भिखारी भण्ड़ारी होने लगता है ।।

१८/०२/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।

मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।


दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।

Ravendra

लूटी गई बाइक के साथ सराफा व्यापारी पर हमला कर लूटे थे जेवरात और नकदी बहराइच जिले के नानपारा कोतवाली क्षेत्र के शिवाला बाग निवासी सर्राफा व #न्यूज़

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सार छन्द :- तख्ती दवात खडिय़ो में कल, बचपन था मुस्काता । गावों के टेड़ी गलियों से, है अपना भी नाता ।। तख्ती दवात खडिय़ो में कल.... #कविता

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सार छन्द :-

तख्ती दवात खडिय़ो में कल, बचपन था मुस्काता ।
गावों के टेड़ी गलियों से, है अपना भी नाता ।।
तख्ती दवात खडिय़ो में कल....

जो मुझमे थे सदा समाहित, वो संस्कार हमारे ।
लेकिन इस युग में है देखा , होते वारे न्यारे ।।
अब कहाँ ज्ञान दादा-दादी से , पोता वो ले पाता ।
तख्ती दवात खड़िय़ो में कल ....

ट्रेड ट्रेड में बदल गई है , देखो दुनिया सारी ।
अब तो सब ही माँग रहे हैं , पुस्तक हो व्यापारी ।।
काल खण्ड़ की वो बातें अब , कौन यहाँ सुन पाता ।
तख्ती दवात खड़िय़ो में कल ....

हानि-लाभ की बातें करते, देखो छोटे बच्चे ।
इसी आयु में हम आप कभी , थे तो दिल के सच्चे ।।
लेकिन दुनिया बदल रही है , गौर न तू कर पाता ।
तख्ती दवात खड़िय़ो में ....

आज पुनः जीवित हो जाये , वो संस्कार हमारे ।
उठना सोना खाना पीना , वो व्यवहार हमारे ।।
जिसे देख जीवन मेरा यह ,धन्य पुनः हो जाता ।
तख्ती दवात खड़िय़ो में कल ...।

तख्ती दवात खडिय़ो में कल, बचपन था मुस्काता ।
गावों के टेड़ी गलियों से, है अपना भी नाता ।।

२७/०१/२०२३     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सार छन्द :-


तख्ती दवात खडिय़ो में कल, बचपन था मुस्काता ।

गावों के टेड़ी गलियों से, है अपना भी नाता ।।

तख्ती दवात खडिय़ो में कल....

Dr.Vinay kumar Verma

प्रेरक कहानी: एक ही युक्ति बार-बार काम नहीं आती-टोपी व्यापारी व बंदरों की कहानीPrerak-Kahani #जानकारी

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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#GuzartiZindagi बतंगड़ ही बनाना है,तो और कलह कर लो,नही तो फिर आपस में ही *सुलह कर लो//१ *समझौता उधार की जीस्त में अब तक लुत्फ किसको मिला है, #Trending #writersofindia #nojotohindi #poetsofindia #Palestine #poetrycorner #shamawritesBebaak

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Ravendra

चैरिटेबल ट्रस्ट के कैंप कार्यालय पर दवा व्यापारी ने किया गोलक दान ईमानदारी से अर्जित कमाई में से हर मनुष्य को किसी ना किसी जरूरतमंद व्यक्त #न्यूज़

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amit bhatt

देसी व्यापारी की शब्दावली #Business #समाज

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं । फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।। बेबस कर इंसान यहाँ अब ... दो आने की मिले नौक #कविता

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बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं ।
फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।।
बेबस कर इंसान यहाँ अब ...

दो आने की मिले नौकरी , घर खर्च रहे छे आने के ।
उस पर जाल बिछाए बैठे , अब व्यापारी पैमाने के ।।
भोले यह मजदूर बड़े है , बस दाने ही दिख पाते हैं ।
बेबस कर इंसान यहाँ अब .....

लिया दिया कुछ किया नही है ,एक लालच ही नज़र आता ।
दो आने लेकर जीवन में , दस आने ही वह भर पाता ।।
लूट मचाए नियम बनाकर , जो सहकारी कहलाते है ।
बेबस कर इंसान यहाँ अब ....

 कस्सी गैंती औ कुल्हाड़ी, हथियार दिलाये जाते है ।
 ईटा गारा बोझ उठाना , यह काम बताये जाते हैं ।।
 भर जाए परिवार पेट का , हर रोग दबाए जातें है ।
 बेबस कर इंसान यहाँ अब ...
 
 जीवन की तपती रेती में , यह लौह पकाया जाता है ।
 इस इंसानी मिट्टी को , आज सोना बनाया जाता है ।
 लेकिन उनसे ही यारो अब, ये भेद छुपाएं जाते हैं ।
 बेबस कर इंसान यहाँ अब ....

छीन लिया उन औलादों से , शिक्षा का भी वह हक देखा ।
थाम-थाम हथियार सुनों वह , बदले किस्मत की वह रेखा ।।
मकसद मिला पेट है भरना , यह पाठ पढ़ाए जाते है ।
बेबस कर इंसान यहाँ अब ....

बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाएं जाते हैं ।
फिर उनकी करनी को खाने , यह गोरख वाले आते हैं ।।

०१/०५/२०२३       - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बेबस कर इंसान यहाँ अब , मजदूर बनाये जाते हैं ।
फिर उनकी करनी को खाने , ये गोरख वाले आते हैं ।।
बेबस कर इंसान यहाँ अब ...

दो आने की मिले नौक
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