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हिमांशु Kulshreshtha
White बिन कुछ कहे बिन कुछ सुने चलो छोड़ो रहने देते हैं .... ये नाम लेने और पहचान वाली रस्में ये मंज़िल तक साथ पहुँचने की क़समें बिन कहे बिन सुने ऐसे ही ख़ामोशी से कुछ कदम. बस हाथ थामे एक दूजे के संग चलते हैं… बिन कुछ कहे चंद पल जिन्दगी के बिन जाने बिन पहचाने साथ बसर करते हैं ©हिमांशु Kulshreshtha बिन कहे...
बिन कहे...
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White बिन तेरे यूँ तो हम अधूरे नहीं हैं कुछ तो कमी है हम पूरे भी नहीं हैं ©हिमांशु Kulshreshtha तेरे बिन
तेरे बिन
read moreAdv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
White सुकून बहुत है कसम से तुम्हें खोकर भी तुम्हें पाने का..! बिना मर्जी के तुम्हारी तुम्हें अपना बनाने का..! फिर अच्छा भी है किल्लतें खत्म हो गईं सारी..! तुम साथ होते तो मुसीबतें क्या कम थीं हमारी..! मौका भी रोकड़ बचाने का..! सुकून बहुत है कसम से तुम्हें खोकर भी तुम्हें पाने का..! तुम होते तो तुम्हारी ही चलती..! तुम्हारे होते दाल हमारी न गलती..! झंझट था झुकने झुकाने का.. सुकून बहुत है कसम से तुम्हें खोकर भी तुम्हें पाने का..! तब तो तुम उस पार हम इस पार ही भले हैं..! फिर मुकद्दर के आगे जोर किसके चले हैं..! विधानों के बंधन निभाने का.. सुकून बहुत है कसम से तुम्हें खोकर भी तुम्हें पाने का..! सो अब तुम्हारा हम पे हक़ क्या रहा है..! हमने तो सब कुछ अकेले ही सहा है..! अपनी अपनी राहें जाने का सुकून बहुत है कसम से तुम्हें खोकर भी तुम्हें पाने का..! ©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #तुम बिन
#तुम बिन
read morejaiveer singh
White सब ठीक था न जाने क्या बात हो गई। हवा झोंका आया बिन मौसम बरसात हो गई।।........ जिंदगी यूं बदली मेरे पलक झपकते ही।... खुशी में दिन गुजरा और ग़म भरी रात हो गई।।..... ©Jaiveer Singh #love_shayari बिन मौसम
#love_shayari बिन मौसम
read moreVIKHYAT REKWAR
White माँ के जन्मदिन पर लिखी ये शायरी उनके असीम प्यार, त्याग और देखभाल को बयां करती है। हर शब्द में माँ के प्रति दिल से निकली दुआएं औ ... ©VIKHYAT REKWAR #माँ के जन्मदिन पर लिखी
#माँ के जन्मदिन पर लिखी
read moremeri_lekhni_12
White रस्ते पे आँखों की बिनाई गवां बैठी है माँ, बेटा जो दूर जा बसा, दिल जला बैठी है माँ। दर-ओ-दीवार सुनते हैं फ़साना तन्हाई का, हर कोना तेरे बग़ैर वीरां बना बैठी है माँ। तेरी हँसी की रौशनी से चमकते थे जहाँ, अब उस चिराग़ की लौ बुझा बैठी है माँ। राह ताकते-ताकते धुंधला गई हैं निगाहें, मगर उम्मीद का दिया जला बैठी है माँ। हर सहर तुझसे मिलने की दुआ करती है, शबनम के साथ आँसू बहा बैठी है माँ। क्या तुझे एहसास भी है इस तड़पती रूह का? तुझसे बिछड़के ख़ुद को सज़ा दे बैठी है माँ। अगर कभी लौट आ, तो दर खुले मिलेंगे, तेरे ख़्वाबों का घर अभी बचा बैठी है माँ। 'पूनम' हर दर्द को सीने में छुपा लेती है, बेटे की राह में अपना वजूद मिटा बैठी है माँ। स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित पूनम सिंह भदौरिया दिल्ली लेखिका समाज सेविका ©meri_lekhni_12 माँ /मेरी माँ
माँ /मेरी माँ
read moreUrmeela Raikwar (parihar)
सभी कुछ तो हैं यहाँ, बस कुछ तो है, जो नहीं यहाँ, फूलों की बगिया तो है यहां, देह तो है, तूम जो नही यहाँ, सभी रंग तो है यहाँ, तुझ बिन तो हैं, नही प्रीत यहाँ, writer Urmee ki Diary ©Urmeela Raikwar (parihar) तुझ बिन
तुझ बिन
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