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PRIYA SINHA
🙂👩🏻🙃"मेरी जिंदगी"🙃👩🏻🙂 जितना हीं मैं अपनी समस्याओं को , सुलझाने की कोशिश करती हूँ , उतना हीं अत्यधिक उलझनों में , मुझे उलझाती जा रही मेरी जिंदगी ; चाहती तो हूँ मैं भी खूब हँसना - मुस्कुराना दिल से हर-दिन , हर-पल , मगर अब तो और भी पल-पल , मुझे रूलाती जा रही मेरी जिंदगी । एक-एक कर सारे हीं ख्वाब मेरे , टूटते - बिखरते हैं जा रहे , और मेरे टूटे सपनों पे हँस के , मुझे चिढ़ाती जा रही मेरी जिंदगी ; कहती है मुझसे तू लौट जा वापिस , अपनी हकीकत की दुनिया में , सारे ख्वाब पूरे हो सकें तेरे , ये बात कोई जरूरी तो नहीं , हर दिन इस कड़े अनुभवों से रूबरू , मुझे कराती जा रही मेरी जिंदगी । (पहला भाग) जारी ... ©PRIYA SINHA #मेरी #जिंदगी (पहला भाग)
Prakash Shukla
story "मैं और मेरी तन्हाई" पहला भाग इस कहानी के पात्र एक लड़का और दो सहेलियाँ जो एक ही स्कूल में कक्षा 10 में पढ़ते थे नया एडमिशन हुआ था लड़का थोडा़ लड़कियों के मामले में शर्मीला था पर पढाई में उसका कोई सानी नहीं था लड़का- पहला दिन स्कूल का था जब सभी लड़के एक तरफ और सभी लड़कियाँ एक तरफ बेंचों मे बैठाए गए मैं शान्त सा अपने ही ख्यालों में खोया हुआ सहमा सा क्लास में बैठा था अटेन्डेन्स के साथ पहले दिन की शुरुआत हुई उस अटेंडेन्स के समय मेरा ध्यान सबका नाम जानने मे था वह लड़की क्या लड़की थी रूप की नहीं मैं गुण की बात कर रहा हूँ शरारती,नटखट,चुलबुली और चेहरे पर मुस्कान हमेशा बनी रहती थी मेरा ध्यान भी उस पर सबसे पहले उसकी शरारत पर गया उसने और उसकी सहेली ने क्लास में आते ही सबसे पहले बोर्ड में कक्षाध्यापक का चित्र. बनाया और ऐसा चित्र कि मानो चित्र नहीं विचित्र बनाया था जिसको देखकर किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान आ जाए मै भी अपने आप को हँसने से रोक न पाया पहली बार किसी ने मेरा ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर खींचा और मैं शान्त रहकर भी शान्त नहीं था अन्तर्मन व्याकुल था क्या था मन में मैं खुद नहीं समझ पा रहा था और मुझे महसूस हुआ यह हाल केवल मेरा नहीं था और भी कई नए सहपाठियों का भी हाल कुछ वैसा ही था उस लड़की का शरारतें करने का और मुस्कुराने का सिलसिला जारी रहा पता ही नहीं चला कि दिन कैसे बीता फिर अगले दिन *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई "पहला भाग
BANDHETIYA OFFICIAL
दस सिर,दस विचार, दुविधा रखने न चाहिएं, एक मति, संकल्प एक,एक पत्नीव्रत राम से सीख हो, जीत पराक्रम, वीर्य की प्राप्ति, नहीं प्राण- प्रताड़ित प्रतिस्पर्धी से मानसिक कोई भीख हो। दश हरण की बात दशहरा, भेद स्वयम् में बिल्कुल गहरा। शुभ हो शुभ ,प्रण -एक के प्राण -एक, सत्य खोजते ! आप बचा निज कल्याण एक। ©BANDHETIYA OFFICIAL दश हरण की बात ! #Dussehra