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Dk Patil
Instagram id @kavi_neetesh
समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र बोस जी के नाम पर एक सुभाष चालिसा का प्रयास: दोहा अष्ट शताब्दी वर्ष तक , यह भारत रहा गुलाम । कभी मुगल कभी गोरे , रहे शासन ये अविराम ।। चौपाई जय सुभाष तेरा अभिनंदन । चरण तुम्हारे कोटिशः वंदन ।। जय जय हे वीर भारत नंदन । चीख पुकार सुने तुम क्रंदन ।। मुगल शासन निरंतर कीन्हा । ब्रिटेन पुर्तगाल शासन लीन्हा ।। अठारह शताब्दी औ सत्तावन । गोरे बने थे कंस बालि रावण ।। READ IN CAPTION........ ©Instagram id @kavi_neetesh विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र
Shaarang Deepak
Anjuola Singh (Bhaddoria)
Sameera Raghuwanshi
नफरत से कायरता का जन्म होता है, पराक्रम का विनाश हो जाता है। ©Sameera Raghuwanshi #Wochaand #नफरत से #पराक्रम का #विनाश होता है
Writer Abhishek Anand 96
जिसकी गाथा से नतमस्तक है विश्व अनंत जिसकी माटी सनी हुई है बलिदानों की अथाह तपों से जिसकी नदियों की कल कल करती हर धारा वंदन पर्वत पेड़ जगत को अरे जिस पर प्रेम अटल रहा जन - गन - मन के अधरों का तेज,ताप,प्रवाह है जिसकी संसार के विस्तार पर वो भारत देश बसा है हर हृदय के आधार पर ©Writer Abhishek Anand 96 #IndianAirforceday भारतीय नौसेना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। अपने अदम्य साहस और पराक्रम से देश को सुरक्षित बनाने वाले वीर नौ सैनिकों को साद
KP EDUCATION HD
KP NEWS for the same for me to get ©कंवरपाल प्रजापति टेलर सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी मनाई जाती है. इस साल 21 अगस्त 2023 को नाग पंचमी है. इस दिन शेषनाग, वासुकी नाग, तक्षक नाग,
N S Yadav GoldMine
परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📜 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। 📜 जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। 📜 जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। 📜 माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📜 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📜 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए, 📜 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। 📜 दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📜 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #SunSet परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {
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भीमसेन का गांधारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मांगना पढ़िए महाभारत !! 📙📙 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र्चदश अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 भीमसेन का गान्धारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मॉंगना, युधिष्ठिर का अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारी के दृष्टिपात से युधिष्ठिर के पैरों के नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुन का भयभीत होकर श्रीकृष्ण के पीछे छिप जाना, पाण्डवों का अपनी माता से मिलना, द्रौपदी का विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारी का उन दोनों को धीरज बँधाना. 📜 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! गान्धारी की यह बात सुनकर भीमसेन नें डरे हुए की भॉंति विनय पूर्वक उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा। माताजी ! यह अधर्म हो या धर्म मैंने दुर्योधन से डरकर अपने प्राण बचानेके लिये ही वहॉं ऐसा किया था अत: आप मेरे उस अपराधको क्षमा कर दें। 📜 आप के उस महाबली पुत्र को कोई भी धर्मानुकूल युद्ध करके मारने का साहस नहीं कर सकता था अत: मैंने विषमता पूर्ण बर्ताव किया। पहले उसने भी अधर्म से ही राजा युघिष्ठिर को जीता था और हम लोगों के साथ सदा धोखा किया था, इसलिये मैंने भी उसके साथ विषम बर्ताव किया। कौरव सेना का एकमात्र बचा हुआ यह पराक्रमी वीर गदायुद्ध के द्वारा मुझे मारकर पुन: सारा राज्य हर न ले, 📜 इसी आशड्का़ से मैंने वह अयोग्य बर्ताव किया था। राजकुमारी द्रौपदी से, जो एक वस्त्र धारण किये रजस्वला अवस्था में थी, आपके पुत्रने जो कुछ कहा था, वह सब आप जानती हैं। दुर्योधनका संहार किये बिना हमलोग निष्कण्टक प्रथ्वी का राज्य नहीं भोग सकते थे, इसलिये मैंने यह अयोग्य कार्य किया। 📜 आपके पुत्र ने तो हम सब लोगों का इससे भी बढ़कर अप्रिय किया था कि उसने भरी सभामें द्रौपदी को अपनी बॉंयी जॉंघ दिखायी। आपके उस दुराचारी पुत्रको तो हमें उसी समय मार डालना चाहिये था परंतु धर्मराज की आज्ञा से हमलोग समयके बन्धन में बँधकर चुप रह गये। रानी ! आपके पुत्रने उस महान् वैरकी आगको और भी प्रज्वलित कर दिया और हमें वन में भेजकर सदा क्लेश पहुँचाया। 📜 इसीलिये हमने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया है। रणभूमि में दुर्योधन का वध करके हमलोग इस वैर से पार हो गये। राजा युधिष्ठिर को राज्य मिल गया और हमलोगोंका क्रोध शान्त हो गया। गान्धार्युवाच गान्धारी बोलीं–तात ! तुम मेरे पुत्र की इतनी प्रशंसा कर रहे हो इसलिये यह उसका वध नहीं हुआ (वह अपने यशोमय शरीर से अमर है) और मेरे सामने तुम जो कुछ कह रहे हो, 📜 वह सारा अपराध दुर्योधन ने अवश्य किया है। भारत ! परंतु वृषसेनने जब नकुलके घोड़ो को मारकर उसे रथहीन कर दिया था, उस समय तुमने युद्ध में दु:शासन-को मारकर जो उसका खून पी लिया, वह सत्पुरुषों द्वारा निन्दित और नीच पुरुषों द्वारा सेवित घोर क्रूरता पूर्ण कर्म है। वृकोदर ! तुमने वही क्रूर कार्य किया है, इसलिये तुम्हारे द्वारा सत्यन्त अयोग्य कर्म बन गया है। 📜 भीमसेन उवाच भीमसेन बोले-माताजी ! दूसरे का भी खून नहीं पीना चाहिये फिर अपनाही खून कोई कैसे पी सकता है ? जैसे अपना शरीर है, वैसे ही भाई का शरीर है। अपने में और भाई में कोई अन्तर नहीं है। मॉं ! आप शोक न करें। वह खून मेरे दॉंतो और ओठों को लॉंघकर आगे नहीं जा सका था। इस बातको सूर्य-पुत्र यमराज जानते हैं, कि केवल मेरे दोनों हाथ ही रक्त में सने हुए थे। 📜 युद्ध में वृषसेन के द्वारा नकुल के घोड़ो को मारा गया देख जो दु:शासन के सभी भाई हर्ष से उल्लसित हो उठे थे, उनके मनमें वैसा करके मैंने केवल त्रास उत्पन्न किया था। द्यतक्रीडा के समय जब द्रौपदी का केश खींचा गया, उस समय क्रोध में भरकर मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी याद हमारे हृदय में बराबर बनी रहती थी। ©N S Yadav GoldMine #woaurmain भीमसेन का गांधारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मांगना पढ़िए महाभारत !! 📙📙 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र
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अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 19-44 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन। वे युधिष्ठिर आदि सब लोग कल्याणमयी, पुण्यसलिला, अनेक जलकुण्डों से सुशोभित, स्वच्छ, विशाल रूप धारिणी तथा तट प्रदेष में महान् वनवाली गंगाजी के तट पर आकर अपने सारे आभूषण, दुपट्टे तथा पगड़ी आदि उतार डाले और पिताओं, भाईयों, पुत्रों, पौत्रों, स्वजनों तथा आर्य वीरों के लिये जलांजलि प्रदान की। 📜 अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये। धर्मज्ञ पुरुषों ने अपने हितेषी सुहृदय के लिये भी जलां अजिल देने का कार्य सम्पन्न किया। वीरों की पत्नियों द्वारा जब उन वीरों के लिये जलां अञ्जलि दी जा रही थी उस समय गंगाजी के जल में उतरने के लिये बड़ा सुन्दर मार्ग बन गया और गंगा का पाट अधिक चौड़ा हो गया। 📜 महासागर के समान विशाल वह गंगा तट आनन्द और उत्सव से शून्य होने पर भी उन वीर पत्नियों से ब्याप्त होने के कारण बड़ा शोभा पाने लगा। महाराज। तदन्तर कुन्ती देवी सहसा शोक से कातर हो रोती हुई मंद वाणी में अपने पुत्रों से बोली- पाण्डवों जो महाधनुर्धर वीर रथ यूथपतियों का भी यूथपति तथा वीरोचित शुभ लक्षणों से सम्पन्न था, जिसे युद्ध में अर्जुन ने परास्त किया है, तथा जिसे तुम लोग सूत पुत्र एवं राधा पुत्र के रूप में मानते जानते हो। 📜 जो सेना के मध्य भाग में भगवान सूर्य के समान प्रकाषित होता था, जिसने पहले सेवकों सहित तुम सब लोगों का अच्छी सामना किया था, जो दुर्योधन की सारी सेना को अपने पीछे खींचता हुआ बड़ी सोभा पाता था, बल और पराक्रम में जिसकी समानता करने बाला इस भू-तल पर दूसरा कोई राजा नहीं है, जिस शूरवीर ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी भू-मण्डल में सदां यश का ही उपार्ज किया है, 📜 संग्राम में कभी पीठ न दिखाने वाला अनायास ही महान् कर्म करने वाले अपने उस सत्य प्रतिज्ञ भ्राता कर्ण के लिये तुम लोग जलदान करो। वह तुम लोगों का बड़ा भाई था। भगवान सूर्य के अंष से वह वीर मेरे ही गर्भ से उत्पन्न हुआ था। जन्म के साथ ही उस शूरवीर के शरीर में कवच और कुण्डल शोभा पाते थे। वह सूर्य देव के समान ही तेजस्वी था। 📜 माता का यह अप्रिय बचन सुनकर समस्त पाण्डव कर्ण के लिये बार-बार शोक करते हुए अत्यन्त कष्ट में पड़ गये। तदन्तर पुरुषसिंह वीर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर सर्प के समान लंबी सांस खींचते हुए अपनी माता से बोले। मां। जो बड़े-बड़े महारथियों को डुबो देने के लिये अत्यन्त गहरे जलासय के समान थे, बाण ही जिनकी लहर, ध्वजा भंवर, बड़ी-बड़ी भुजाएं महान् ग्राहें और हथेली का शब्द ही गंभीर गर्जन था। 📜 जिनके बाणों के गिरने की सीमा में आकर अर्जुन के सिवा दूसरा कोई वीर टिक नहीं सकता था वे सूर्य कुमार तेजस्वी कर्ण पूर्व काल में आपके पुत्र कैसे हुए? जिनकी भुजाओं के प्रताप से हम सब ओर से संतप्त रहते थे, कपड़े में ढकी हुई आग के समान उन्हें अब तक आपने कैसे छिपा रखा था। 📜 धृतराष्ट्र के पुत्रों ने सदां उन्हीं के बाहुवल का भरोसा कर रखा था, जैसे कि हम लोगों ने गाण्डीवधारी अर्जुन के बल का आश्रय लिया था। कुन्तीपुत्र कर्ण के सिवा दूसरा कोई रथी ऐसा बड़ा बलवान नहीं हुआ है, जिसने समस्त राजाओं की सेना को रोक दिया हो। वे समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण क्या सचमुच हमारे बड़े भाई थे? आपने पहले उन अद्भुत पराक्रमी वीर को कैसे उत्पन्न किया था? ©N S Yadav GoldMine #Aurora अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo