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Writer Abhishek Anand 96

शमी #विचार

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जिंदगी से लाचार लड़के जब
 दहारते है
तो पुरी दुनिया उसकी मुठ्ठी में कैद रहती है

©Writer Abhishek Anand 96 शमी

Lovy

मोहम्मद शमी #शायरी

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Vishw Shanti Sanatan Seva Trust

वृक्ष की वेदना #Love

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Neelam bhola

वृक्ष की अन्तर्दशा #अनुभव

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मेरी ही डाली को काट के तूने मेरा हार बनाया है,
 हे इन्सा तू मानव नहीं, दानव का साया है,

मेरे ही कारण हैं तेरा सारा व्यक्तित्व,
 लंबी है मेरी ये गाथा,है नहीं संक्षिप्त,

 तेरी कितनी पीढ़ियों को किया मैंने बड़ा है,
और आज तू मेरे अस्तित्व के पीछे पड़ा है,

मैं ना आया कभी भी रोकने मानुष तेरी गति,
क्षीण मुझको कर दिया,कर दी है मेरी दुर्गति,
मेरे बिना निरअर्थ है तेरी ये सारी उन्नति,

रुक जरा,सुन कभी मेरे हृदय का क्रंदन,
मेरे बिना मुश्किल है तेरी आपदा का प्रबंधन,
मैं अकेला ही नहीं,सारी वृक्ष जाति रो रही,
 आ जरा तू सुन ले,मेरे साथ इनका भी रुदन,

 माना कि तुझको चाह है गगनचुंबी मकानों की,
लालच की तेरी मंशा और जगमगाती दुकानों की,
 जानी नहीं अंतर्दशा तूने सभी खलिहानों की,

अब भी समय है,इस भूल को ले तू सुधार,
कर ले तू निश्चय,अब नहीं ये परिहार,
अदण्डित रह सकेगा तभी तेरा ये संसार!!!
-नीलम भोला वृक्ष की अन्तर्दशा

HARSH369

#वृक्ष की छाया #विचार

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Tanishk Pratap

पर्यावरण की देखभाल करें भाईयो #समाज

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Vikas samastipuri

वृक्ष की हत्या #PoetryOnline #कविता

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Arvind Singh

वृक्ष की अभिलाषा #अरविंद #Gif

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वो बीज जिसे किसी ने सीचा था
 अपने प्रेम के करुणा जल से
बृक्ष बन अब लुटा रहा प्रेम
 अपने मीठे मिठे फल से।
छाया देकर उसने कितनो को
 पल दो पल की राहत दी है
टिकी है नजरें किसी की आहट में
 जिसके लिए उसने इतनी मेहनत की है।
चैन लुटा खुद बैचैन खड़ा है
 की कब उसको वो छाया देगा
करुणा रस से सीच गया उसे जो
 वो कब उसके जीवनरस का पान करेगा।। #gif वृक्ष की अभिलाषा
#अरविंद

Sandeep Lucky Guru

एक वृक्ष की हत्या #कविता

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एक दिन सहसा 
सूरज निकला
अरेक्षितिज पर नहीं
नगर के चौकः
धूप बरसी 
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से ।
छायाएँ मानव -जन की दिशाहीन 
सब ओर पडी़ -वह सूरज 
नहीं उगा था पुरब में, वह 
बरसा सहसा एक वृक्ष की हत्या

Sandeep Lucky Guru

एक वृक्ष की हत्य #कविता

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बीचों-बीच नगर केः
पहियों के ज्यों अरे टूट कर 
बिखर गये हों
दसों दिशा में।
कुछ क्षण का वह उदय -अस्त!
केवल एक प्रज्वलित क्षण की 
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी ।
फिर?
छायाएँ मानव जन की 
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो करः
मानव.ही सब भाप हो.गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हौं एक वृक्ष की हत्य
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