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꧁ARSHU꧂ارشد
मैं रहुं ना रहुं इस फानी दुनिया में , इन वादियों में एक महक़ छोड़ जाउंगा ... जब भी पढ़ोगे अल्फाज़ ओ अश्आर मेरे , दिल ओ दिमाग कि तह मे क़सक़ छोड़ जाउंगा .... ©꧁ARSHU꧂ارشد मैं रहुं ना रहुं इस फानी दुनिया में , इन वादियों में एक महक़ छोड़ जाउंगा ... जब भी पढ़ोगे अल्फाज़ ओ अश्आर मेरे , दिल ओ दिमाग कि तह मे क़सक़
मैं रहुं ना रहुं इस फानी दुनिया में , इन वादियों में एक महक़ छोड़ जाउंगा ... जब भी पढ़ोगे अल्फाज़ ओ अश्आर मेरे , दिल ओ दिमाग कि तह मे क़सक़ #Shayari
read moreAnkur tiwari
White कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी शायरी सच में 'अंजान' लोग तुझे मेरा मेहबूब समझते होंगे @अंकुर अंजान ©Ankur tiwari #कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी श
#कुछ कहते होगे आफताब कुछ तुझे नूर समझते होंगे कुछ तुझे हुस्न ओ हया के नशे में मगरुर समझते होंगे देख न कितनी मिलती है तेरे किरदार से मेरी श
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । #कविता
read moreMमtA Maया
जब मन में होगा छल तो कितना भी चढ़ा लो जल न मिलेगा कोई फल न होगी किसी समस्या का हल ©MमtA Maया 01/04/24 मन में होगा छल तो कभी नहीं होगे सफल
01/04/24 मन में होगा छल तो कभी नहीं होगे सफल #Bhakti
read moreव्ही.vishwas व्ही. भाले
जब हम गुलाम थे तब एक थे। जब हम स्वतन्त्र हुए तब हम अनेक हो गए। ३०/३/२५ ©व्ही.vishwas व्ही. भाले क्या सोच रहे होगे ।।
क्या सोच रहे होगे ।। #Motivational
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