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vaishali

स्त्री - एका नवयुगात वाटचाल || *सावित्रीच्या लेकी नाही राहिल्या अबला* || || *नवयुगाची कास धरुनी झाल्या आज सबला* || " *

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     स्त्री - एका नवयुगात वाटचाल

     || *सावित्रीच्या लेकी नाही राहिल्या अबला* ||
 || *नवयुगाची कास धरुनी झाल्या आज सबला* ||

    
(पूर्ण लेख 👇कॅप्शनमध्ये वाचा )


        🌹शब्दसंगिनी 🌹      स्त्री - एका नवयुगात वाटचाल

     || *सावित्रीच्या लेकी नाही राहिल्या अबला* ||
 || *नवयुगाची कास धरुनी झाल्या आज सबला* ||

         " *

Mr.Dilesh Uikey✔️

#alone 🌾🌺🌴गोंडवाना साम्राज्य की महारानी दुर्गावती मड़ावी जी की 456वीं शहादत दिवस पर हम सभी सगा-समाज सादर देवांजली अर्पित करते हैं। 🙏🙏💐💐💐💐💐 #thought

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गोंडवाना साम्राज्य की महारानी दुर्गावती मड़ावी जी की 456वीं शहादत दिवस पर हम सभी सगा-समाज सादर  देवांजली अर्पित करते हैं। 🙏🙏💐💐💐💐💐                                                     🍀🍁नेटा दियां मिकुन लाय फव्व ने अनि चोखों आई।फड़ापेन ता, अनी प्रकृति शक्ति पुकराल आड़ा ता आशदान (आशीर्वाद) मिकुन पररों सदा मन्नी।🌷🌷🙏🙏🌷🌷गोंडवाना द्वीप ता चैकनें कोयावंशी विरंदा तुन जीवातल (हृदय से)सेवा-सेवा। सेवा-जोहार जी। #alone 🌾🌺🌴गोंडवाना साम्राज्य की महारानी दुर्गावती मड़ावी जी की 456वीं शहादत दिवस पर हम सभी सगा-समाज सादर  देवांजली अर्पित करते हैं। 🙏🙏💐💐💐💐💐

Humayoun Naqsh

कभी नेताओं के चकर में दोस्ती ख़तम मत करलेना, ये दोस्ती धर्म से नहीं दिल से होती वो नेता हैं अगर यकीन करोतौ नेटा हैं 😝😝😂😝😝 सिरको और फैकदो इ

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Friends forever कभी नेताओं के चकर में दोस्ती ख़तम मत करलेना, ये दोस्ती धर्म से नहीं दिल से होती

वो नेता हैं अगर यकीन करोतौ नेटा हैं 
😝😝😂😝😝
सिरको और फैकदो इसने देश को बहुत लूटा है
ये जिस्म में होकर भी साथ नहीं रहते,नेता की असलियत नेटा है 😝🤣🤭😂😝 कभी नेताओं के चकर में दोस्ती ख़तम मत करलेना, ये दोस्ती धर्म से नहीं दिल से होती

वो नेता हैं अगर यकीन करोतौ नेटा हैं 
😝😝😂😝😝
सिरको और फैकदो इ

रजनीश "स्वच्छंद"

मर्यादा टापूं।। तुम आज कहो तो मैं ये छापूं, थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं। जो देख देख भी दिखा नहीं, जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं। जो गाये गए ना #Poetry #kavita

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मर्यादा टापूं।।

तुम आज कहो तो मैं ये छापूं,
थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं।
जो देख देख भी दिखा नहीं,
जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं।
जो गाये गए ना भाए गए,
बस पांव तले ही पाए गए।
जीवन जिनका फुटपाथी रहा,
कपड़े के नाम बस गांती रहा।
एक लँगोटी जिन्हें नसीब नहीं,
थाली भी जिनके करीब नहीं।
रक्त शरीर दूध छाती सूखा,
नवजात पड़ा रोता है भूखा।
भविष्य कहां वर्तमान नहीं,
जिनका जग में स्थान नहीं।
जमीं बिछा आसमां ओढ़कर,
सड़क पे सोया पैर मोड़कर।
नाक से नेटा मुंह से लार,
मिट्टी बालू जिनका श्रृंगार।
चलो आज उनकी कुछ कह दूं,
एक गीत उनपे भी गह दूँ।
चौपाई छंद दोहा या श्लोक,
लिख डालूं जरा उनका वियोग।
जो कलम पड़ी थी व्यग्र बड़ी,
कण कण पीड़ा थी समग्र खड़ी।
भार बहुत रहा इन शब्दों का,
किस कंधे लाश उठे प्रारबधों का।
आंसू रोकूँ या रोकूँ शब्दधार को,
किस कवच मैं सह लूं इस प्रहार को।
जाने किस पर मैं क्रोध करूँ,
हूँ मनुज क्या इतना बोध करूँ।
क्या बचा है जो मैं शेष लिखूं,
किन कर्मों का कहो अवशेष लिखूं।
मैं नीति नियंता विधाता नहीं,
मैं एक यंत्र हुआ निर्माता नहीं।
पर कहीं कलेजा जलता है,
जब लहु हृदय में चलता है।
मैं उद्धरित नहीं उद्धार करूँ क्या,
कुंठित मन से उपकार करूँ क्या।
मुझपे मानो ये सृष्टि रोयी है,
मनुज की जात भी मैंने खोयी है।
मैं रहा जगा गतिमान रहा,
पर हाय, आत्मा सोयी है।
हाँ हाँ आत्मा सोयी है।
सच है आत्मा सोयी है।

©रजनीश "स्वछंद" मर्यादा टापूं।।

तुम आज कहो तो मैं ये छापूं,
थोड़ी मर्यादा मैं अपनी टापूं।
जो देख देख भी दिखा नहीं,
जो ज्ञान की मंडी बिका नहीं।
जो गाये गए ना
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