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Drjagriti
"रचनाओं" की "रणभूमि" है यह यहां "शब्दों" के "शस्त्र" ही चलते हैं तुम "योद्धा" हो "प्रतिद्वंदी" हो, फिर शस्त्रों से क्यों डरते हो हर "अक्षर" यहां "बलशाली" है तुम अपने "रण" में आ जाओ ना खुद को किसी से "कम" समझो "शब्द बाणों" की छड़ी लगा जाओ!......... ©Drjagriti # रचनाओं का रण
Vandana
शब्दों का समूह बन जाता है एक सुरीला गीत,,,, पंछियों के स्वरों में भर देता है संगीत,,,, भावनाओं की बांसुरी बन,,, हो जाता मन का मीत,,, किसी कवि के शब्द बन,,, रचना में भर देता प्राण,,,, चित्रकार के रंगों में भिगोयी तस्वीर,,, बन जाता प्रशंसा का स्वर,,, कलाकार की रंगमंच में फूंक देता जान,,, दो प्रेमियों के प्रेम का माध्यम बन जाता,,, ममतामयी शब्दों का आंचल बन जाता,,, शब्दों का समूह जीने की वजह बन जाता,,, भाषा का गूढ़ विज्ञान कहलाता,,,, आदि मानव से सुसंस्कृत मानव बन जाता, "शब्दों का समूह,,, #शब्दों का समूह #शब्दों_की_माला
tanuja mishra
रिश्तों में मिठास हो फिर उनमे विश्वास हो होली तो फिर मन का पर्व है जब ऐसे रिश्ते पास हो होली की हार्दिक शुभकामनाएं ©tanuja mishra होली _ कई रंगों का समूह #colours
Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
इस शब्द का अपनी रचनाओं में प्रयोग करें। #nojotohindi
Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
अपनी रचनाओं में इस शब्द का उपयोग करें। #nojotohindi #devi
Anokhi
नारी हृदय धरती के समान है,जिससे मिठास भी मिल सकती है और कड़वाहट भी.....बस उसके अंदर पड़ने वाली बीज में जैसी शक्ति हो...!! अनमोल कहानियों और कविताओं के रचयिता श्री मुंशी प्रेमचन्द जी को शत शत नमन Abha Anokhi रचनाओं में अमर ...
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि
Kalakaksh