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ittu Sa
इत्तु सा_-` खुशी कब कहाँ से मिल जाएँ,कब हम किसी के खुश होने की वज़ह बन जाएँ। उनकी सोच उनके विचारों में मिल जाएँ,पल पल उन्हें अपनी बातों से नशे में मिला पाये। और वो नशा हम से मिले तो हम फूले ना समाएं। ©@j_$tyle #NojotoQuote इत्तु सा पैग़ाम खुशी के नाम। #nojoto #khushi #nojotohindi #hindi #poetry #quote #kavita #line खुशी कब कहाँ से मिल जाएँ,कब हम किसी के खुश होन
Vikas Sharma Shivaaya'
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका-दहन होता है-होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी को समूचे ब्रज में रंग और गुलाल की होली खेली जाती है। चैत्र कृष्ण द्वितीया को मथुरा से 22 किलोमीटर दूर बलदेव (दाऊजी) के ठाकुर दाऊदयाल मंदिर में दाऊजी का हुरंगा होता है,इसे बड़ा फाग भी कहा जाता है..., देश के ज्यादातर भागों में केवल धुलंडी वाले दिन ही रंग उड़ाने और होली खेलने की परंपरा हैं- कुछ जगह पर इसे एक से ज्यादा दिन खेला जाता होगा लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रज भूमि में होली एक या दो दिन की नही बल्कि एक महीने से ज्यादा समय तक खेली जाती हैं..., यहाँ पर रंग-गुलाल उड़ने की शुरुआत माँ सरस्वती के पावन पर्व बसंत पंचमी से ही हो जाती हैं- उसके बाद हर दिन मथुरा-वृंदावन के किसी ना किसी मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं और गलियों-कूचों में रंग उड़ते रहते हैं। रंग उड़ने का यह सिलसिला लगभग चालीस दिनों तक चलता हैं और रंग पंचमी के बाद समाप्त हो जाता हैं..., दरअसल ब्रज क्षेत्र में होली की आधिकारिक शुरुआत तो बसंत पंचमी से हो जाती हैं लेकिन असली होली का रंग जमना होलाष्टक के बाद से शुरू होता हैं-होलाष्टक होली से 8 दिन पहले लग जाता हैं,इसके बाद देश-विदेश से हजारों मंडलियाँ, नृतक, भजन गाने वाले इत्यादि वहां अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाने पहुँच जाते हैं। साथ ही इसके साक्षी बनने के लिए प्रतिदिन लाखों की संख्या में सैलानी भी आते हैं..., कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि बसंत पंचमी से होली की जो शुरुआत होती हैं वह होलाष्टक में अपने चरम पर पहुँच जाती हैं। इस समय आपको हर गली-कूचों, मंदिरों, घरों इत्यादि से रंग-गुलाल उड़ते हुए दिखेंगे। कब कहाँ से आपके ऊपर रंग आकर लग जाए, आपको पता भी नही चल पाएगा...! विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 969 से 980 नाम 969 सविताः सम्पूर्ण लोक के उत्पन्न करने वाले हैं 970 प्रपितामहः पितामह ब्रह्मा के भी पिता है 971 यज्ञः यज्ञरूप हैं 972 यज्ञपतिः यज्ञों के स्वामी हैं 973 यज्वा जो यजमान रूप से स्थित हैं 974 यज्ञांगः यज्ञ जिनके अंग हैं 975 यज्ञवाहनः फल हेतु यज्ञों का वहन करने वाले हैं 976 यज्ञभृद् यज्ञ को धारण कर उसकी रक्षा करने वाले हैं 977 यज्ञकृत् जगत के आरम्भ और अंत में यज्ञ करते हैं 978 यज्ञी अपने आराधनात्मक यज्ञों के शेषी हैं 979 यज्ञभुक् यज्ञ को भोगने वाले हैं 980 यज्ञसाधनः यज्ञ जिनकी प्राप्ति का साधन है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका-दहन होता है-होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी को समूचे ब्रज में रंग और गुलाल की होली खेली जाती है। चैत्र
Shailendra Singh Yadav
कहाँ हो तुम्हारा इंतजार है। तुम बिन कब से दिल बेकरार है। शायरः-शैलेन्द्र सिंह यादव #NojotoQuote शैलेन्द्र सिंह यादव कहाँ हो कब से तुम्हारा इंतजार है।
Ghumnam Gautam
कब न जाने कहाँ किससे धोख़ा करे आदमी अब भरोसे के.. लायक नहीं #ghumnamgautam #आदमी #धोख़ा #कब #कहाँ
Parnassian's Cafe
#OpenPoetry हर रोज़ मैं अपने घर से निकल जाता हूँ। न जाने कब... और कहाँ... जाता हूँ।। न जाने कब और कहाँ जाता हूँ। #घर #रोज़ #कब #कहाँ #शेर #शायर #शायरी
Shashi Kumar Ramshabd
बातें उसी की, जज़्बात किसी और से है जिंदगी किसी की, ख्वाब किसी और से है तुम जितना चाहो समा लो ,खुद में उसे वो रेत है, फ़ितरत है मुट्ठी से सरकना उसका कैसे हुआ, क्या हुआ, कहां गया वो आज ही क्यों खल रहा, ये चलेजाना उसका कहाँ गयी वो, कब गयी वो......#nojotoHindi
vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684
तुम चले तो गये छोड़ करके मगर जिंदगी ही हमारी खफा हो गयी , सोचते- सोचते हम कहाँ आ गये सोचतें हैं कहां कब खता हो गयी, वादे किये हमने मोहब्बत में मगर क्यूँ निभाते -निभाते खता हो गयी, कसमें खायीं थीं संग रहना मगर छोड़ना साथ क्यों सजा हो गयी, लौट आओ सनम तुम वापस यहीं मैं आज यहीं उस मोड़पर हूँ खड़ी, इश्क के समुंदर तुम्हारी डुबकियाँ लौट आओ किनारा मिलेगा नहीं, सच्चे वादे भी झूठे क्यों हुये मगर बेवफ़ाई तुम्हारी थी वो हमारी नहीं।। ©Vimlesh Gautam #जिंदगी में कहाँ कब खता हो गयी