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Devesh Dixit
अटल सत्य (दोहे) अटल सत्य है मौत ही, सबको ये संज्ञान। फिर भी क्यों समझे नहीं, करते हैं अभिमान।। मोह छूटता है नहीं, अद्भुत ये संसार। अटल सत्य ये जान कर, भरते भी भण्डार।। अनदेखा इसको करें, पछताते फिर बाद। अटल सत्य को भूल कर, दिखलाते आबाद।। ईश्वर की ही देन है, ये जो माया जाल। अटल सत्य है जान लो, मौत यही विकराल।। घबराते इससे बहुत, आज सभी इंसान। अटल सत्य है क्या कहें, कहते सभी सुजान।। ............................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #अटल_सत्य #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry अटल सत्य (दोहे) अटल सत्य है मौत ही, सबको ये संज्ञान। फिर भी क्यों समझे नहीं, करते हैं अभि
Arun Mahra
कितना प्यार करते हैं हम पता नहीं जान हो मेरी तुम प्यार के पता नहीं दिल की धड़कन हो मेरी तुम जिंदगी की हर शाम हसीन हो जाए अगर तू मुझे दिल से गले लगाए तो मुझे सारा दुनिया का प्यार मिलजाए ©Arun Mahra में कितना प्यार करते हैं मुझे पता नहीं
पूजा सोनी
gaTTubaba
ज़रूरत नहीं हैं कहने की कितना याद करते हो रातभर हिचकियाँ कहके गई हैं.... ©gaTTubaba #retro ज़रूरत नहीं हैं कहने की कितना याद करते हो रातभर हिचकियाँ कहके गई हैं....
Das Sumit Malhotra Sheetal
Arun Mahra
प्यार भी करते हैं दोस्ती भी करते हैं गुस्सा भी करते हैं पर तेरे सिवा रह नहीं सकते हैं जो भी करते हैं तेरा भलाई के लिए करते हैं ©Arun Mahra प्यार भी करते हैं गुस्सा भी करते हैं जो भी करते हैं तेरे लिए करते हैं
Anjali Singhal
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** मौजुदगी *** " यूं होने को बात ये भी हैं , किसी ऐवज में कभी तेरे , कभी मेरे पले में आयेगा , वजूद फिर किस में किस की तलाश की जाये , जो जिस्म से तेरी खुशबू आयेगा , ख्वाब मेरा महज़ मेरा ख्वाब ना हो , इसमें तेरी मौजूदगी की तलाश तो मुकम्बल हो , तसव्वुर के ख्यालों के नुमाइश में , किस किस को चेहरा और तेरा नाम देता फिरे , फिर कहीं ऐसा हो तेरी मौजूदगी हो और , मेरी - तेरी जुस्तजू की तलब कोई मुकाम ले ले , यूं होने को मुस़ाफिर हम भी हैं , फिर किसी बात पे राजी तुम भी हो , बस्ल हो ऐसा की हमारे रफ़ाक़त पे यकीन आये , क्यों ना तेरा ख्वाब मुसलसल कर लें , मैं चाहे जिस जद में रहूं क्यों ना , फिर भी तुझसे इक मुलाकात कर लें , हम तेरा एहतराम यूं ही करेंगे , मुहब्बत ना भी हो तो मुहब्बत का भ्रम रखेंगे , मिल जा बिछड़ जा फिर कहीं मुख्तलिफ बात की अदावत ठहरी , यूं तेरा ज़िक्र बामुश्किल भी नहीं , करते हैं जो एहतराम ऐसे में . " --- रबिन्द्र राम #मौजुदगी #वस्ल #रफ़ाक़त #मुहब्बत #मुख्तलिफ #अदावत #ज़िक्र #एहतराम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** मौजुदगी *** " यूं होने को बात ये भी हैं , किसी ऐवज में कभी तेरे , कभी मेरे पले में आयेगा , वजूद फिर किस में किस की तलाश