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Vikas Sahni

#बारह_बजे_की_बेचैनी हो चुके हैं बारह बजकर बाईस मिनट फिर भी नहीं आयी नींद की आहट कि आखिर कब उसे न्याय मिलेगा- यही सोच कर दिल में है अकुलाहट।

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White _____बारह_बजे_की_बेचैनी_____



हो  चुके  हैं  बारह बजकर बाईस मिनट
फिर  भी  नहीं  आयी  नींद  की  आहट
कि   आखिर  कब ‌ उसे   न्याय  मिलेगा-
यही  सोच  कर  दिल‌  में  है  अकुलाहट।
निराकार होकर भी आनंद जल रहा,
हल्का हौसला देती है जिसकी लपट
म्हारी महफ़िल लूटेरों से भर गयी है
तुम आओ, कष्ट मिटाओ मेरे नटखट!
कविता जो दिया है,मुझे मालूम है यह
तुम इक और उपहार दो, वह संसार दो,
जिसमें लालच न हो, न ही कोई कपट।
मेरे माधव मुझको तुम जल्दी जिता दो
तुड़वा-तुड़वाकर प्रत्येक घोटाले का घट।
यही सोचते-सोचते अब बज चुके हैं एक 
शुरू हुई बारह-बाईस पे कविता की टेक।।
                           ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #बारह_बजे_की_बेचैनी
हो चुके हैं बारह बजकर बाईस मिनट
फिर भी नहीं आयी नींद की आहट
कि आखिर कब उसे न्याय मिलेगा-
यही सोच कर दिल में है अकुलाहट।

Anjali Singhal

"दिन बदले रात बदली, एक-एक करके बारह महीने बदलकर, अब तो कलेंडर भी बदल गया। पर उनकी याद पर रत्तीभर भी ना असर हुआ, कल भी उसका आना जारी था, आज

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green-leaves "दिन बदले रात बदली,
एक-एक करके बारह महीने बदलकर,
अब तो कलेंडर भी बदल गया।
पर उनकी याद पर रत्तीभर भी ना असर हुआ, 
कल भी उसका आना जारी था,
आज भी उसका आना जारी रहा।।"

©Anjali Singhal "दिन बदले रात बदली,
एक-एक करके बारह महीने बदलकर,
अब तो कलेंडर भी बदल गया।
पर उनकी याद पर रत्तीभर भी ना असर हुआ, 
कल भी उसका आना जारी था,
आज

theABHAYSINGH_BIPIN

दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़

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दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़ुद को कब तक बाँधोगे।

वक़्त के साथ बेहिसाब ग़लतियाँ की हैं तुमने,
सलाखों के पीछे ख़ुद को कब तक छुपाओगे?
जो कभी साथ छांव सा था, वह अब छूट गया,
आख़िर खुद से ये जंग कब तक लड़ोगे।

लोग माफ़ी देते हैं एक-दूसरे को अक्सर,
आख़िर तुम खुद को कब तक सताओगे।
रिहाई जुर्म से नहीं मिलती, यह तो मालूम है,
आख़िर ग़लतियों पर कब तक पछताओगे।

प्रकृति में सूखी डालें भी बहार में पनपती हैं,
खुद को सहलाने का वक़्त कब तक टालोगे।
वक्त हर नासूर बने ज़ख्मों को भी भरता है,
आख़िर ज़ख्मों को भरने से कब तक डरोगे।

©theABHAYSINGH_BIPIN दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़

Praveen Jain "पल्लव"

#Newyear2024-25 पतझर बारह महीने झरता है

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New Year 2024-25 पल्लव की डायरी
छलनी है चाँद सितारे
सूरज आभा हीन हुआ
नक्षत्र ग्रह सब उलट पलट गये
कूरता का बह्मांड में उदय हुआ
दिन पल घटी कटते नही कटती है
हर वर्ष नया लगता 
मगर उम्मीद का दामन छोड़ जाता है
दाँव लगाने वाले,दुनियाँ जीतने निकले
जल थल नभ पर उनका कब्जा है
साख मानवता की सूखी
पतझर बारह महीने झरता है
नव जीवन कैसे फले फूले
माली बगिया को मसले हुये है
ढ़ाचे जिंदा जरूर दिखते
लेकिन सोच समझ उत्साह
रोज उनके व्यवस्था के आगे मरते है
                                                 प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #NewYear2024-25 पतझर बारह महीने झरता है
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