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Sarfraj Alam Shayri
White वक्त सिखा देता है जीने का हुनर फिर किया नसीब, किया मुकद्दर और किया हाथ की लकीरेन ©Sarfraj Alam Shayri #love_shayari वक्त सिखा देता है जीने का हुनर फिर किया नसीब, किया मुकद्दर और किया हाथ की लकीरेन Islam
#love_shayari वक्त सिखा देता है जीने का हुनर फिर किया नसीब, किया मुकद्दर और किया हाथ की लकीरेन Islam
read moreazad satyam
कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मायने समझता हूं, तभी तो दूरी न हो कभी दिलो के बीच इसलिए अंदर से मचल जाता हूं पर हां वक्त पर सम्भल जाता हूं 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 #ek_panchi_diwana_sa ©azad satyam कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मा
कर देता हूं नज़र अंदाज़ उनको जिनके नज़र मिलाने का अंदाज़ बदल जाता है सम्भल जाता हूं वक्त पर जिनका हर एक मिजाज बदल जाता है आज़ाद हूं लेकिन मा
read moreazad satyam
चलो मैं भी बदल जाता हूं, अपने हिसाब से अब मैं भी ढल जाता हूं, बदल गए है सब मेरे अपने, जिनके संग देखे थे जीने के सपने, कोई मस्त है तो कोई व्यस्त है, याद भी कोई करता तो जब वो त्रस्त है, दूसरों को सहारा देता हूं और मैं भी संभल जाता हूं, चलो अब मैं भी बदल जाता हूं...✍🏻 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 #ek_panchi_diwana_sa ©azad satyam चलो मैं भी बदल जाता हूं, अपने हिसाब से अब मैं भी ढल जाता हूं, बदल गए है सब मेरे अपने, जिनके संग देखे थे जीने के सपने, कोई मस्त है तो कोई व्य
चलो मैं भी बदल जाता हूं, अपने हिसाब से अब मैं भी ढल जाता हूं, बदल गए है सब मेरे अपने, जिनके संग देखे थे जीने के सपने, कोई मस्त है तो कोई व्य
read moreRV Chittrangad Mishra
जानबूझकर किसी का दिवाना बनता हूं बड़ा शायर दिखने के लिए पहले दिल लगाता हूं फिर छोड़ देता हूं हाँ मैं ऐसा ही करता हूं लिखने के लिए ©RV Chittrangad Mishra जानबूझकर किसी का दिवाना बनता हूं बड़ा शायर दिखने के लिए पहले दिल लगाता हूं फिर छोड़ देता हूं हाँ मैं ऐसा ही करता हूं लिखने के लिए - चित्रांग
जानबूझकर किसी का दिवाना बनता हूं बड़ा शायर दिखने के लिए पहले दिल लगाता हूं फिर छोड़ देता हूं हाँ मैं ऐसा ही करता हूं लिखने के लिए - चित्रांग
read moreडॉ.अजय कुमार मिश्र
White बहुत लोग हैं मेरे साथ, फिर भी आज मैं तन्हा हूं, जाने क्यों खुली आसमां से ,व्यथा आज कहता हूं। हमें आदत थी हमेशा आग और बर्फ पर चलने की, आज सर्द हवाओं के सर्दी से भी जाने क्यों बचता हूं। धधकती आग तो दूर, आज आग के धुएं से भी डरता हूं।। कोई चोटिल न हो जाए मेरे खट्टे मीठे शब्दों से , आज जुबान से निकलने वाली हर शब्द से डरता हूं। कौन सक्स कब हमें कह दे गुनहगार। आज हर सक्स के नजरों से डरता हूं। ©डॉ.अजय कुमार मिश्र डरता हूं
डरता हूं
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