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Sanjeev Jha
थोड़ी तो ऐंठन साथ रख चलना पड़ेगा डोरी ही तो गहरी खाई सीधे पार कराती है ©SANJEEV JHA #ऐंठन #खाई #LIFETUNNEL
Anamika
दिल ,दिमाग की जद्दोजहद में, उभर जाती उम्र भर की ऐंठन.. #दिल#दिमाग #ऐंठन #यूंहीएकख्याल #योरकोट
Kautilya
ऐंठन क्यों होती है? ऐंठन विशेष रूप से पैर, उंगलियों और पिंडलियों की मांसपेशियों में आम है। शारीरिक रूप से, ऐंठन परिसंचरण संबंधी विकारों या शारीरिक परिश्रम के कारण होने वाली मांसपेशियों का अचानक संकुचन और ऐंठन है। ऐंठन का बार-बार होने वाला कारण गर्भपात करने वाली हरकत या नीरस दोहराव वाली हरकत हो सकता है। ऐसी ऐंठन उन लोगों में विकसित होती है जो पीसी पर बहुत अधिक टाइप करते हैं या कंप्यूटर माउस के साथ खेलते हैं, अपने पैरों पर काम करते हैं, या गहन व्यायाम करते हैं। पैरों में ऐंठन अक्सर शरीर में कैल्शियम और पोटेशियम लवण की कमी के कारण होती है। यह अक्सर गहन व्यायाम, मूत्रवर्धक लेने और निर्जलीकरण के साथ होता है। हमारा एनएफटी चैनल ©Kautilya #happykarwachauth ऐंठन क्यों होती है? ऐंठन विशेष रूप से पैर, उंगलियों और पिंडलियों की मांसपेशियों में आम है। शारीरिक रूप से, ऐंठन परिसंच
Adv.Pramod@Basti
Gurudeen Verma
शीर्षक- और तो क्या ? --------------------------------------------------------- खास तुम भी होते साथ में, या फिर मैं होता तुम्हारे साथ में, और तो क्या ? यह खुशी दुगनी नहीं होती। ये दिन सुकून से गुजर जाते, मगर इस शक की दीवार को तो, तोड़ना ही नहीं चाहता कोई भी, और अपने अहम को भी, छोड़ना ही नहीं चाहता कोई भी। और तो क्या ? लोगों नहीं मिल जाता अवसर, कहानियां नई गढ़ने का, वहम को और बढ़ाने को, लेकिन इसमें हार तो, हम दोनों की ही होती, लेकिन मुझको बिल्कुल भी नहीं है, मेरे हारने का कोई गम। मुझको रहती है हमेशा यही चिन्ता, मैं तुमको खोना नहीं चाहता हूँ , भगवान को तो मैं मानता नहीं हूँ , फिर भी मिल जाये कुछ खुशी, आत्मा को निश्चिंत रखने के लिए, जला रहा हूँ मैं अकेले ही दीपक, और मना रहा हूँ मैं अकेले ही दीपावली, और तो क्या ? हंस लेता मैं भी--------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #लेखक
Andy Mann
लेखक दुनियां का सबसे असफ़ल व्यक्ति होता है .जो जिंदगियाँ वो जी नहीं पाता उन्हें तरह तरह के किरदारों में जीवित करता है .. ©Andy Mann #लेखक
Sabir Khan
#Pehlealfaaz लिखने वाले समाज के रचयिता हैं, समाज लिखने वालों से ही चलता है। अब लिखने वाले ही स्वयं सोच लें कि उनको समाज कैसा बनाना है। लेखक
Shikha Dubey
लेखक अपने भीतर उमड़े शैलाबों में डूब कर उभरता है तब जा कर वो कुछ लिख पाता है देर तलक वो खुद से लड़ता है तब जा कर वो एक मुकाम पाता है कालिख (स्याही) से कुछ लिखता है तब कहीं जा कर इतिहास पन्नों पर छपता है शब्दों से संग्राम में कुछ चुन कर लाता है तब जा कर उन्हें ,कुछ तहजीब , कुछ तरीके से कतार में लगाता है फिर कतार में लगे शब्दों को पन्नों पर बिठाता है तब कहीं जा कर वो लोगों के दिलों को छू पाता है लेखक
Sabir Khan
#OpenPoetry लिखने वाला चाहे जैसा भी हो, उसके लेख को पढ़ें-भाव को पढ़ें, उसकी लेखनी की प्रशंसा करें। आपकी प्रशंसा में वो सामर्थ्य है जो कि लेखक का जीवन बदलने के लिये काफ़ी है। .....भावार्थ यह है कि किसी की निजी जिंदगी पर टिप्पणी न करते हुए उसके अच्छे कार्य की प्रशंसा करें, उसका जीवन परिवर्तन निश्चित है। लेखक