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Mythology Gyan
इकराश़
व्यक्ति और पद दोनों अलग होते हैं। व्यक्ति के निजी जीवन का धर्म और उसके पद का धर्म दोनों अलग होता है। जब वो पद पर होता है, तो उसका कर्म अपने पद की मर्यादा की रक्षा करना होता है, और अगर उस व्यक्ति का निजी धर्म भी उसके आड़े आये तो उसे उसकी तिलांजलि देनी पड़ती है। यही शास्त्र है और यही धर्म है। रामायण और महाभारत हमारी सबसे बड़ी धरोहर है, और जीवन को सही दिशा दिखाने की सबसे बड़ी पूंजी। जय श्री राम। जय श्री कृष्ण। **इन उपर्लिखित वाक्य
Naushad Sadar Khan
साथ में देखें रामायण और महाभारत आ बनाते हैं हम फिर वो ही भारत आ चल बनाते हैं हम फिर वो ही भारत , ना तू ख़तरे में था ना ही मैं पराया था हमने ही मिलके तो भारत को बनाया था छोड़ ना ये धर्म बाज़ी है बड़ी घातक, आ बनाते हैं हम फिर वो ही भारत आ चल बनाते हैं हम फिर वो ही भारत, साथ में देखें रामायण और महाभारत आ बनाते हैं हम फिर वो ही भारत आ चल बनाते हैं हम फिर वो ही भारत, तख़्तियों पर , और सलेटों पर झगड़ते थे
lalitha sai
बच्चों के साथ रहकर हम बच्चे बन जाते है तो.. ये मेरी छोटी सी परी तो हर किसी के साथ ऐसा गुलमिल जाती है ना... सब भूलकर परी के साथ नृत्य करने लग
Aditya Thakur
Prashant Badal
जिंदगी जीना है फिलहाल - १ कृपया अनुशीर्षक में पढ़े "जिंदगी जीना है फिलहाल" कल का सवाल है जीना फिलहाल है एक वो साल और एक ये साल क्या अंतर आया है ये सवाल वो वीसीआर , ग्रामोफोन का जमाना ये तो
PARBHASH KMUAR
प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी बने हों? अगर नहीं, तो आज हम आपको ऐसी ही एक रोचक कहानी से परिचित कराएंगे और बताएँगे, कि आखिर इस कथन के क्या मायने हैं, कि ‘जहां चाह वहां राह’। तो भक्तों, आप में से काफ़ी लोग धर्म ग्रंथो में शामिल रामायण और महाभारत से परिचित होंगे। इन्हीं ग्रंथों में, अगस्त्य मुनि नाम के एक ऋषि का भी परिचय भी मिलता है। ऐसी मान्यता है, कि वह प्रसिद्ध सप्त ऋषियों और प्रसिद्ध 18 सिद्धों में से एक थे, जो कई सालों तक पोथिगई की पहाड़ियों में विराजमान होकर, जीवनयापन करते रहे थे। महाभारत की एक कथा के अनुसार, एक समय अगस्त्य मुनि को अपने पितरों की तृप्ति और शांति के लिए, विवाह करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई। मगर जब उन्हें अपने योग्य कोई कन्या प्राप्त नहीं हुई, तो उन्होंने बहुत सारे जीव-जंतुओं के अंश लेकर, स्वयं ही एक कन्या की रचना की। इसके साथ ही, उन्होंने उस कन्या को संतान के रूप में विदर्भराज को सौंप दिया, जो संतान प्राप्ति के लिए काफ़ी इच्छुक थे। यही कन्या, लोपामुद्रा थीं। इस बात का उल्लेख, काफ़ी सारी जगहों पर मिलता है, कि लोपामुद्रा खुबसूरत होने के साथ-साथ, अत्यंत बुद्धिमान भी थीं और उनके सौंदर्य के चर्चे भी हुआ करते थे। इसी कारणवश, जब उन्होंने ऋषि अगस्त्य से शादी करना स्वीकार किया, तब इस बात से लोगों को हैरानी भी हुई, कि ऐसी रूपवती और राजसी कन्या एक ऋषि से शादी के लिए, कैसे अपना ऐश्वर्य और ठाठ छोड़ रही है। मगर वो कहते हैं ना, कि नियत और नियति से सब कुछ परे है और धर्म ग्रंथ तो होते ही हैं, असंभव के आगे का रास्ता बताने के लिए। तो भक्तों, आप भी इस विचार के साथ अपने जीवन मार्ग में आगे बढ़ें, कि असंभव केवल एक मिथ्या है और कुछ नहीं। ©parbhashrajbcnegmailcomm प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी
jagruti vagh
एक छात्र की आत्मकथा (read in caption) ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊 में एक छात्र हूँ कुछ गलतियों की वजह से हँसी का पात्र बन जाता हूँ में जबसे छोटा था तबसे मेरे ई