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kumaarkikalamse
अनंत जीवन सागर में, मैं खुद का एक कोना बनाना चाहता हूँ, मौत को बना के बिछौना अपना , मैं मृत्यु को जगाना चाहता हूँ! होती है तकलीफें हज़ार, दर्द बे-निज़ात, और परेशानी बेहिसाब, बनाकर इंसानियत का आशियाना, मैं सबको हँसाना चाहता हूँ! किसी को गिरा के आगे बढ़ना बहुत आसान है, सब जानते है, मेहनत को बना के लक्ष्य अपना, मैं सबको आगे बढ़ाना चाहता हूँ! जो बीत गया, वो भूत हुआ, नये कल के स्वागत में हिचकते है क्यों, गुजरी यादों को बना कर स्तंभ, मैं सबको मार्ग दिखाना चाहता हूँ! इस कलाम की प्रेरणा और स्त्रोत Dost MD Bhuradia है उनके लिखे एक she'r को इसमे मैंने इस्तेमाल किया है उनकी रज़ामंदी के साथ. Thanks for your
PrAshant Kumar
" जब दो लोग अपनी खुशी , मोहब्बत और रज़ामंदी के साथ बगैर शादी के सेक्स करते हैं तो उनके बच्चे नाजायज़ हो जाते हैं और शादी के बाद चाहे वो कितनी ही बेदिली , मानसिक घुटन में ये अमल अंजाम दें , उनके बच्चे जायज़ कहलाते हैं । " #myvoice " जब दो लोग अपनी खुशी , मोहब्बत और रज़ामंदी के साथ बगैर शादी के सेक्स करते हैं तो उनके बच्चे नाजायज़ हो जाते हैं और शादी के बाद चाह
mummy_s_prince
दिल से जो मांगी थी दुआ वो आज़ कबूल हुई है, चाहत थीं हो जाएं दर्शन वो मन्नत आज़ पूरी हुई है। अब और तो क्या ख़्वाहिश रखूँ मैं आपसे महादेव, मेरी हर गुज़ारिश जो आपने दिल से पूरी करी है। जब आती बात महादेव की है तो यह दिल उनका दीवाना बन जाता है, शब्द़ की बात ही क्या करे उन पर तो सब लोग कहानियाँ लिख देते है। क्या करे अब महादेव
kumaarkikalamse
एक काम कर तू, अब ख़त्म कर रोज की लड़ाई को अब कुछ भी नहीं रहा बाकी रोज की सुनवाई को। रिश्तों में कुछ बचा नहीं है, सब बस एक दिखावा है तो क्यों ना दोनों रज़ामंदी से मिटा दें इस खाई को। बंध रहना, घुटते रहना कब तक काम कर पाता है एक दिन तो फंगस लग ही जाती है रखी मिठाई को। सबकी पहचान अपनी, सबकी अपनी जरूरत है कोशिश कर लो बदल ना पाओगे इस सच्चाई को। चलो बहा देते हैं रिश्ते और यादों को गंगा यमुना में बस एक ही काम बचा है रुखसत और विदाई को। बोझ बने जब अपने नाते फिर उसका कोई मोल नहीं क्या मतलब है हम बढ़ाते जाए दुःखों की शहनाई को। #kumaarsthought #kumaar2020 #ladai #सुनवाई #खाईं #सच्चाई #मिठाई एक काम कर तू, अब ख़त्म कर रोज की लड़ाई को अब कुछ भी नहीं रहा बाकी रोज की
भाग्य श्री बैरागी
"बचपन" के सहपाठियों में प्रेम पल्लवित होने लगा, कभी रखते ख़्याल,कभी छुप-छुप कर प्यार होने लगा। इज़हार हुआ इश्क़ का, बातें रातों तक होने लगी, लड़का हुआ थोड़ा बावरा,लड़की होश खोने लगी। नए ज़माने में,"कागज़" के ख़त भी लिखने लगे, दूर हुए कुछ तो यादों के,दरिया भी बहने लगे। घरवालों की रज़ामंदी से,ब्याह की शहनाई बजी, प्यार की "नदी" में अरमानों की "कश्ती" सजी। "दुनिया" एक दूजे की हुए,नवजीवन में बहार आने लगी, सजने लगे नए सपने,नवांगतुक की किलकारियाँ गूंजने लगी। कोरा कागज की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि के चौथे दिन के शब्द "बचपन" के सहपाठियों में प्रेम पल्लवित होने लगा, कभी रखते
Nitesh Prajapati
"परेशानियाँ" (लघुकथा) अनुशीर्षक मे पढ़े। रचना क्रमांक :-7 9/04/2022 "परेशानियाँ" (लघुकथा) जिंदगी का दूसरा नाम ही परेशानियाँ है, कोई भी आदमी यहांँ सर्वगुण संपन्न नहीं होता,चा
Anamika Nautiyal
हम लिखते रहेंगे प्रतियोगिता की चौथे दिन की रचना शीर्षक :-जीवन यात्रा टीम :- (15) काव्यांजलि कैप्टन का नाम :- अनामिका नौटियाल सदस्यों का नाम i) Roshni Rawat ii) Kamla Rawat iii) naini iv) भाग्य श्री बैरागी v) Sandeep Dabral Sendy कोरा काग़ज़ की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि की चौथे दिन की रचना । जिसका शीर्षक है "जीवन यात्रा" "बचपन" के सहपाठियों