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Praveen Jain "पल्लव"

#delhiearthquake डबल इंजन की सरकार का आगाज हुआ है

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पल्लव की डायरी
सियासतों के साथ हुआ खूब दंगल
वायदे खूब परवान चढ़े
दिल दिल्ली का उसने जीता
डबल इंजन की सरकार का आगाज हुआ है
खूब उछली इज्जत दिल्ली की चुनावो में
मतों का विभाजन खूब हुआ
जीरो सीट लाकर कांगेस इतराती
केजू का बंटाहार हुआ है
झाड़ू की सफाई के बाद कमल खिला
मगर सदमा फ्री बिजली पानी और बसों का लगा है
मेहमानबाजी में दिल्ली वन है
पूरे भारत का दर्शन यहाँ होता है
दिल्ली का दिल जीतने के लिये
पूरा दामोदार नई सरकार की नीतियों पर टिका है
                                     प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #delhiearthquake डबल इंजन की सरकार का आगाज हुआ है

Anukaran

#Mic उड़ना भी जरूरी है, ख़्वाब और हकीकत में अंतर समझ में आता है। कुछ कदम चल कर रुकना भी जरूरी है, अपने पराये का साथ समझ आता है, मुश्किलें तो

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उड़ना भी जरूरी है,
ख़्वाब और हकीकत में अंतर समझ में आता है।
कुछ कदम चल कर रुकना भी जरूरी है,
अपने पराये का साथ समझ आता है,
मुश्किलें तो बहुत हैं राहों में,
कुछ कदम बढ़ाने की शुरुआत से, 
हर मुश्किल आसान सा लगता है।
जीत जाएँगे हम अगर खुद पे विस्वास हो,
वरना एक कदम भी चलना सैकड़ो 
योजन सा लगता है।

©Anukaran #Mic 
उड़ना भी जरूरी है,
ख़्वाब और हकीकत में अंतर समझ में आता है।
कुछ कदम चल कर रुकना भी जरूरी है,
अपने पराये का साथ समझ आता है,
मुश्किलें तो

Sonu Gami

#happy_diwali हवा में शीतलता हवा का है आभार खुश है चित्त और खुश है अंतर मन आनंद स्वरूप परमात्मा का है धन्यवाद बिना मांगे ही दिया सबकुछ धन्

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White हवा में शीतलता हवा का है आभार 
खुश है चित्त और खुश है अंतर मन 
आनंद स्वरूप परमात्मा का है धन्यवाद
बिना मांगे ही दिया सबकुछ
धन्यवाद है धन्यवाद परमात्मा का आभार

©Sonu Gami #happy_diwali हवा में शीतलता हवा का है आभार 
खुश है चित्त और खुश है अंतर मन 
आनंद स्वरूप परमात्मा का है धन्यवाद
बिना मांगे ही दिया सबकुछ
धन्

kavi Ravi Srivastava

कभी पूस की ठिठुरन बनकर अंग अंग टीस रहा हूँ ! कभी शब्द का सावन बनकर, अंतर सींच रहा हूँ !! कभी समय के गलियारे में,मुट्ठी भींच रहा हूँ ! जिनसे

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Unsplash कभी पूस की ठिठुरन बनकर अंग अंग टीस रहा हूँ !
कभी शब्द का सावन बनकर, अंतर सींच रहा हूँ !!

कभी समय के गलियारे में,मुट्ठी भींच रहा हूँ !
जिनसे बिछड़ा उनकी यादें,पल पल खींच रहा हूँ !!

✍️✍️
रवि श्रीवास्तव

©Ravi Srivastava कभी पूस की ठिठुरन बनकर अंग अंग टीस रहा हूँ !
कभी शब्द का सावन बनकर, अंतर सींच रहा हूँ !!

कभी समय के गलियारे में,मुट्ठी भींच रहा हूँ !
जिनसे

Sushma

#Ladki शाम घर आकर जब मशायद खुद को झड़ाया तो इतनी आँखें गिरी जमीं पर कुछ घूरती, कुछ रेंगती ,कुछ टटोलती मेरा तन मन कुछ आस्तीन में फंसी थी ,कुछ

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Unsplash शाम घर आकर जब मशायद खुद को झड़ाया तो
इतनी आँखें गिरी जमीं पर
कुछ घूरती, कुछ रेंगती ,कुछ टटोलती मेरा तन मन
कुछ आस्तीन में फंसी थी ,कुछ कॉलर में अटकी थी
कुछ उलझी थी बालों में
गर्दन के पीछे चिपकी मिली
कुछ उंगलियों में पोरों में, कुछ नशीली कुछ रसीली
कोई बेशर्मी से भरी हुई
ये आंखें ऐसी क्यों हैं? उनकी हमारी सी आंखें
पर इतना अंतर क्यों है?
मैं रोज़ प्रार्थना करती हूँ
कुछ न चिपका मिले मुझ पर
जैसी मैं सुबह जाती हूँ घर से ,
वैसे साफ सुथरी आऊं वापस
मगर ऐसा हो पाता नहीं
बोझ उठाये नजरों का हरदम
चलते रहना नियति है मेरी, शायद।

©Sushma #Ladki  शाम घर आकर जब मशायद खुद को झड़ाया तो
इतनी आँखें गिरी जमीं पर
कुछ घूरती, कुछ रेंगती ,कुछ टटोलती मेरा तन मन
कुछ आस्तीन में फंसी थी ,कुछ
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