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Hritik Gupta
White हवाओं का रुख बदलते देखा है बादलों को बिन मौसम बरसते देखा हैं बेसक मैंने कई ठोकरें खाई है ऐसे ही नहीं h.g संभल कर चलना सीखा है..... ©Hritik Gupta #sad_quotes #हवाओं का रुख
Srinivas
आंधियों से कह दो अपना रुख मोड़ लें, हम जब चलते हैं तो तूफान भी रास्ता छोड़ देते हैं। ©Srinivas #Motivated आंधियों से कह दो अपना रुख मोड़ लें, हम जब चलते हैं तो तूफान भी रास्ता छोड़ देते हैं।
Shivkumar
White कुछ यादें ही फकत को छोड़ जाएगा वो जिंदगी से जब रिश्ता को तोड़ जाएगा वो उछल बैठ जाता,ब्ख्वाबों सा कभी जो उन आंखों से रुख, मोड़ जाएगा वो खुद को कहता रहा, जिनका हमसफर उन ख्वाहिशों के पर,न्मरोड़ जाएगा वो साथ रहता कभी, जिनकी हर आह में आंख से आंसू उनके,न्निचोड़ जाएगा वो भर रहा ' शकुचंद्र ' , दिल में गुब्बार एक ये जज़्बात का घड़ा, फोड़ जाएगा वो ©Shivkumar #emotional_sad_shayari #Emotional #Emotionalhindiquotestatic #EmotionalHindi #Nojoto कुछ यादें ही फकत को छोड़ जाएगा वो जिंदगी से जब #रिश्
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- नज़्म हम आपसे उठाते हैं । आपको देख मुस्कराते हैं ।।१ आज बरसो हुए लिए फेरे । गिफ्ट तुमको चलो दिलाते हैं ।।२ प्यार कब बाँटते यहाँ बच्चे । प्यार तो और ये बढाते हैं ।।३ हाथ जब भी लगा तेरे आटा । रुख से लट तब हमीं हटाते हैं ।।४ जब भी आयी विवाह तारीखें । घर को खुशियों से हम सजाते हैं ।।५ घर के बाहर कभी न थी खुशियाँ । सोचकर शाम घर बिताते हैं ।।६ दीप बुझने न दूँ मुहब्बत का । नाम का तेरे सुर लगाते हैं ।।७ है खुशी का महौल घर में अब । बच्चे किलकारियां लगाते हैं ।।८ हाथ मेरा न छोड देना कल । जी न पाये प्रखर बताते हैं ।।९ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- नज़्म हम आपसे उठाते हैं । आपको देख मुस्कराते हैं ।।१
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ
Naveen