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Parasram Arora

प्रतिस्पर्धा...

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ये प्रतिस्पर्धा
मेरे और  वक़्त के बींच
आयोजीत हुई थी. वैसे ही जैसे
तथाकथित कछुवे और खरगोश. की
कहानी में हुआ था.  फर्क इतना हैं कि 
मेरी  कहानी  में  कछुआ  थक कर  सो गया था
पर खरगोश ने  बाज़ी मार ली थी

©Parasram Arora प्रतिस्पर्धा...

Shikha Yadav

प्रतिस्पर्धा स्वयं से की जाए तो बेहतर व उन्नत बनाती है,
दूसरों से की जाए तो ईर्ष्या लाती है।
                    ✍️ शिखा #प्रतिस्पर्धा

मृत्युंजय (तेरा jay)

चुनाव आयोग

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 चुनाव आयोग

vishnu prabhakar singh

#नीति आयोग

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'पहले वाली बात नहीं'
विकल्प की विशेषता है
समाधान की सघनता है
अधुनिकता का आदर्श है
नैतिकता की नीति है
शिक्षा की सुविधा है,न कि
इतिहास का गौरव मात्र !

विप्रणु
 #नीति आयोग

Arora PR

प्रतिस्पर्धा मे #कविता

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Manish Kumar Savita

प्रतिस्पर्धा ही...... #nojotophoto #विचार

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 प्रतिस्पर्धा ही......

follow your heart# megha sen

कभी -कभी हम दुसरो से आगे निकलने के चक्कर मे इतने दूर आ जाते है,
 की हमें अहसास ही नहीं होता की ये रास्ता जहाँ हम पहुंच गए वो कभी हमारा था ही नहीं,
,किसी से प्रतिस्पर्धा हमें या तो आगे ले आती है या पीछे की ओर ले जाती है....
दूसरे से की गयी प्रतिस्पर्धा निराशा देती है,और अपने आप से करने पर परिणाम..........👍👍👍👍

©follow your heart# megha sen #प्रतिस्पर्धा 
#walkingalone

meena ki yare

चुनाव आयोग ने #समाज

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TEJPAL

ज़िंदगी एक प्रतिस्पर्धा #समाज

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🌹जिंदगी एक प्रतिस्पर्धा🌹
आज सुबह "दौड़ते" हुए,
एक व्यक्ति को देखा।
मुझ से आधा "किलोमीटर" आगे था।
अंदाज़ा लगाया कि, मुझ से थोड़ा "धीरे" ही भाग रहा था।
एक अजीब सी "खुशी" मिली।
मैं पकड़ लूंगा उसे,यकीं था। 

मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा।आगे बढ़ते हर कदम के साथ,
मैं उसके "करीब" पहुंच रहा था।
कुछ ही पलों में,
मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था।
निर्णय ले लिया था कि, मुझे उसे "पीछे" छोड़ना है। थोड़ी "गति" बढ़ाई।

अंततः कर दिया।
उसके पास पहुंच,
उससे "आगे" निकल गया।
"आंतरिक हर्ष" की "अनुभूति",
कि, मैंने उसे "हरा" दिया।

बेशक उसे नहीं पता था,
कि हम "दौड़" लगा रहे थे।

मैं जब उससे "आगे" निकल गया,
"एहसास" हुआ
कि दिलो-दिमाग "प्रतिस्पर्धा" पर, इस कद्र केंद्रित था.......

कि

"घर का मोड़" छूट गया,
मन का "सकून" खो गया,
आस-पास की "खूबसूरती और हरियाली" नहीं देख पाया,
ध्यान लगाने और अपनी "खुशी" को भूल गया

और

तब "समझ" में आया,
यही तो होता है "जीवन" में,
जब  हम अपने साथियों को,
पड़ोसियों को, दोस्तों को,
परिवार के सदस्यों को,
"प्रतियोगी" समझते हैं।
उनसे "बेहतर" करना चाहते हैं।
"प्रमाणित" करना चाहते हैं
कि, हम उनसे अधिक "सफल" हैं।
या
अधिक "महत्वपूर्ण"।
बहुत "महंगा" पड़ता है,
क्योंकि अपनी "खुशी भूल" जाते हैं।
अपना "समय" और "ऊर्जा,
उनके "पीछे भागने" में गवां देते हैं।
इस सब में, अपना "मार्ग और मंज़िल" भूल जाते हैं।

"भूल" जाते हैं कि, "नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं" कभी ख़त्म नहीं होंगी।
"हमेशा" कोई आगे होगा।
किसी के पास "बेहतर नौकरी" होगी।
"बेहतर गाड़ी",
बैंक में अधिक "रुपए",
ज़्यादा पढ़ाई,
"खूबसूरत पत्नी",
ज़्यादा संस्कारी बच्चे,
बेहतर "परिस्थितियां"
और बेहतर "हालात"।

इस सब में एक "एहसास" ज़रूरी है
कि, बिना प्रतियोगिता किए, हर इंसान "श्रेष्ठतम" हो सकता है।

"असुरक्षित" महसूस करते हैं चंद लोग
कि, अत्याधिक "ध्यान" देते हैं दूसरों पर ,
कहां जा रहे हैं?
क्या कर रहे हैं?
क्या पहन रहे हैं?
क्या बातें  कर रहे हैं?

"जो है, उसी में खुश रहो"।
लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व।

"स्वीकार" करो और "समझो"
कि, कितने भाग्यशाली हो।

ध्यान नियंत्रित रखो।
स्वस्थ, सुखद ज़िन्दगी जीओ।

"भाग्य" में कोई "प्रतिस्पर्धा" नहीं है।
सबका अपना-अपना है।

"तुलना और प्रतियोगिता" हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं।
अपनी "शर्तों" पर "जीने का आनंद" छीन लेते हैं।

इस लिए अपनी "दौड़" खुद लगाओ, बिना किसी प्रतिस्पर्धा के, इससे असीम सुख आनंद मिलेगा, मन में विकार नही पैदा होगा...............

©TEJPAL ज़िंदगी एक प्रतिस्पर्धा

Kumar Manoj Naveen

#झूठ की प्रतिस्पर्धा #

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**झूठ की प्रतिस्पर्धा **
भेड़िये संख्या में ज्यादा हो तो शेर भी गीदड़ बन जाता है।
जंगल का ये कानून शायद अब शहर में भी लागू होता है।।
झूठ की संख्या देख,अब झूठ ही सच लगता है।
झूठ और बेईमानी न हो जिसमे वो ही मूर्ख लगता है।।
कहावत "सच्चे का बोलबाला 
 झूठे का मुँह काला",अब बेमानी लगता है।
 झूठ बोलने की प्रतिस्पर्धा ही अब योग्यता का प्रमाण देता है।। 
 
**नवीन कुमार पाठक ** #झूठ की प्रतिस्पर्धा #
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