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Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Shashi Bhushan Mishra
बड़ी सिद्दत से चिड़िया घोंसला अपना बनाती है, कई तिनकों से डाली पर हुनर अपना दिखाती है, बड़े ही लार से सेती है अंडे पंख से ढककर, निकल पड़ते हैं चूजे फिर उन्हें दाना चुगाती है, बड़े नाज़ोअदा से पालती कुछ दिन वो बच्चों को, विरासत सौंप अनुभव की उन्हें उड़ना सिखाती है, हिफाज़त में खड़ी रहती है हर पल पास बच्चों के, यही ममता कुदरती उसको जग में माँ बुलाती है, बहुत जल्दी ही बच्चे सीख लेते ख़ुद-परस्ती को, दिया हर सीख माँ का ज़िन्दगी भर काम आती है, रहे कुनबे में ज्यादातर परिंदे उम्रभर 'गुंजन', प्रकृति हर रूप में संदेश हम तक रोज लाती है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #प्रकृति का संदेश#
Arora PR
उम्मीद क़ी सारी नहरे सूख चुकी है हरा भरा वो कहकहो का जंगल उदास है वृक्ष के खड़ंखड़ाते पत्तों से छन छन कर प्रकृति का दर्द पिघल कर बह रहा है ©Arora PR प्रकृति का दर्द
Lyricist Gopal Boyal
हाल बयां कर रहा है ये कुदरत खेल जो उसके साथ खेले है शक्ल-सूरत बिगाड़ी है ना उसकी तैयार हो जाओ अब बारी उसकी है शक्ल क्या नश्ल भी बिगड़ जाएगी जब पलटवार उसका होगा एक बूंद नीर के लिए भी तरसेगा तू इंसान जिस माटी की बिसात जो बिगाड़ी है तूने अब औकात तेरी मिट जाएगी तू अगर चाहता है कि तेरा वज़ूद बना रहे सवांर दे इस धरती को उसके गहनों से लौटा दे वही खुसबू इस चमन की और इस माँ का कर्ज उतार दे मय सुत फिर देख खुशियां-आनंद सिमटे नहीं सिमटेगा ©Lyricist Gopal Boyal प्रकृति का इन्तेक़ाम
Raone
इंसानों का ज़ुल्म प्रकृति भी क्या ख़ूब सह गयी । अब बस प्रकृति का सबक इंसानों के लिए बाकी रह गयी।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी सबक प्रकृति का
gopal soni
यह प्रकृति का वो ऐहसास हैं, जो हर कोई पूरा नही कर पाता... प्रकृति का ऐहसास