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प्रभाकर अजय शिवा सेन
इन माताओं से बढ़े,सदा देश का मान। धन्य करें आशीष दें,ममता मूर्ति महान।। ©प्रभाकर अजय शिवा सेन इन माताओं से बढ़े।
Sunil lambadi
माँ क्या लिखूं तेरे लिए, तुझसे ही मेरी दुनिया है। तेरे पावन खोक में जन्मा ऋणी जन्मांतर का है श्वास तेरी सब कुछ तेरा तेरे हर त्याग को प्रणाम। एक योद्धा कवच की तरह करती सब आफत को विफल। धन्य देव,माता तुझे बनाया, संसार की जननी तुझे बनाया। बेटा बनने देव धरा पधारे, तेरी ममता पाने लीला रचाये। अंकुर हम, तुम कल्पवृक्ष हो तुझे पाकर पावन जन्म सफल है कुछ निंदनीय दूषित मां के कपूत, माता कुमाता कभी न पाया है। धन्य धन्य भाग मेरे तुझे पाया है, माँ 'रवि' तुझे प्रणाम करता है। बनूँ हर जन्म में तेरा बेटा, यही आशीर्वाद तुझसे पाता हूं।। प्यारी माँ ©Sunil lambadi #MothersDay सभी माताओं को प्रणाम......
Rakhi Yadav
"MOTHER'S DAY" पर सभी "माताओं" के प्रति मैंने अपने विचार व्यक्त किए हैं I "जो" इस प्रकार हैं :- ...मां-मां होती हैं... मां -मां होती हैं..... किसी की भी "मां" हो, अच्छी हो,बुरी हो,"जैसी"भी हो, मां -मां होती हैI "सकारात्मक"सोच की नजर से देखा जाए; तो मां सिर्फ अच्छी ही नजर आएगी I मां अपने बच्चों से मान-सम्मान-आदर की इच्छा मात्र रखती है I "बच्चों का भी फर्ज है" "माता-पिता" का मान-सम्मान-आदर करने का ;करें और करना भी चाहिए I उसी प्रकार "जैसा" कि हम सब जानते हैं ;"मां" बच्चों की प्रथम पाठशाला व गुरू होती है I उसी नाते "मां का भी फर्ज है" मां अपने बच्चों को समझाएं-सिखाएं "जैसे"हम तुम्हारे माता-पिता हैं; इसी प्रकार तुम्हारे जीवन साथियों के माता-पिता भी तुम्हारे माता-पिता होंगेI कभी भी तुम भेदभाव नहीं करनाI अगर इस संसार के सभी "माता-पिता"और बच्चों की सोच-समझ एकता रूपी हो जाए I तो बेटी को विदा करते समय माता-पिता,भाई और बेटी को भी विदा लेते समय दुख नहीं होगाI फिर किसी और के घर की बेटी को,अपने घर की बहू बनाने के लिए इतना सोच -विचार नहीं करना पड़ेगाI तभी माता-पिता और बच्चे भी समझ पाएंगे;कि किसी की भी मां हो "मां-मां"होती है I फिर MOTHER'S DAY पर ही नहीं;हर दिन HAPPY MOTHER'S DAY होगा I 🌹🌹🌹🌹 Rakhi Yadav # "हैप्पी मदर्स डे"सभी माताओं को....
Ek villain
मां बनने जैसी सुखद नियमित के साथ भी कई शारीरिक मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्या जुड़ी हुई है पोस्ट पाटन डिप्रेशन यानी प्रसव उपरांत होने वाला अवसाद भी ऐसी ही परेशानी है कई बार मां बन जाने की नई भूमिका में वह उदासी चिड़चिड़ापन और सबसे अलग-थलग पड़ जाने की सोच यू गिरने लगती है कि आत्महत्या के कगार पर ले जाने वाली स्थिति आ जाती हैं अपनों के सहयोग और संभल के अभाव में कई महिलाएं से अतिवादी कदम उठा भी लेती हैं दरअसल मृत्यु तत्व की महामंडल बना और दायित्व बोध के भाव को लेकर बीते हुए रहते हैं नहीं माताओं को मानसिक और मनोवैज्ञानिक तकलीफों का जिक्र कम ही होता है शारीरिक बदलाव को समझने पर भी ध्यान दिया जाता है इससे उबरने में लगने वाला समय के प्रति भी परिवार जन जागरूक होते हैं लेकिन मन के मोर्चे पर पैदा हुए इस नई भूमिका से जुड़ी बातें कम ही समझ जाती हैं तकलीफ है फायदे की ऐसी तमाम पहलुओं पर ना ही तो कोई संवाद होता है और ना ही सफल दिया जाता है नतीजा जनत इस सुखद भूमिकाओं के पहले गांव पर कई महिलाओं को अकेलापन और अवसाद घेर लेता है हाल ही में उच्च शिक्षा महत्वकांक्षी युवक ने मां बनने के बाद आए ठहराव के चलते पोस्टमार्टम डिप्रेशन के आंकड़े बड़े हैं ©Ek villain #माताओं और अपनों का साथ #City
Naresh Chandra
चाँद को देखकर, मैं तो पारण करूँ पिया की छवि, चाँद मे निहारा करूँ। चहुंओर दीखती हूँ, प्रियतम की छवि चलनी से देखकर, मैं निहारा करूँ।। चलनी का छिद्र, देता संदेश है यही हर तरफ पिय का, अपने नजारा करूँ। व्रत का मतलब यही, उम्र बढ़े प्रियतम की सदा साथ हो प्रियतम का,यही विनती करूँ। लक्ष्मीनरेश.. ©Naresh Chandra सभी शादीशुदा बहन, बेटियों, सखियों, माताओं को समर्पित #लक्ष्मीनरेश #Karwachauth