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YumRaaj ( MB जटाधारी )
यमराजः अथवा धर्मराजः संसारस्य सर्वेषां जीवानां प्राणिनां अन्तिमसंयंत्रणकर्ता च अस्ति। अयम् यमराजः वेदपुरुषस्य पुत्रः च आहूतः अस्ति। अत्र अस्मिन् लेखे यमराजस्य परिचयः निरूप्यते। नाम: यमराजस्य नाम धर्मराजः अथवा यमः इति प्रसिद्धमस्ति। "यम" शब्दः संस्कृतभाषायाम् "नियमने" अर्थे प्रयुज्यते, यथा यमः जीवानां कर्मणि नियमयति इति नामकरणं योग्यं भवति। तस्य अपि अन्ये नामानि च सन्ति, यथा अंतकः, कालः, वैवस्वतः, धर्मराजः, मृत्युः इत्यादयः। पितरोऽधिपतिः: यमराजः पितृलोकस्य पितरोऽधिपतिः अस्ति। पितृलोकं अस्य अधिष्ठानं भवति। पितृलोके प्रविष्टे सर्वेऽपि जीवाः यमराजस्य सन्निधौ आविष्कृतं भवन्ति। यमराजः तेषां कर्मणि नियमयति च तथा अन्यायानि प्रशास्तुम् अर्हति। यमलोकः: यमराजस्य निवासस्थलं यमलोकः नाम अस्ति। तत्र तेषां जीवानां कर्मफलं निरीक्ष्य यमराजः तथा विचार्य तेषां योनिसंस्थानं नियमयति। यमलोके यात्रां कृत्वा जीवाः तेन योनिसंस्थानेन सम्बद्धाः भवन्ति। यमदूताः: यमराजस्य सेनापतयः यमदूताः नाम्ना विख्याताः भवन्ति। ये यमराजस्य अधीना अस्ति ते यमदूताः यमराजस्य आदेशानुसारिणसर्वेभ्यः जीवेभ्यः सन्देशान् प्रेषयन्ति च यमराजस्य अधीना आवर्तन्ते। यमदूताः यात्रां कृत्वा जीवानां कर्मफलं तथा पापपुण्यानि निरूपयन्ति च। यमदूताः यमराजस्य अद्यतनं चरित्रं धारयन्ति च भवन्ति। यमराजस्य पाञ्चालिकं रूपम्: यमराजस्य पाञ्चालिकं रूपं अस्ति। पाञ्चालिकं रूपं यमराजस्य विभूषणानि अस्ति, यथा धर्मचक्रं, दण्डं, पाशं, यमगुप्तं च। धर्मचक्रं यमराजस्य हस्ते धारितं भवति, यथा धर्मस्य प्रतिष्ठानं। दण्डः यमराजस्य हस्ते धारितं भवति, यथा यमराजस्य न्यायविधानं। पाशः यमराजस्य हस्ते धारितं भवति, यथा यमराजस्य बन्धनानि। यमगुप्तः यमराजस्य सहायकः अस्ति, यथा यमराजस्य सङ्केतकः। यमराजस्य धर्मः: यमराजस्य धर्मः अत्यंत महत्त्वपूर्णः अस्ति। यमराजः सन्तानं धर्मं नियमयति च, यथा न्यायस्य पालनं, पापपुण्यानां फलानां वितरणं च। यमराजस्य धर्मस्य वेदपुरुषैः प्रमाणं उपपाद्यते च। यमराजस्य अर्थः: यमराजस्य अर्थः सम्पूर्ण जगत्सृष्ट्यादिकर्तृभ्यः विभूषितः अस्ति। यमराजः समस्तं कर्मफलं नियन्त्रयति च तथा अधिकृतं अनुशास्ति। यमराजस्य अर्थः धर्मरूपेण भगवत्प्राप्तौ निर्वहति च। इत्येवं यमर ©YumRaaj YumPuri Wala #navratri #यमनियम यमराज, नाम, स्वामी, यमलोक, यमदूत, यमराज पांचालिका, यमधर्म, अर्थ! #Yumraaj यमराज या धर्मराज संसार के सभी प्राणियों के परम
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हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- तात। देखो, ये नकुल के सगे मामा शल्य मरे पड़े है। इन्हें ज्ञाता धर्मराज युधिष्ठिर ने युद्ध में मारा है। पुरुषोत्तम। जो सदा और सर्वत्र तुम्हारे साथ होड़ लगाये रहते थे वे ही ये महाबली मद्रराज शल्य यहां मारे जाकर चिर निद्रा में सो रहे हैं। 📜 तात। ये वे ही शल्य हैं जिन्होंने युद्ध में सूतपुत्र कर्ण के रथ की बागडोर संभालते समय पाण्डवों की विजय के लिये उसके तेज और उत्साह को नष्ट किया था। अहो। धिक्कार है। देखो न, शल्य के पूर्ण चन्द्रमा की भांति दर्षनीय तथा कमल दल सदृष नेत्रों वाले व्रणरहित मुख को कौओं ने कुछ-कुछ काट दिया है। 📜 श्रीकृष्ण सुवर्ण के समान कान्तिमान शल्य के मुख से तपाये हुए सोने के समान कान्तिवाली जीभ बाहर निकल आयी है और पक्षी उसे नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। युधिष्ठिर के द्वारा मारे गये तथा युद्ध में शोभा पाने वाले मद्रराज शल्य को ये कुलांगनाऐं चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और रो रही हैं। 📜 अत्यन्त महीन वस्त्र पहने हुए ये क्षत्राणियां क्षत्रिय षिरोमणि नरश्रेष्ठ मद्रराज के पास आकर कैसा करूण क्रन्दन कर रही हैं। रणभूमि गिरे हुए राजा शल्य को उनकी स्त्रियां उसी तरह सब ओर से घेरे हुए हैं, जैसे एक बार की व्याही हुई हथनियां कीचड़ में फंसे हुए गजराज को घेर कर खड़ी हों। 📜 वृष्णिनन्दन। देखो, ये दूसरों को शरण देने बाले शूरवीर शल्य बाणों से छिन्न-भिन्न होकर वीर शैया पर सो रहे हैं। ये पर्वतीय, तेजस्वी एवं प्रतापी राजा भगदत्त हाथ में हाथी का अंकुष लिये पृथ्वी पर सो रहे हैं इन्हें अर्जुन ने मार गिराया था। इन्हें हिंसक जीव जन्तु खा रहे हैं। 📜 उन महाबाहु ने कुन्तीकुमार धनंजय के साथ युद्ध करके उन्हे संषय में डाल दिया था; परंतु अंत में उन कुन्तीकुमार के हाथ से ही मारे गये। संसार में षोर्य और बल में जिनकी समानता करने वाला दूसरा कोई नही है, वे ही ये युद्ध में श्यंकर कर्म करने वाले श्ीष्मजी घायल हो बाणषैया पर सो रहे है। 📜 इनके सिर पर यह सोने माला विराज रही है जो केषों की सोभा बढाती सी जान पड़ती है। जैसे वृत्रासुर के साथ इन्द्र का अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ था, उसी प्रकार इन भगदत्त के साथ कुन्ती कुमार अर्जुन का अत्यन्त दारूण एवं रोमांचकारी युद्ध हुआ था। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं, ऐसा जान पड़ता है, मानो प्रलयकाल में काल प्रेरित हो सूर्यदेव आकाष से भूमि पर गिर पड़े हैं। केशव। जैसे सूर्य सारे जगत् को ताप देकर अस्ताचल को चले जाते हैं, उसी तरह ये पराक्रमी मानव सूर्य रणभूमि में अपने शस्त्रों के प्रताप से शत्रुओं को संतप्त करके अस्त हो रहे हैं। 📜 जो ऊध्र्वरेता ब्रम्हचारी रहकर कभी मर्यादा से च्युत नहीं हुए हैं, उन भीष्म को शूर सेवित वीरोचित शयन बाणषैया पर सोते हुए देख लो। जैसे भगवान स्कन्द सरकण्डों के समूह पर सोये थे, उसी प्रकार ये भीष्मजी कर्णी, नालीक और नाराच आदि बाणों की उत्तम शैया बिछाकर उसी का आश्रय ले सो रहे हैं. ©N S Yadav GoldMine #yogaday हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व
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रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं पढ़िए महाभारत !! 📖 महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 गान्धारी बोलीं- माधव। जो परिश्रम को जीत चुके थे, उन मेरे सौ पुत्रों को देखो, जिन्हें रणभूमि में प्रायः भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला है। सबसे अधिक दु:ख मुझे आज यह देखकर हो रहा है कि ये मेरी बालबहुऐं, जिनके पुत्र भी मारे जा चुके हैं, रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं। 📜 ये महल की अट्टालिकाओं में आभूषणभूषित चरणों द्वारा विचरण करने वाली थीं; परंतु आज विपत्ति की मारी हुई ये इस खून से भीगी हुई वसुधा का स्पर्श कर रही हैं। ये दु:ख से आतुर हो पगली स्त्रियों के सामन झूमती हुई सब ओर विचरती हैं तथा बड़ी कठिनाई से गीधों, गीदड़ों और कौओं को लाशों के पास से दूर हटा रही हैं। 📜 यह पतली कमर वाली सर्वांग सुन्दरी दूसरी वधु युद्धस्थल का भयानक द्श्य देखकर दुखी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ती हैं। महाबाहो। यह लक्ष्मण की माता एक भूमिपाल की बेटी है, इस राजकुमारी की दशा देखकर मेरा मन किसी तरह शांत नहीं होता है। 📜 कुछ स्त्रियां रणभूमि में मारे गये अपने भाईयों को, कुछ पिताओं को और कुछ पुत्रों को देखकर उन महावाहो वीरों को पकड़ लेती और वहीं गिर पड़ती हैं । अपराजित वीर। इस दारूण संग्राम में जिनके बन्धु बान्धव मारे गये हैं उन अधेड़ और बूढी स्त्रियों का यह करूणाजनक क्रन्धन सुनो। 📜 महाबाहो। देखो, यह स्त्रियां परिश्रम और मोह से पीडि़त हो टूटे हुए रथों की बैठकों तथा मारे गये हाथी घोड़े की लाशों का सहारा लेकर खड़ी हैं। श्रीकृष्ण। देखो, वह दूसरी स्त्री किसी आत्मीयजन के मनोहर कुण्डलों से सुशोभित हो और उंची नासिका वाले कटे हुए मस्तक को लेकर खड़ी है। 📜 अनघ। मैं समझती हूं कि इन अनिन्ध सुन्दरी अविलाओं ने तथा मन्द बुद्धि वाली मैंने भी पूर्व जन्मों में कोई बड़ा भारी पाप किया है, जिसके फलस्वरूप धर्मराज ने हम लोगों ने वड़ी भारी विपत्ति में डाल दिया है। जर्नादन। 📜 बृष्णिनन्दन। जान पड़ता है कि किये हुए पुण्य और पाप कर्मों का उनके फल का उपभोग किये बिना नाश नहीं होता है। माधव। देखो, इन महिलाओं की नई अवस्था है। इनके वक्ष स्थल और मुख दर्शनीय हैं। इनकी आंखों की वरूणियां और सिर के केश काले हैं। 📜 ये सब की सब कुलीन और सलज हैं। ये हंष के समान गद्द स्वर में बोलती हैं; परंतु आज दु:ख और शोक के मोहित हो चहचहाती सारसियों के समान रोती विलखती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी हैं। कमलनयन। खिले हुए कमल के समान प्रकाशित होने वाले युवतियों के इन सुन्दर मुखों को यह सूर्य देव संतप्त कर रहे हैं। 📜 वासुदेव। मतवाले हाथी के समान घमण्ड में चूर रहने वाले मेरे ईश्यालु पुत्रों की इन रानियों को आज साधारण लोग देख रहे हैं। गोविन्द। देखो, मेरे पुत्रों की ये सौ चन्द्रकार चिन्हों से सुशोभित ढालें, सूर्य के समान तेजस्विनी ध्वजाऐं, स्ववर्ण में कवच, सोने के निष्क तथा सिरस्त्राण घी की उत्तम आहुति पाकर प्रज्वलित हुई अग्नियों के समान पृथ्वी पर देदीप्तमान हो रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #MainAurChaand रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं पढ़िए महाभारत !! 📖 महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श
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रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं पढ़िए महाभारत !! 📖 महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 गान्धारी बोलीं- माधव। जो परिश्रम को जीत चुके थे, उन मेरे सौ पुत्रों को देखो, जिन्हें रणभूमि में प्रायः भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला है। सबसे अधिक दु:ख मुझे आज यह देखकर हो रहा है कि ये मेरी बालबहुऐं, जिनके पुत्र भी मारे जा चुके हैं, रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं। 📜 ये महल की अट्टालिकाओं में आभूषणभूषित चरणों द्वारा विचरण करने वाली थीं; परंतु आज विपत्ति की मारी हुई ये इस खून से भीगी हुई वसुधा का स्पर्श कर रही हैं। ये दु:ख से आतुर हो पगली स्त्रियों के सामन झूमती हुई सब ओर विचरती हैं तथा बड़ी कठिनाई से गीधों, गीदड़ों और कौओं को लाशों के पास से दूर हटा रही हैं। 📜 यह पतली कमर वाली सर्वांग सुन्दरी दूसरी वधु युद्धस्थल का भयानक द्श्य देखकर दुखी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ती हैं। महाबाहो। यह लक्ष्मण की माता एक भूमिपाल की बेटी है, इस राजकुमारी की दशा देखकर मेरा मन किसी तरह शांत नहीं होता है। 📜 कुछ स्त्रियां रणभूमि में मारे गये अपने भाईयों को, कुछ पिताओं को और कुछ पुत्रों को देखकर उन महावाहो वीरों को पकड़ लेती और वहीं गिर पड़ती हैं । अपराजित वीर। इस दारूण संग्राम में जिनके बन्धु बान्धव मारे गये हैं उन अधेड़ और बूढी स्त्रियों का यह करूणाजनक क्रन्धन सुनो। 📜 महाबाहो। देखो, यह स्त्रियां परिश्रम और मोह से पीडि़त हो टूटे हुए रथों की बैठकों तथा मारे गये हाथी घोड़े की लाशों का सहारा लेकर खड़ी हैं। श्रीकृष्ण। देखो, वह दूसरी स्त्री किसी आत्मीयजन के मनोहर कुण्डलों से सुशोभित हो और उंची नासिका वाले कटे हुए मस्तक को लेकर खड़ी है। 📜 अनघ। मैं समझती हूं कि इन अनिन्ध सुन्दरी अविलाओं ने तथा मन्द बुद्धि वाली मैंने भी पूर्व जन्मों में कोई बड़ा भारी पाप किया है, जिसके फलस्वरूप धर्मराज ने हम लोगों ने वड़ी भारी विपत्ति में डाल दिया है। जर्नादन। 📜 बृष्णिनन्दन। जान पड़ता है कि किये हुए पुण्य और पाप कर्मों का उनके फल का उपभोग किये बिना नाश नहीं होता है। माधव। देखो, इन महिलाओं की नई अवस्था है। इनके वक्ष स्थल और मुख दर्शनीय हैं। इनकी आंखों की वरूणियां और सिर के केश काले हैं। 📜 ये सब की सब कुलीन और सलज हैं। ये हंष के समान गद्द स्वर में बोलती हैं; परंतु आज दु:ख और शोक के मोहित हो चहचहाती सारसियों के समान रोती विलखती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी हैं। कमलनयन। खिले हुए कमल के समान प्रकाशित होने वाले युवतियों के इन सुन्दर मुखों को यह सूर्य देव संतप्त कर रहे हैं। 📜 वासुदेव। मतवाले हाथी के समान घमण्ड में चूर रहने वाले मेरे ईश्यालु पुत्रों की इन रानियों को आज साधारण लोग देख रहे हैं। गोविन्द। देखो, मेरे पुत्रों की ये सौ चन्द्रकार चिन्हों से सुशोभित ढालें, सूर्य के समान तेजस्विनी ध्वजाऐं, स्ववर्ण में कवच, सोने के निष्क तथा सिरस्त्राण घी की उत्तम आहुति पाकर प्रज्वलित हुई अग्नियों के समान पृथ्वी पर देदीप्तमान हो रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #MainAurChaand रणभूमि में केश खोले चारों ओर अपने स्वजनों की खोज में दौड़ रही हैं पढ़िए महाभारत !! 📖 महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श
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भीमसेन का गांधारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मांगना पढ़िए महाभारत !! 📙📙 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र्चदश अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 भीमसेन का गान्धारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मॉंगना, युधिष्ठिर का अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारी के दृष्टिपात से युधिष्ठिर के पैरों के नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुन का भयभीत होकर श्रीकृष्ण के पीछे छिप जाना, पाण्डवों का अपनी माता से मिलना, द्रौपदी का विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारी का उन दोनों को धीरज बँधाना. 📜 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! गान्धारी की यह बात सुनकर भीमसेन नें डरे हुए की भॉंति विनय पूर्वक उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा। माताजी ! यह अधर्म हो या धर्म मैंने दुर्योधन से डरकर अपने प्राण बचानेके लिये ही वहॉं ऐसा किया था अत: आप मेरे उस अपराधको क्षमा कर दें। 📜 आप के उस महाबली पुत्र को कोई भी धर्मानुकूल युद्ध करके मारने का साहस नहीं कर सकता था अत: मैंने विषमता पूर्ण बर्ताव किया। पहले उसने भी अधर्म से ही राजा युघिष्ठिर को जीता था और हम लोगों के साथ सदा धोखा किया था, इसलिये मैंने भी उसके साथ विषम बर्ताव किया। कौरव सेना का एकमात्र बचा हुआ यह पराक्रमी वीर गदायुद्ध के द्वारा मुझे मारकर पुन: सारा राज्य हर न ले, 📜 इसी आशड्का़ से मैंने वह अयोग्य बर्ताव किया था। राजकुमारी द्रौपदी से, जो एक वस्त्र धारण किये रजस्वला अवस्था में थी, आपके पुत्रने जो कुछ कहा था, वह सब आप जानती हैं। दुर्योधनका संहार किये बिना हमलोग निष्कण्टक प्रथ्वी का राज्य नहीं भोग सकते थे, इसलिये मैंने यह अयोग्य कार्य किया। 📜 आपके पुत्र ने तो हम सब लोगों का इससे भी बढ़कर अप्रिय किया था कि उसने भरी सभामें द्रौपदी को अपनी बॉंयी जॉंघ दिखायी। आपके उस दुराचारी पुत्रको तो हमें उसी समय मार डालना चाहिये था परंतु धर्मराज की आज्ञा से हमलोग समयके बन्धन में बँधकर चुप रह गये। रानी ! आपके पुत्रने उस महान् वैरकी आगको और भी प्रज्वलित कर दिया और हमें वन में भेजकर सदा क्लेश पहुँचाया। 📜 इसीलिये हमने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया है। रणभूमि में दुर्योधन का वध करके हमलोग इस वैर से पार हो गये। राजा युधिष्ठिर को राज्य मिल गया और हमलोगोंका क्रोध शान्त हो गया। गान्धार्युवाच गान्धारी बोलीं–तात ! तुम मेरे पुत्र की इतनी प्रशंसा कर रहे हो इसलिये यह उसका वध नहीं हुआ (वह अपने यशोमय शरीर से अमर है) और मेरे सामने तुम जो कुछ कह रहे हो, 📜 वह सारा अपराध दुर्योधन ने अवश्य किया है। भारत ! परंतु वृषसेनने जब नकुलके घोड़ो को मारकर उसे रथहीन कर दिया था, उस समय तुमने युद्ध में दु:शासन-को मारकर जो उसका खून पी लिया, वह सत्पुरुषों द्वारा निन्दित और नीच पुरुषों द्वारा सेवित घोर क्रूरता पूर्ण कर्म है। वृकोदर ! तुमने वही क्रूर कार्य किया है, इसलिये तुम्हारे द्वारा सत्यन्त अयोग्य कर्म बन गया है। 📜 भीमसेन उवाच भीमसेन बोले-माताजी ! दूसरे का भी खून नहीं पीना चाहिये फिर अपनाही खून कोई कैसे पी सकता है ? जैसे अपना शरीर है, वैसे ही भाई का शरीर है। अपने में और भाई में कोई अन्तर नहीं है। मॉं ! आप शोक न करें। वह खून मेरे दॉंतो और ओठों को लॉंघकर आगे नहीं जा सका था। इस बातको सूर्य-पुत्र यमराज जानते हैं, कि केवल मेरे दोनों हाथ ही रक्त में सने हुए थे। 📜 युद्ध में वृषसेन के द्वारा नकुल के घोड़ो को मारा गया देख जो दु:शासन के सभी भाई हर्ष से उल्लसित हो उठे थे, उनके मनमें वैसा करके मैंने केवल त्रास उत्पन्न किया था। द्यतक्रीडा के समय जब द्रौपदी का केश खींचा गया, उस समय क्रोध में भरकर मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी याद हमारे हृदय में बराबर बनी रहती थी। ©N S Yadav GoldMine #woaurmain भीमसेन का गांधारी को अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा मांगना पढ़िए महाभारत !! 📙📙 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व पत्र
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राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहो से दबाकर तोड़ डाला पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री पर्व द्वादश अध्याय: श्लोक 1-23 पाण्डवों का धृतराष्ट्र से मिलना, धृतराष्ट्र के द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा का भडग्.होना और शोक करनेपर श्री कृष्ण का उन्हें समझाना.{Bolo Ji Radhey Radhey} 🌷वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं-महाराज जनमेजय ! समस्त सेनाओंका संहार हो जानेपर धर्मराज युधिष्ठरने जब सुना कि हमारे बूढ़े ताऊ संग्राममें मरे हुए वीरोंका अन्तयेष्टिकर्म कराने के लिये हस्तिनापुर चल दियें हैं, तब वे स्वयं पुत्रशोक से आतुर हो पुत्रोंके ही शोकमें डूबकर चिन्तामग्न हुए राजा धृतराष्ट् के पास अपने सब भाइयोंके साथ गये। उस समय दशार्हकुलनन्दन वीर महात्मा श्रीकृष्ण, सात्यकि और युयुत्सु भी उनके पीछे-पीछे गये। 🌷अत्यन्त दु:खसे आतुर और शोकसे दुबली हुई द्रौपदीने भी वहॉं आयी हुई पत्र्चाल- महिलाओं के साथ उनका अनु-सरण किया। भरतश्रेष्ठ ! गड्गातटपर पहुँचकर युधिष्ठरने कुररीकी तरह आर्तस्वरसे विलाप करती हुई स्त्रियोंके कई दल देखे । वहॉं पाण्डवों के प्रिय और अप्रिय जनोंके लिय हाथ उठाकर आर्तस्वरसे रोती और करुण क्रनदन करती हुई सहस्त्रों महिलाओंने राज युधिष्ठिरको चारों ओरसे घेर लिया। 🌷वे बोलीं – अहो ! राजाकी वह धर्मज्ञता और दयालुता कहॉं चली गयी कि इन्होंने ताऊ, चाचा, भाई, गुरुपुत्रों ओर मित्रोंका भी वध कर डाला। महाबाहो ! द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और जयद्रथका भी वध करके आपके मनकी कैसी अवस्था हुई ? भरतवंशी नरेश ! अपने ताऊ, चाचा और भाइयोंको, दुर्जय वीर अभिमन्युको तथा द्रौपदीके सभी पुत्रोंकोन देखनेपर इस राज्यसे आपका क्या प्रयोजन है। 🌷धर्मराउज महाबाहु युघिष्ठर ने कुररी की भाँति क्रन्दन करती हुई स्त्रियोंके घेरेको लॉंघकर अपने ताऊ धृतराष्ट्रको प्रणाम किया। तत्पश्चात् सभी शुत्रुसूदन पाण्डवों ने धर्मानुसार ताऊ को प्रणाम करके अपने नाम बताये। पुत्रवध से पीडित हुए पिताने शोक से व्याकुल हो आने पुत्रोंका अन्त करने वाले पाण्डुपुत्र युघिष्ठिर को हृदय से लगाया; परंतु उस समय उनका मन प्रसन्न नहीं था। भरतनन्दन ! धर्मराज को हृदयसे लगाकर उन्हे सान्तवना दे धृतराष्ट्र भीम को इस प्रकार खोजने लगे, मानो आग बनकर उन्हें जला डालना चाहते हों। 🌷उस समय उनकें मनमें दुर्भावना जाग उठी थी । शोकरूपी वायुसे बढ़ी हुई उनकी क्रोधमयी अग्नि ऐसी दिखायी दे रही थी, मानो वह भीमसेनरूपी वनको जलाकर भस्म कर देना चाहती हो। भीमसेनके प्रति उनके सुगम अशुभ संकल्पको जानकर श्री-कृष्णने भीमसेनको झटका देकर हटा दिया और दोनों हाथों से उनकी लोहमयी मूर्ति धृतराष्ट्रके सामनेकर दी। महाज्ञानी और परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीकृष्णको पहलेसे ही उनका अभिप्राय ज्ञात हो गया था, इसलिये उन्होंने वहॉं यह व्यवस्था कर ली थी। 🌷बलवान् राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेनको ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहोसे दबाकर तोड़ डाला। राजा धृतराष्ट्रमेंदस हजार हाथियोंका बल था तो भी भीमकी लोहमयी प्रतिमाको तोड़कर उनकी छाती व्यथित हो गयी और मुँहसे खून निकलने लगा । वे उसी अवस्थामें खूनसे भींगकर पृथ्वीपर गिर पडे़, मानो ऊपरकी डालीपर खिले हुए लाल फूलोंसे सुशोभित पारिजातका वृक्ष धराशायी हो गया हो। 🌷उस समय उनके विद्वान् सारथि गवल्यणपुत्र संजय-ने उन्हें पकड़कर उठाया और समझा-बुझाकर शान्त करते हुए कहा—आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। जब रोषका आवेश दूर हो गया, तब वे महामना नरेश क्रोध छोड़कर शोकमें डूब गये और हा भीम ! हा भीम ! कहते हुए विलाप करने लगे। उन्हें भीमसेनके वधकी आशड्का से पीडित और क्रोध-शून्य हुआ जान पुरुषोंत्तम श्रीकृष्णने इस प्रकार कहा-महाराज धृतराष्ट्र ! आप शोक न करें। ये भीम आपके हाथसे नहीं मारे गये हैं। प्रभो ! यह तो लोहेकी एक प्रतिमा थी, जिसे आपने चूर-चूर कर डाला। ©N S Yadav GoldMine #BhaagChalo राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहो से दबाकर तोड़ डाला पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री
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राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 21-29 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 अहो। आपने इस गूढ रहस्य को छिपाकर हम लोगों को मार डाला। कर्ण की मृत्यु से भाईयों सहित हमें बड़ी पीड़ा हो रही है। अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और पान्चालों के विनाश से और कुरूकुल इस पतन से हमें जितना दु:ख हुआ था उससे सौ गुना यह दु:ख इस समय मुझे अत्यन्त व्यथित कर रहा है। 📜 अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूं, और इस तहर जल रहा हूं, मानो किसी ने जलती आग में रख दिया हो। यदि पहले ही यह बात मुझे मालूम हो गयी होती तो कर्ण को पाकर हमारे लिये इस जगत् में कोई स्वर्गीय वस्तु भी अलभ्य नहीं होती तथा कुरूकुल का अंत कर देने बाला यह घोर संग्राम भी नहीं हुआ होता। 📜 राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे। रोते-रोते उन्होंने धीरे-धीरे कर्ण के लिये जलदान किया। यह सब सुनकर वहां एकत्र हुई सारी स्त्रियां जो वहां जलांजलि देने के लिये सब ओर खड़ी थीं सहसा जोर-जोर से रोने लगीं। 📜 तदन्तर बुद्धिमान कुरूराज युधिष्ठिर ने भाई के प्रेम से कर्ण की स्त्रियों को परिवार सहित बुलवा लिया और उन सबके साथ रहकर उन धर्मात्मा बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर विधि पूर्वक कर्ण का प्रेत कृत्य सम्पन्न किया। तदन्तर वे बोले- मुझ पापी ने इस रहस्य को न जानने के कारण अपने बड़े भाई को मरवा दिया। 📜 अतः आज से स्त्रियाँ के मन में कोई गुप्त रहस्य नहीं छिपा रह सकेगा। ऐसा कहकर ब्याकुल इन्द्रियों वाले राजा युधिष्ठिर गंगाजी के जल से निकले और समस्त भाईयों के साथ तट पर आये।। एन एस यादव।। {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 स्त्रीपर्व सम्पूर्ण।। ©N S Yadav GoldMine #Aurora राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्
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युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-16 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधि पूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। 📜 जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात । यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी कि आप सब लोग इन सबके प्रेत कार्य को सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया। 📜 राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रों सहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकय राजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। एन एस यादव।।। 📜 इसके बाद वहां अनेक देसो से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #Sitaare युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्ल
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श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, उठो। शोक में मन को न डुबाओ। तुम्हारे ही अपराध से कौरवों का विनाश हुआ है। तुम्हारा पुत्र दुर्योधन दुरात्मा, दूसरों से ईष्र्या एवं जलन रखने वाला और अत्यन्त अभिमानी था। दुष्कर्म परायण, निष्ठुर, वैर का मूर्तिमान स्वरूप और बड़े-बूढों की आज्ञा का उल्लंघन करने बाला था। 📜 तुमने उसको अगुआ बनाकर जो अपराध किया है, उसे क्या तुम अच्छा समझती हो? अपने ही किये हुए दोषों को यहां मुझ पर कैसे लादना चाहती हो? यदि कोई मनुष्य किसी मरे हुए सम्बन्धी, नष्ठ हुई वस्तु अथवा बीती हुई बात के लिये शोक करता है तो वह एक दु:ख से दूसरे दु:ख का भागी होता है, इसी प्रकार वह दो अनर्थों को प्राप्त होता है। 📜 ब्राहम्मणी तप के लिये, गाय बोझ ढाने के लिये, घोड़ी वेग से दौड़ने के लिये, शूद्र सेवा के लिये, वैष्य कन्या पषुपालन के लिये और तुम जैसी राज पुत्री युद्ध में लड़कर मरने के लिये पुत्र पैदा करती हैं। वैशम्पयानजी कहते हैं- जनमेजय। श्रीकृष्ण का दोबारा कहा हुआ वह अप्रिय बचन सुनकर गान्धारी चुप हो गयी उसके नेत्र शोक से व्याकुल हो उठे थे। 📜 उस समय धर्मज्ञ राजर्षि धृतराष्ट्र ने अज्ञान से उत्पन्न होने वाले शोक और मोह को रोककर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा- पाण्डुनन्दन। तुम जीवित सैनिकों की संख्या के जानकार तो हो ही। यदि मरे हुओं की संख्या जानते हो तो मुझे बताओ। युधिष्ठिर बोले- राजन। इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार योद्धा मारे गये हैं। 📜 राजेन्द्र। इनके अतिरिक्त चैबीस हजार एक सौ पैंसठ सैनिक लापता हैं। धृतराष्ट्र ने पूछा- पुरुषप्रवर। महाबाहू युधिष्ठिर। तुम तो मुझे सर्वज्ञ जान पड़ते हो; अतः यह तो बताओ कि वे मरे हुए सैनिक किस गति को प्राप्त हुए हैं। युधिष्ठिर ने कहा- जिन लोगों ने इस महा समर में वड़े हर्ष और उत्साह के साथ अपने शरीर की आहुति दी है, वे सत्य पराक्रमी वीर देवराज इन्द्र के समान लोकों में गये हैं। 📜 भारत। जो अप्रसन्न मन से मरने का निश्चय करके रणक्षेत्र में जूझते हुए मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं। जो संग्राम भूमि में खड़े हो प्राणों की भीख मांगते हुए युद्ध से विमुख हो गये थे; उनमें से जो लोग शस्त्र द्वारा मारे गये हैं, वे गुहकलोकों में गये हैं। 📜 जिन महामनस्वी पुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने को कोई साधन नहीं रह गया था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और उस अवस्था में भी लज्जाशील होने के कारण जो रणभूमि निरन्तर शत्रुओं का सामना करते हुए ही तीखे अस्त्र-षस्त्रों से कट गये, वे क्षत्रीय धर्मपरायण पुरुष ब्रम्हलोक में गये हैं, इस विषय में मेरा कोई दूसरा बिचार नहीं है। 📜 राजन। इनके सिबा, जो लोग इस युद्ध की सीमा के भीतर रहकर जिस किसी भी प्रकार से मारे डाले गये हैं, वे उत्तर कुरूदेष में जन्म धारण करेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा- बेटा। किस ज्ञान वल से तुम इस तरह सिद्व पुरुषों के समान सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे हो। महाबाहो। यदि मेरे सुनने योग्य हो तो बताओ। ©N S Yadav GoldMine #Love श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo
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अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूं और इस तहर जल रहा हूं पढ़िए महाभारत !! 🌅 महाभारत: स्त्री पर्व :- सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 21-29 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 अहो। आपने इस गूढ रहस्य को छिपाकर हम लोगों को मार डाला। कर्ण की मृत्यु से भाईयों सहित हमें बड़ी पीड़ा हो रही है। अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र और पान्चालों के विनाश से और कुरूकुल इस पतन से हमें जितना दु:ख हुआ था उससे सौ गुना यह दु:ख इस समय मुझे अत्यन्त व्यथित कर रहा है। 📜 अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूं और इस तहर जल रहा हूं, मानो किसी ने जलती आग में रख दिया हो। यदि पहले ही यह बात मुझे मालूम हो गयी होती तो कर्ण को पाकर हमारे लिये इस जगत् में कोई स्वर्गीय वस्तु भी अलभ्य नहीं होती तथा कुरूकुल का अंत कर देने बाला यह घोर संग्राम भी नहीं हुआ होता। 📜 राजन। इस प्रकार बहुत विलाप करके धर्मराज युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे। रोते-रोते उन्होंने धीरे-धीरे कर्ण के लिये जलदान किया। यह सब सुनकर वहां एकत्र हुई सारी स्त्रियां जो वहां जलांजलि देने के लिये सब ओर खड़ी थीं सहसा जोर-जोर से रोने लगीं। 📜 तदन्तर बुद्धिमान करूराज युधिष्ठिर ने भाई के प्रेम से कर्ण की स्त्रियों को परिवार सहित बुलवा लिया और उन सबके साथ रहकर उन धर्मात्मा बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर विधिपूर्वक कर्ण का प्रेत कृत्य सम्पन्न किया। 📜 तदन्तर वे बोले- मुझ पापी ने इस रहस्य को न जानने के कारण अपने बड़े भाई को मरवा दिया। अतः आज से स्त्रियों के मन में कोई गुप्त रहस्य नहीं छिपा रह सकेगा। ऐसा कहकर ब्याकुल इन्द्रियों वाले राजा युधिष्ठिर गंगाजी के जल से निकले और समस्त भाईयों के साथ तट पर आये। ©N S Yadav GoldMine #humanrights अब तो मैं केवल कर्ण के ही शोक में डूब गया हूं और इस तहर जल रहा हूं पढ़िए महाभारत !! 🌅 महाभारत: स्त्री पर्व :- सप्त़विंष अध्य