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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
"जेल" हकीकत में जेल कहां होती है? जहां मन की शांति नही होती है स्वर्ण पिंजरा भी किस काम का, जिसमे गुलामी की बू होती है सच में जेल विचारों की होती है जैसे विचार वैसी खुशियां होती है हमारी अच्छी-बुरी सोच से ही, जिंदगी हंसीन-गमगीन होती है अच्छी विचार रखने से ही साखी, नर्क में जन्नत की तस्वीर होती है आज सोच का दायरा बदल गया है, आधुनिकता से आदमी छल गया है, अपूर्ण चीजों में हंसी कहां होती है सच्ची खुशी तो परिवार में होती है मन की जेल यहां सबसे बुरी होती है इसमें जिंदगी मौत से बदतर होती है जिस जगह विचारों की स्वतंत्रता, वो जगह ही सच मे जिंदा होती है बाकी सब जगह तो जग में साखी, मुर्दाघर की ही पहचान होती है दिल से विजय जेल
प्रियजीत प्रताप
तिल तिल मरते उन्मादों में, कभी भीड़ कभी वीरानों में, हाथ धरे,पग समेट लिए हों, पर्वत,वन या सुनसानों में, गिरता रक्त अलाप रहा है, छूटता प्राण प्रलाप रहा है, शिथिल पड़े शरीर के ऊपर, उड़ता गिद्ध ठठकार करे, नोचें,खाएं अपने ही मद में, कौन उनका संहार करे? कब जागे वो आग हृदय में, कौन रोके यह रक्तप्रवाह, कौन बताए इस समर शेष में, कहाँ रावण है,राम कहाँ? -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...
Lalit Meena
lalit meena ©Lalit Meena जेल ही जीवन है #guru वीजेपीजीसीएस। हाजी
Parasram Arora
ये प्रेम नही कह पायेगा अपनी कहानी कभी. सीने में दर्द है.. पर मुँह में अलफ़ाज़ कहाँ है? सीन में दिल है और धड़कन भी है. पर जीनाचाहता हूं जिसे वो जिंदगी कहाँ है? जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे बूढ़ा कर दीया जल्द इस दरमियान आई थी जवानी पर वो टिकी कहा? मौत का पैगाम तो आ चुका नज़दीक पर न जाने मरने वाला किरदार कहा है? आहों की आवाज़ भी धीमी हुई है रफ्ता रफ्ता और आंसुओं में भी अब वो रवानी कहा है? ©Parasram Arora कहाँ है?
Rajinder Raina
घर भी अब तो जेल लगे है, खत्म सारा ही खेल लगे है। तंगी उदासी ने आ घेरा है, मेल भी अब बेमेल लगे है। कैसे करलूं कोई भी वादा, इन तिलों में न तेल लगे है। तंग जूती है चलना मुश्किल, ओर पैरों में कील लगे है। रैना"कैसे तय करे रस्ता, दूरी कई सौ मील लगे है। ........रैना ©Rajinder Raina जेल #Hope
Deepa Didi Prajapati
जेल,मंदिर से पवित्र वह स्थान है जहां कुछ कसूरवारों के बीच कुछ बेकसूर बिलखकर परमात्मा को पुकारते हैं ©Deepa Didi Prajapati #जेल#बेकसूर
कवि विनय आनंद
याद हैं हमको वो दिन भी मेरा इंतजार रहता था, कभी तुम कुछ न खाती थीं हमारे कुछ भी खाने तक। कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी- तुम्हें तो साथ रहना था हमारी जान जाने तक। ©कवि विनय आनंद कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी।
Rajesh Khanna
अभी नया नया आया हूं इस शहर में प्यारा तो लगेगा ना जब आयेगी मुझे मां की याद तब ये VIP HOTEL भी जेल नजर आने लगेगी ©Rajesh Khanna #City जेल