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Poet Maddy
ज़िंदगी मैंने चखी, बेस्वाद सी लगी....... इस बेस्वादी ज़िंदगी के लिए, न जाने क्यों लोग सालों तक जीते हैं...... ज़िंदगी मैंने चखी, बेस्वाद सी लगी....... #Life#Taste#Tasteless#People#Lives#Years......
राजेश गुप्ता'बादल'
जब जब भी जिंदगी मैंने चखी है, कभी खट्टी कभी तीखी कभी तू मुझको मीठी सी लगी है। नव रस से है सजी धजी तू, कभी चिड़ाती कभी मनाती कभी मुस्काती सी लगी है। राजेश गुप्ता'बादल' मुरैना मध्यप्रदेश जब जब भी जिंदगी मैंने चखी है, कभी खट्टी कभी तीखी कभी तू मुझको मीठी सी लगी है। नव रस से है सजी धजी तू, कभी चिड़ाती कभी मनाती
Vikash Bakshi
वो शहर था मेरी शुरुआती सफर का, जहां मैंने प्यार के पंख फैलाए, उस गलियों में अक्सर जाया करता था, जहां मैंने इश्क के पतंग उड़ाए, वो रहते थे मरहूम मेरे इश्केदारी दीवानगी में, मांझे की देख में हमने कई पतंग ए इश्क़ गवाए, मरहूम ने तोड़े थे सपने मेरे उनके साथ के, इश्क ए परदे से दगा की बु कुबूल कर ना पाए, इतना तोड़ा की संभल ही गए जिंदगी में, बस इश्क का दम आज भी भर ना पाए, जीने का जज्बा भरपूर लिए दिल में, गिरे जो घुटनों तले इश्क में आज भी उठ ना पाए।। वो वक्त बड़ा मासूम था, मोहब्बत की चादर बस ओढ़े थे, नई ज़मीन थी मकान ए प्यार की, कुछ रास्तों से फूल भी तोड़े थे, ज़मीन पर सपनों की ईंट बैठा
Bharat Bhushan pathak
जब कभी नाम दिनकर आए। ऐसे कवि की छवि बन जाए।। देशप्रेम की स्वाद चखी जो। रखे लेखनी ऐसे ही वो।। कलम तेज थी ऐसी उनकी। नाम पुकारे सबजन जिनकी।। कौन रश्मिरथी न है जाने। सब हैं इसकी लोहा माने।। राष्ट्रकवि उपनाम जो पाए। सबजन जिनको शीश नवाए।। लिखी कालंजयी कविताएं। बहा दिया कितनी सरिताएं।। ©Bharat Bhushan pathak #दिनकर_जयंती #ramdharisinghdinkar #रामधारी_सिंह_दिनकर जब कभी नाम दिनकर आए। ऐसे कवि की छवि बन जाए।। देशप्रेम की स्वाद चखी जो। रखे लेखनी ऐसे
Pen of a Soul
वो शहर था मेरी शुरुआती सफर का, जहां मैंने प्यार के पंख फैलाए, उस गलियों में अक्सर जाया करता था, जहां मैंने इश्क के पतंग उड़ाए, वो रहते थे मरहूम मेरे इश्केदारी दीवानगी में, मांझे की देख में हमने कई पतंग ए इश्क़ गवाए, मरहूम ने तोड़े थे सपने मेरे उनके साथ के, इश्क ए परदे से दगा की बु कुबूल कर ना पाए, इतना तोड़ा की संभल ही गए जिंदगी में, बस इश्क का दम आज भी भर ना पाए, जीने का जज्बा भरपूर लिए दिल में, गिरे जो घुटनों तले इश्क में आज भी उठ ना पाए।। वो वक्त बड़ा मासूम था, मोहब्बत की चादर बस ओढ़े थे, नई ज़मीन थी मकान ए प्यार की, कुछ रास्तों से फूल भी तोड़े थे, ज़मीन पर सपनों की ईंट बैठा
शुभी
हिंदू मुसलमां से पहले इंसान भी हूँ (check caption) इन्सां भी हूँ, ब्राह्मण भी हूँ, प्रवृत्ति से थोड़ा शैतान भी हूँ. दरगाह भी गया, गिरजे भी देखे, स्वांग से थोड़ा परेशान भी हूँ.
Drg
ज़िंदगी मैंने चखी, कुछ बेस्वाद सी लगी.. लापता था ज़ायक़ा, कुछ बेढंगी सी लगी.. मिलाई दो चम्मच सच्चाई की तीखी मिर्च, छिड़का फिर रिश्तों का.. चटपटा चाट मसाला तड़का लगाया, कठोर संघर्ष का.. तेज़ आँच पर सेकी ज़िंदगी.. (शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) ज़िंदगी मैंने चखी, कुछ बेस्वाद सी लगी.. लापता था ज़ायक़ा, कुछ बेढंगी सी लगी.. मिलाई दो चम्मच सच्चाई की तीखी मिर्च, छिड़का फिर रिश्तों का..
Lyricist Brar
होके वाली नाल पकड़ी, मुंह में बीड़ी रखी हैं.. डब्बी से भरकर अफ़ीम की एक उगली चखी हैं... होठों के नीचे तम्बाकू,जीरो कट दाढ़ी में रहते हैं.. ना मैं नहीं मानता वो रविदासिया कौम के बेटे हैं.. स्मैक,हीरोइन भाग पीकर गाली देते है मां बाप को.. जिंदा रहने का हक नहीं ऐसे आस्तीन के सांप को.. भूलकर फर्ज़ ग्रहणी का,पीकर गलियों में लेटे हैं. ना मैं नहीं मानता वो बाबा साहब के बेटे हैं.. जिसने औलाद को दूर रखा ज्ञान और शिक्षा से.. जो घर चलाता हो बच्चों को मिली भीक्षा से.. समाज का शोषण किया जिसने उनको ही वोट देते हैं.. ना मैं नहीं मानता वो साहेब कांशीराम के बेटे हैं.. तेरे भीतर बराड अगर खून दौड़ता है महापुरषों का.. कलम से करदे वध ऐसे अज्ञानी महामुरखों का.. सलाम करे दुनियां तुम्हें,गर्व से कहे मुल्क तेरा.. हां ये असलियत में बहुजन समाज के बेटे हैं.. ©Lyricist Brar होके वाली नाल पकड़ी, मुंह में बीड़ी रखी हैं.. डब्बी से भरकर अफ़ीम की एक उगली चखी हैं... होठों के नीचे तम्बाकू,जीरो कट दाढ़ी में रहते हैं.. न
Pankaj Singh Chawla
(Read in Caption) चाय सा इश्क़ मेरा चखी जब चाय पहली दफ़ा, स्वाद थोड़ा अजब लगा, रोज़ पीते-पीते भाने दिल को लगा, धीरे-धीरे ढलने लगी इलाइची भी उसमें, घुलने लगी महक
रिंकी✍️
तेरे पायल की छन छन से गूंज उठा है मेरे घर का हर आंगन मेरे घर का आंगन अब गाता है बस तेरे चेहरे की हँसी का राग मेरे कानों में अभी भी गूंजती रहती है तेरे जाने के बाद पापा कहकर बुलाया था जब तूने मुझे तेरे मुँख से निकली वो पहली आबाज़ कितना आनन्दमयी था वो एहसास जब सीने से लगाया था मैंने तुझे पहली बार तेरे हाथ की वो रोटी मैंने चखी थी याद है मुझे वो आधी कच्ची थी लेकिन सच बताऊ नही चखा था मैंने पहले कभी इतना प्यारा स्वाद तू मेरे शरीर का सिर्फ हिस्सा नही मेरे अंदर का बहता हुआ खून है बेटी तेरे गोद मे बिल्कुल माँ जैसा सुकून है ✍️रिंकी तेरे पायल की छन छन से गूंज उठा है मेरे घर का हर आंगन मेरे घर का आंगन अब गाता है बस तेरे चेहरे की हँसी का राग मेरे कानों में अभी भी गूंजती र