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Raghu Ke Quotes

मेरा महाभारत का युद्ध, अपने आप से रघु के कोट्स आपके लिए। अच्छे लगे तो लाइक शेयर करना। हमारी प्रोफेशनल वेबसाइट www.onetake.in Pawan Raghuvan #lovequotes #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqhindi #yqquotes #विचार #yqaestheticthoughts #raghukequotes #AkelaMann

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शब्दों की चुभन ने
"महाभारत" का निर्माण किया
और मेरी भी कुछ 
ऐसी ही कहानी है
बस एक "महाभारत" 
का युद्ध खुद से कर रहा हूं

©Raghu Ke Quotes मेरा महाभारत का युद्ध, अपने आप से

रघु के कोट्स आपके लिए।
अच्छे लगे तो लाइक शेयर करना।
हमारी प्रोफेशनल वेबसाइट
www.onetake.in
Pawan Raghuvan

Manish Kumar

महाभारत का युद्ध शुरू हो गया है और महारथी कर्ण को पितामाह भीष्म के छत्र तले युद्ध करने की अनुमति नहीं है। जब तक कि इच्छा मृत्यु का कवच ओढ़ें #yqmahabharata #yqsaumitr #yqmaharthikarn #yqpratiksha #yqkaran

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27. महारथी की दुविधा : महाभारत

नारियों की भाँति शिविर में है कौन ठहरा!
कौन है जो दे रहा है आठों पहर पहरा!!

किस महारथी को है युद्ध से विश्राम मिला!
किसे रहा है जीवन पर्यंत नियति से गिला!!

कौन है जो युद्ध के लिए प्रतीक्षा में लीन है!
आखिर किसका हृदय प्रार्थना से मलिन है!!

वास्तव में यह अंगराज की ही कथा है,
कर्ण से बढ़कर भला किसकी व्यथा है!

भीष्म के गिरने की प्रतीक्षा जिसे करनी पड़े,
इच्छा मृत्यु से जिसे क्षण-क्षण लड़ना पड़े।

जिसका हस्त मित्र की सहायता में उठता नहीं है,
पितामह का शीश है कि गिराए गिरता ही नहीं है।

नियति पर कर्ण के बाण कैसे चलेंगे!
प्रतीक्षा के क्षण न अब काटे से कटेंगे!! महाभारत का युद्ध शुरू हो गया है और महारथी कर्ण को पितामाह भीष्म के छत्र तले युद्ध करने की अनुमति नहीं है। जब तक कि इच्छा मृत्यु का कवच ओढ़ें

सूर्यप्रताप स्वतंत्र

जो कश्मीर मे हुआ कल पूरे भारत मे होगा। अबकी कोई कृष्ण नहीं महाभारत मे होगा। हमें अकेले लड़ना होगा महाभारत का युद्ध। अबके बार कोई नहीं रथ के स #कविता #lord_krishna #कविता_संगम #द्रोपदी_चीर_हरण

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जो कश्मीर मे हुआ, कल पूरे भारत मे होगा।
अब की कोई कृष्ण नहीं महाभारत मे होगा।

हमें खुद ही लड़ना होगा महाभारत का युद्ध।
अबके बार कोई नहीं रथ के सारथ मे होगा।

#कविता_संगम 

#द्रोपदी_चीर_हरण

©surya pratap singh जो कश्मीर मे हुआ कल पूरे भारत मे होगा।
अबकी कोई कृष्ण नहीं महाभारत मे होगा।
हमें अकेले लड़ना होगा महाभारत का युद्ध।
अबके बार कोई नहीं रथ के स

DR. SANJU TRIPATHI

हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी का पुत्र था दुर्योधन। महाबली योद्धा श्रेष्ठ गदाधारी द्रोणाचार्य का शिष्य था दुर्योधन। कौरव वंश क #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #openforcollab #collabwithmitali #mahabharat_charitra #gandhari_nandan_duryodhan

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कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें
👇 👇 👇👇 हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी का पुत्र था दुर्योधन।
महाबली योद्धा श्रेष्ठ गदाधारी द्रोणाचार्य का शिष्य था दुर्योधन।

कौरव वंश क

Divyanshu Pathak

💓🐇बृजधाम☕अध्यात्म☕💕शिक्षा🐦संस्कार🦃🍫🍫🍮🌧ज्ञान🌛😂😍😘😚😙☕ :💕😀😍 हम सारी दुनिया को गीता का ज्ञान बांट रहे हैं, तब हमारे बच्चे क्यों इससे वंचित ह

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सेस गनेस महेस दिनेस,सुरेसहु जाहि निरंतर गावै !
जाहि अनादि अनंत अखण्ड,अछेद अभेद सुबेद बतावै !!
नारद् से सुक व्यास रटें,पचिहारे तउ पुनि पार न पावै !
ताहि अहीर की छोहरियाँ,छछिया भर छाछ पे नाच नचावै !! 💓🐇#बृजधाम☕#अध्यात्म☕💕#शिक्षा🐦#संस्कार🦃🍫🍫🍮🌧#ज्ञान🌛😂😍😘😚😙☕
:💕😀😍
हम सारी दुनिया को गीता का ज्ञान बांट रहे हैं, तब हमारे बच्चे क्यों इससे वंचित ह

N S Yadav GoldMine

#City बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न होता हैं कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया या केदारनाथ की कहानी क्या हैं पढ़िए इससे जुड़ी कथा ! #पौराणिककथा

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बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न होता हैं कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया या केदारनाथ की कहानी क्या हैं पढ़िए इससे जुड़ी कथा !! 🎪🎪 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
केदारनाथ धाम :-  🚩 केदारनाथ धाम 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के बाद से सैलानियों के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध हो चुका है। हालाँकि धार्मिक रूप से इसकी मान्यता पहले जैसी ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में एक ज्योतिर्लिंग, पंच केदार में एक केदार एवं उत्तराखंड के चार छोटे धामों में से एक धाम है। अब बात करते है केदारनाथ के इतिहास की। बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न होता हैं कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया या केदारनाथ की कहानी क्या हैं? इसलिए आज हम आपको केदारनाथ मंदिर का संपूर्ण इतिहास बताएँगे।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास :-  🚩 महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों का पश्चाताप कुरुक्षेत्र की भूमि पर 18 दिनों तक लड़े गए महाभारत के भीषण युद्ध के बारे में भला कौन नही जानता। इस युद्ध में सभी रिश्तों की बलि चढ़ गयी थी फिर चाहे वह गुरु-शिष्य का रिश्ता हो या भाई-भाई का या चाचा-भतीजे का। 18 दिनों तक निरंतर कुरुक्षेत्र की भूमि कौरव व पांडवों की सेना के रक्त से लाल हो गयी थी।
(Rao Sahab N S Yadav}
🚩 महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात विजय तो अवश्य ही पांडवों की हुई थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि उन्होंने भी बहुत कुछ खो दिया था। युद्ध समाप्ति के कुछ समय बाद, जब सभी पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर युद्ध के परिणामों व प्रभावों के बारे में चर्चा कर रहे थे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें पश्चाताप करने को कहा। श्रीकृष्ण के अनुसार पांडवों के ऊपर ब्रह्महत्या, गौत्रहत्या, कुलहत्या, गुरुहत्या इत्यादि कई पाप चढ़ चुके थे। इसके लिए उनका प्रायश्चित करना आवश्यक था। पांडवों ने इसका उपाय पूछा तो श्रीकृष्ण ने बताया कि उन्हें इन पापों से मुक्ति केवल भगवान भोलेनाथ ही दे सकते हैं। इसके पश्चात, सभी पांडव भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान शिव से मिलने काशी नगरी की ओर चले गए।

पांडवों के द्वारा भगवान शिव की खोज :- 🚩 श्रीकृष्ण के आदेशानुसार सभी पांडव भगवान शिव की नगरी काशी (बनारस या वाराणसी) पहुंचे। हालाँकि भगवान शिव को पांडवों के उनसे मिलने आने की सूचना पहले ही मिल चुकी थी लेकिन वे उनसे मिलना नही चाहते थे। भगवान शिव पांडवों के द्वारा किये गए ब्रह्महत्या व गौत्रहत्या के पाप से अत्यधिक क्रोधित थे, इसलिए वे पांडवों से बिना मिले ही वहां से चले गए। पांडवों ने काशी नगरी में भगवान शिव को हर जगह ढूंढा लेकिन वे उन्हें नही मिले। इसके बाद सभी पांडव हिमालय के पहाड़ों पर बसे उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चले गए। भगवान शिव भी पांडवों से छुप कर यहीं आये थे।

भगवान शिव ने लिया बैल रुपी अवतार :- 🚩 जब भगवान शिव ने पांडवों को अपने पीछे-पीछे गढ़वाल क्षेत्र की ओर बढ़ते हुए देखा तो उन्होंने इसका एक उपाय निकाला। वहां पहाड़ों के बीच कई पशु घास के मैदान में चर रहे थे। भगवान शिव उन पशुओं के बीच में गए और बैल रुपी अवतार ले लिया ताकि पांडव उन्हें पहचान ना पाए। भीम ने पकड़ा भगवान शिव के बैल रुपी अवतार को गढ़वाल के पहाड़ों पर भी पांडवों ने भगवान शिव को हर जगह ढूंढा लेकिन वो उन्हें नही मिले। अंत में महाबली भीम को एक उपाय सूझा और उसने अपना शरीर पहाड़ों से भी बड़ा कर लिया। उसने अपना एक पैर एक पहाड़ी पर और दूसरा पैर दूसरी पहाड़ी पर टिकाया और गहनता से महादेव को ढूंढने लगा।

🚩 भीम के विशालकाय रूप को देखकर पहाड़ों के सभी पशुओं में हलचल पैदा हो गयी और वे इधर-उधर भागने लगे लेकिन एक बैल अपनी जगह पर स्थिर खड़ा रहा। उस बैल पर भीम के विशालकाय रूप का कोई प्रभाव नही दिखा। यह देखकर भीम समझ गया कि यहीं बैल महादेव का रूप है जो बैल का अवतार लेकर हमसे छिप रहे हैं। महादेव को भी पता चल गया कि भीम ने उन्हें पहचान लिया है। यह देखकर वे बैल रुपी अवतार के साथ धरती में समाने लगे। भगवान शिव के बैल अवतार को धरती में समाते देख भीम तेजी से उनकी ओर लपका और बैल की पीठ अपने हाथों से जकड़ ली।

🚩 भीम के द्वारा बैल की पीठ अपने हाथों में जकड़े जाने के कारण वह वही पर रह गयी जबकि बैल के अन्य चार भाग उत्तराखंड के चार अन्य स्थलों पर निकले। आज उन्हीं स्थलों पर चार अन्य केदार हैं। इनमें भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख रुद्रनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में व जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन्हीं पाँचों जगहों को सम्मिलित रूप से पंचकेदार के नाम से जाना जाता हैं।

केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया :- 
🚩 भीम के द्वारा भगवान शिव के बैल अवतार की पीठ पकड़े जाने के बाद वह वही रह गयी थी। जब उन्हें बैल के बाकि चार अंग चार अन्य स्थानों पर प्रकट होने का ज्ञान हुआ तब उन्होंने शिव की महिमा को समझ लिया। इसके बाद पांडवों के द्वारा ही इन पाँचों जगहों पर शिवलिंग की स्थापना कर शिव मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इससे भगवान शिव सभी पांडवों से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्हें सभी पापों से मुक्त कर दिया।

🚩 हालाँकि इसके बाद पांडवों के पोते जन्मेजय ने केदारनाथ मंदिर के निर्माण को और आगे बढ़ाया और यहाँ आम लोगों को पूजा करने की अनुमति प्रदान की। इसलिए केदारनाथ मंदिर के निर्माण में जन्मेजय का भी योगदान था। समय के साथ-साथ पांडवों के द्वारा बनाया गया यह मंदिर जर्जर हो गया व कई जगह से क्षतिग्रस्त हो गया। फिर जब भारत की भूमि पर आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया तब उनके द्वारा संपूर्ण भारत भूमि की पैदल यात्रा की गयी व चारों दिशाओं में चार धाम की स्थापना की गयी।

🚩 तब आदि शंकराचार्य ने ही इस केदारनाथ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था जिसे आज हम देखते हैं। इसके बाद अपने जीवन के अंतिम समय में आदि शंकराचार्य ने इसी केदारनाथ मंदिर के पास ध्यान लगाया था व समाधि ले ली थी। उनकी समाधि आज भी केदारनाथ मंदिर के पास में ही स्थित है। फिर दसवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच कई भारतीय राजाओं ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

🚩 हालाँकि 2012 में आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर के आसपास के ढांचे को बहुत क्षति पहुंची थी। इस प्राकृतिक आपदा में आदि शंकराचार्य की समाधि भी बह गयी थी। इसके बाद भारत व उत्तराखंड की सरकारों के द्वारा केदारनाथ धाम, आदि शंकराचार्य की समाधि व उसके आसपास के स्थलों को पुनः ठीक करवा कर उसे नवीन रूप दिया गया।

©N S Yadav GoldMine #City बहुत से भक्तों के मन में यह प्रश्न होता हैं कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया या केदारनाथ की कहानी क्या हैं पढ़िए इससे जुड़ी कथा !

PARBHASH KMUAR

महाभारत के प्रसंग में श्री कृष्ण द्वारा कही गई बातें और विचार, आज भी मानव जीवन की पथ प्रदर्शक मानी जाती हैं। फिर चाहे अर्जुन को दिया गया उनक #Knowledge #guru

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महाभारत के प्रसंग में श्री कृष्ण द्वारा कही गई बातें और विचार, आज भी मानव जीवन की पथ प्रदर्शक मानी जाती हैं। फिर चाहे अर्जुन को दिया गया उनका ज्ञान हो, या फिर द्रौपदी के साथ उनके स्नेह संबंध में कर्तव्य का पालन करने वाले, उनके भाई की छवि।

ऐसा ही एक प्रसंग दुर्योधन, श्री कृष्ण और अर्जुन के साथ भी जुड़ा हुआ है, जहां चेतावनी भी है और सहायता की मंशा भी। आइए इस सुंदर प्रसंग का आनंद लेते हैं।

जब कौरव और पांडवों के बीच में महाभारत का युद्ध छिड़ गया, तब स्वयं श्री कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर पहुंचे। उन्होंने कहा, “सुनो दुर्योधन! मैं तुमसे केवल इतना ही कहने की इच्छा रखता हूं, कि तुम इस युद्ध का विचार यहीं नष्ट कर दो और पांडवों को, आधा राज्य लौटाकर उनके साथ संधि कर लो। यदि तुम यह प्रस्ताव मानते हो, तो पांडव तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।”

कहा जाता है, कि उस वक़्त सभा में मौजूद सभी ने श्री कृष्ण के विचारों से सहमति जताई थी। लेकिन दुर्योधन ने यह स्वीकार नहीं किया और श्री कृष्ण को तिरस्कार का भागी बनाया। इसके पश्चात यह तय हो गया, कि महाभारत का युद्ध होकर रहेगा।

युद्ध से पूर्व जब दुर्योधन और अर्जुन श्री कृष्ण से मदद मांगने द्वारिका पहुंचे, तो वह निद्रा अवस्था में थे। उस पहर में पहले दुर्योधन का आगमन हुआ था और फिर अर्जुन का। कहा जाता है, कि उस कक्ष में अर्जुन उनके चरणों में जा बैठे और दुर्योधन सिरहाने और जब श्री कृष्ण की आँखें खुलीं, तो उनकी आँखों के सामने अर्जुन थे।

इस कारणवश उन्होंने पूछा, “बोलो पार्थ! मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूं?” उनके वचन सुनकर दुर्योधन थोड़ा क्रोध में आ गया और कहा, “मैं यहां पहले आया था, इसलिए ये मुझसे पहले पूछा जाना चाहिए।”

तब अपने स्वभावानुसार श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं, कि मेरे पास मदद देने के लिए, या तो स्वयं मेरा ज्ञान है या फिर युद्ध भूमि में सशक्त मेरी नारायणी सेना। उस वक़्त, श्री कृष्ण की नारायणी सेना को अत्यंत ही घातक और कुशल माना जाता था।

उन्होंने कहा, “अब क्योंकि आंख खुलने के पश्चात, अर्जुन मेरे समक्ष पहले आया इसलिए चुनाव का पहला अधिकार भी, मैं उसे देता हूं।” यह सुनकर अर्जुन कहते हैं, कि मेरे लिए आपका साथ ही मेरा अस्त्र है। अतः मैं आपको चुनता हूं।

अर्जुन के इस निर्णय को सुनकर दुर्योधन मन ही मन उन पर हंसते हैं, कि कहां स्वयं नारायण की देख रेख वाली नारायणी सेना और कहां निहत्थे नारायण। ऐसी मान्यता है, कि अर्जुन के इस निर्णय को दुर्योधन उसकी भूल समझ बैठा था।

लेकिन सच तो यह है, कि जिसका मार्ग स्वयं श्री कृष्ण निश्चित कर रहे हों, उसको सेना की क्या आवश्यकता। इसलिए आज भी ऐसा कहते हैं, कि कौरवों की हार तभी निश्चित हो गई थी, जब उन्होंने नारायण की तुलना में उनकी सेना को ज्यादा अहमियत दे दी।

इस संपूर्ण प्रसंग में हमने देखा, कि कैसे पग-पग पर श्री कृष्ण न सिर्फ पांडवों के साथ थे, अपितु कौरवों को भी समय-समय पर सही मार्ग पर चलने का विकल्प देते रहे। लेकिन वो कहते हैं न, ‘जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है’।

अब इससे हमें भी यह सीख मिलती है, कि अधर्म और अहंकार जीवन का वो भाग हैं, जो सदैव ही आपका अहित निश्चित करते हैं। इसलिए इसका त्याग, शीघ्र अति शीघ्र करें। अगर आपको हमारा यह प्रसंग पसंद आया, तो ऐसी ही सुंदर और धर्म से जुड़े प्रसंगों को सुनने के लिए जुड़े रहिये Sri Mandir के साथ।

©parbhashrajbcnegmailcomm महाभारत के प्रसंग में श्री कृष्ण द्वारा कही गई बातें और विचार, आज भी मानव जीवन की पथ प्रदर्शक मानी जाती हैं। फिर चाहे अर्जुन को दिया गया उनक

N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey} कुरुवंश के प्रथम पुरुष का नाम कुरु था| कुरु बड़े प्रतापी और बड़े तेजस्वी थे| उन्हीं के नाम पर कुरुवंश की शाखाएं निकल #पौराणिककथा

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Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha स्कूल में मास्टर साहब मुझे पढ़ाते थे कि सूरज की किरणें जो धरती पर पहुंचती हैं वो आठ मिनट पुरानी होती हैं। ऐसी बातों #News

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Story of Sanjay Sinha 
 स्कूल में मास्टर साहब मुझे पढ़ाते थे कि सूरज की किरणें जो धरती पर पहुंचती हैं वो आठ मिनट पुरानी होती हैं। ऐसी बातों

Sri batsa Meher

तन मै महाभारत युद्ध #कविता

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