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Dr. Bhagwan Sahay Meena
शीर्षक:--- अभिमन्यु अभिमन्यु आज फिर फंस गए, बेकारी बेरोजगारी भुखमरी गरीबी और कुंठा दुश्चिंता तनाव से निर्मित, सात घेरों के विकट भयावह चक्रव्यूह में। तैयार कर दिए और करते रहेंगे, विद्यालय विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष निरन्तर, बेरोजगारों की चतुरंगिणी सेना, लड़ने को जीवन का महाभारत। निहत्थे यौद्धाओं को भेंट किए जाते है, कागज़ी उपाधियों के जंग लगे अस्त्र-शस्त्र। हुई कर्म से फलीभूत शिक्षा, किंतु फल लब्ध असंभव कठिन। कैसे जीतेंगे जीवन में कुरूक्षेत्र का युद्ध, इंद्रप्रस्थ के अस्त्र-शस्त्र रोजगारोन्मुखी नहीं है। कैसे तोड़ पायेंगे अभिमन्यु, जयद्रथ अश्वत्थामा द्रोण समतुल्य व्यूह रचेता द्वार। चारों तरफ यायावर से भटकते बेरोजगार शिक्षित सिपाही। घोर चुनौती मुंह बाए खड़ी, रोटी कपड़ा और मकान। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा,जयपुर,राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #LetMeDrowm अभिमन्यु और चक्रव्यूह
Ek villain
लेकिन जहां जिस स्तर पर अपराध और अराजकता फैली है उसे देखकर यह धारणा गलत नहीं लगती है दरअसल हर कार में देवी प्रवृत्ति और आसुरी प्रवृत्तियों की अपनी-अपनी सता रही है अच्छाई बुराई का स्वभाव एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह होता है जन्म के बाद शिशु घर परिवार आस-पड़ोस और समाज से सीखता है गर्व काल से ही उस पर वह वातावरण का प्रभाव पड़ने लगता है अभिमन्यु को चक्रव्यूह का ज्ञान गर्भ अवस्था में ही तो मिला था ©Ek villain अभिमन्यु को चक्रव्यूह का ज्ञान गर्भावस्था में ही मिला था
Prashant
अभिमन्यु इतिहास में एक ऐसा युद्धा भी इस धरती पर आया था अर्जुन को कहा पिता था जिसने सुभद्रा को माता बताया था दिया था श्री कृष्ण का परिचय गुरू अपना बतलाया था चक्रव्यु भेदक ज्ञान वो अपनी मां के गर्भ से लाया था धनुष बाण कौशल भी उसने अपने पिता से पाया था एक जलक देखे जो कोई अर्जुन की वो छाया था युद्ध भूमि पर इस बालक ने ही सबको चौकाया था गुरु द्रोण के प्रश्न पर खुद को अर्जुन पुत्र बताया था क्या खूब प्रमाण वीरता का उसने अपना दिख लाया था लड़ा था अंत समय तक अपने वीर गति को पाया था भेदा था चक्रव्यू जिसने अभिमन्यु वो कहलाया था ©Prashant #अभिमन्यु
ललेश अजनबी,,,
Autumn चक्रव्यूह की रचना करके, रचनाकार वो बन बैठे ढीठ अधर्मी वो क्या जाने, स्वसंघार वो कर बैठे ©ललेश अजनबी,,, #चक्रव्यूह
vs dixit
चक्रब्यूह ............. दिनों दिन बुनते हुए सपने बढ़ती हुई अभिलाषायें और उड़ान की चाहत के बीच उतरती चढ़ती मानव की मन: स्थिति कभी कभी ऐसी फंस जाती है जैसे हो मकड़ी के जाले बीच अंधकार से भरे चक्रब्यूह में बेचैन, भटकता उस चक्रब्यूह को तोड़ने की जितना कोशिश करता है फंसता ही चला जाता है हजार कोशिशें करता है पर निकलने में नाकाम रहता है बस फंसता ही चला जाता है अन्त में थक हार कर अपने को छोड़ देता है सारी इच्छाओं को छूटते देखता हुआ ठगा सा छटपटाता हुआ समर्पण कर देता है सदा के लिए सो जाता है अंधेरे चक्रव्यूह में समा जाता है| @वीएस दीक्षित ©vs dixit #चक्रव्यूह
अर्पिता
हम सब खुदा के द्वारा बनाये गए चक्रव्युह में फँसे हुए बन्दे हैं, इससे तभी बाहर निकल पाएंगे, जब खुदा खुद चाहेगा... ©अर्पिता #चक्रव्यूह
Parasram Arora
#KargilVijayDiwas तुम्हारे लिए इस अनजान पथ की भूलभुलैया को बेध पाना सम्भव ही नहीं नामुमकिन है क्योंकि न तुम अभिमन्यु हो न तुम अर्जुन की तरह इस चक्र्वयूह से अपनी जान को बचा सको और सबसे बड़ी बात तुम्हारा बो सारथी कृष्ण भी यहां नहीं है जो आकर तुम्हारे रथ की दिशा को बदल देगा........ #चक्रव्यूह.......
Parasram Arora
नामुमकिन है अनजाने पथ की भूलभलैया भेद पाना तुम्हारे लिए .....क्योकि न तुम अभिमन्यु हो न तुम अर्जुन की तरह निपुण हो जो इस चक्र्व्यूह से छुटकारा पा सको .......और सबसे बड़ी बात तुम्हारा सारथि वो धनुर्धारी कृष्ण भी यहां नहीं है जो तुम्हारे जीवन रथ की दिशा बदल सके ..... चक्रव्यूह ......
Anjali Nigam
कैसा है ये जिंदगी का चक्रव्यूह बाहर निकलने ही नहीं देता हर कोशिश नाकाम हो जाती है संघर्ष अब जीने नहीं देता जो बाग लगाया था हमनें फूलों का तूफानों का जोर उसे महकने नहीं देता हर इल्जाम हम पर ही क्यों लगता है क्या मुझसा सहने वाला दुनियां को नहीं मिलता.....?? ©Anjali Nigam #चक्रव्यूह