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BANDHETIYA OFFICIAL
कलम कला है,कलई भी खुल जाती है। सर कलम मौत हो, हो जीवन पेड़ कलम कटा, मरण -जनम की थाती है, कलई भी खुल जाती है। प्रमाण पत्र जनम का, प्रमाण पत्र मरण का, मृत्यु का जीवन का, कुंडली भी कुछ पाती है। सृजन किसे भाये, कौन दुश्मन, ये भी कलम की हस्ती यकीनन, सर, धड़, जड़, पकड़ ले धड़कन, जकड़ ले यम अकाल भी, अकाल मृत्यु आती हैं। ©BANDHETIYA OFFICIAL #कलम #कला है।
#कलम #कला है। #मोटिवेशनल
read moreGondwana Sherni 750
तुमने समझा हम हार जायेगे बिखर जायेगे तुमने हमारे जर जंगल जमीन को छीना हमारे बहन बेटियों के साथ शोषण अत्याचार किया हमारा सहारा छीना हमारे इच्छाओं को छीना यहां तक कि घर गांव भी छीन लिया हमारे लोगो को खरीदा मालिक से नौकर बना दिया हमारी नीद छीनी चैन,सुकुन छीना हमारे लोगो को अपने लोगो से दुश्मनी करना सिखाया और मरने के लिए छोड़ दिया कभी नक्सली के नाम से कभी गैर कानूनी तरीके के नाम से लोगो को मारना चालू कर दिया कभी फेक वायरस के नाम पे कभी वेक्सीन के नाम पे कभी हार्प के नाम से कभी 5 जी रेडिएशन के नाम से तुम्हे लगा हम हार मान लेंगे लेकिन ये हम स्पष्ट बताना चाहते हैं की ना कभी हमने हार माना है और ना कभी हम हार मानेंगे विद्रोही क्रान्तिकारी ✍️✍️ @preeti_uikye750 29/05/24 ©Gondwana Sherni 750 विद्रोही की कलम
विद्रोही की कलम #विचार
read moreअज्ञात
सुनते हो ए कलम, आज जब मैंने अपने आप को दर्पण मे देखा तो घबरा गया.. मैंने देखा मेरे सर रूपी काली घटाओं को चीरते हुए मानो दूज का चाँद निकल आया हो और अपनी चांदनी की छटा सर के चारों तरफ बिखेरने को आतुर हो..! वहीं जब अपने चेहरे को देखा तो उसमे भी कहीं कहीं दाग धब्बे गड्ढे दिखे और अजीब सी एक उदासी सी छा रही थी..! ए कलम मानो दर्पण मुझसे कह रहा हो कि अब कलम का साथ छोड़ और तुलसीमाला हाथ मे ले ले..! यूँ आभास होते ही मैं बेचैन हो गया और यकायक दर्पण से बोल उठा.. ए दर्पण मेरे थोड़ा वक़्त दे,.. थोड़ा वक़्त दे.. अभी तक मुझे मेरी अंतरप्रेरणा का दीदार तक नहीं हुआ है.. बस एक बार उसका दीदार कर लूँ फिर तेरे सारे इशारों को सहर्ष स्वीकार कर लूंगा... और मानो दर्पण ने मेरी विस्मृति पर कटाक्ष करते हुए मुझे आगाह किया हो कि-"मत भूल दीदार और श्रृंगार के लिए मुकर्रर वक़्त इस जन्म मे नहीं अगले जन्म का है इसलिये अपने आप को बैचैन मत कर..! " इतना सुनते ही मानो मैंने दर्पण से मुख मोड़ लिया और तुमसे मेरे अंतर के द्वन्द बताने चला आया.. क्या तुम भी यह मान चुके हो कि अब मैं उस अवस्था के पायदान चढ़ने लगा हूँ जहाँ से वापस उतरा नहीं जा सकता..? और अगर मेरी देह अपने चरम को पा रही है तो क्या मुझे अपनी अंतरप्रेरणा से मुख मोड़ लेना चाहिए, ये किस अवस्था में आ पड़ा हूँ, क्या अब उसे भुलाना होगा मुझे..? क्या अब उसके रूप लावण्य पर, उसके सौंदर्य पर,उसके मनमोहक स्वरूप पर,स्वभाव पर लिखना अशोभनीय सा लगेगा..? या ऐसा करने से मुझे या उसे कोई क्षोभ हो सकता है...? ना जाने कितने सवाल मेरे अंतर को वेधे जा रहे हैं..! मैं उसे अपने अंतर से कैसे विदा कर पाउँगा कलम...नहीं नहीं मैं तो उसे एक पल भी दूर न कर पाउँगा। तुम तो मेरे पग पग के साथी रहे हो.. तुमसे क्या छिपा है कलम..! मैं तुमसे पूछता हूँ,बस मुझे इतना बता दो मेरी अंतरप्रेरणा मेरी इस बूढ़ी होती देह को देखकर मुझसे दूर तो नहीं हो जायेगी..! वो मेरे पास ही रहेगी ना..? बोलो ना कलम..! मेरे पास..! क्यूंकि मेरे पास केवल वही है जो मेरे जीने का आधार है। ©अज्ञात #कलम
Kusum Nishad
White 💛💛💛💛💛💛 कोई वादा ना कर, कोई ईरादा ना कर, ख्वाइशों मे खुद को आधा ना कर, ये देगी उतना ही जितना लिख दिया खुदा ने, इस तकदीर से उम्मीद ज़्यादा ना कर… !! 💛💛💛💛💛💛 ©Kusum Nishad #Sad_Status कलम की ताकत हूं मैं कलम मेरी पहचान Sethi Ji Niaz (Harf) Alpha_Infinity Anshu writer
#Sad_Status कलम की ताकत हूं मैं कलम मेरी पहचान Sethi Ji Niaz (Harf) Alpha_Infinity Anshu writer #Life
read moreK L MAHOBIA
White झुलसती धरती दौषी कौन धरती को स्वर्ग बनाने वालों,इससे जीवन को खतरा है। तपती धरती गर्मी देखो भस्मासुर सा जलता दोषी कौन? विकसित नगर बनाने वालों ,दरख्त आज मिटाने वालों जीवन जाए बनके स्मृतियां चुप क्यों बैठे हो साधे मौन? धारा हुई गरम अब तुम देखो, झुलसा फिर जगमानव है। काट काट कर नग्न नाच रहा बना आप खुद से दानव है। आग लगी धरती पर देखो, झुलस रहा घिर जनजीवन है। कब जाकर अब ये ठहरेगा बना भस्मासुर खुद जीवन है। पशु पक्षी का जीवन बूंद बूंद जल को तरस रहा ये देखो। आग लगी धरती पर सिकता सुखी नदियां यह भी देखो। कल कल करती नदियों झरनों संगीत प्रकृति ने खोया है। घट रही प्राणवायु ये मानस धरती पर प्राणों हित रोया है। घटती जीवन की सांसें कितने कोरोना रोग फिर जन्मेंगे। नहीं रुक तुम देखो जीवन के लिए पल-पल फिर तड़पेंगे। विकसित नगर बनाने वालों , दरख्त आज मिटाने वालों वायु पानी माटी और ध्वनि पर मंडराता जीवन खतरा है। पोषण आहार विकार हृदयाघात विषाक्त पौन रुके सांस। धरती मरघट रेती बंजर भूआपदा पहाड़ो में बाढ़ विनाश। रोटी पानी कपड़ा प्रकृति संसाधन घटते भस्मासुर कौन? जीवन जाए बनकर स्मृतियां चुप क्यों बैठे हो साधे मौन? के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #दिल की कलम से:- के एल महोबिया
Khan Sahab
किस्मत के खेल से निराश नहीं होते जिंदगी में कभी उदास नहीं होते, अपने हाथों की लकीरों पर यकी मत करना किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते..! ©Khan Sahab दिल की कलम से
दिल की कलम से #Shayari
read moreSarkaR
कलम हमारी चलती है करीबी दुनिया देख कर। ज़ालिम दुनिया ने हमे ही किरदार बना दिया। ©SarkaR #कलम