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Manmohan Dheer
प्रश्न संकोच में रहे उत्तर विभ्रम में पड़े विवेक लुप्त हुए विभ्रम : शक़, भ्रांति संदेह संकोच : hesitation लुप्त : गुम होना, lost विवेक : discretion बुद्धि समझ विभ्रम
Abhishek Yadav
तुम सत्य खोजते फिरते हो, बाहर का कुछ भी पता नही, अंदर ही बैठे रहते हो, तुम साकार, जगत साकार, निराकार कुछ हो तो कहो, साकार बिना जाने ही प्यारे, निराकार बने तुम फिरते हो, बाहर का छप्पर उड़ता जाता, तुम भीतर की बल्ली पकड़े हो, बाहर उड़ता है तिनका तिनका, तुम भीतर भीतर रहते हो, घट खाली या भरा हुआ है, जल भीतर है या बाहर, तुम भीतर से नाटक करते, बाहर जाने से डरते हो, नदियाँ बहती ताल तलैया, सागर बहता है भीतर ही, तुम तो नदी हो बाहर वाले, खुद सागर के भ्रम में रहते हो, जबतक तुम कुछ सोच हो पाते, ब्रह्मांड अनेकों बन जाते हैं, तारों का तुमको पता नही कुछ, ब्रह्मांड समेटे फिरते हो, समझ सको तो बाहर समझो, भीतर तो सब नासमझी है, बाहर खाली हाथ तुम्हारे, भीतर से जकड़े रहते हो, अपने तल का पता नही कुछ, करते हो दूजे तल की बात, जिसका तल है उसे पता है, अंतरतल का नाटक करते हो, पहले बाहर सुनना सीखो, सीखो साकार, रूप सौंदर्य, जो कीड़ों के पदचाप हो सुनता, तुम उसकी बातें करते हो, निराकार देखा है तुमने, कृति साकार, प्रतिकृति निराकार, कृति का अता पता नही कुछ, प्रतिकृति में गूँगे रहते हो, साकार तुम्हारा भ्रम है प्यारे, पर निराकार तो विभ्रम है, पहले भ्रम, फिर विभ्रम के पार, पर तुम!असमंजस में रहते हो, तुम साकार, जीवन साकार, निराकार तो प्रियतम है, साकार बने गोता तुम मारो, क्यों असत्य में रहते हो? -✍️ अभिषेक यादव तुम सत्य खोजते फिरते हो, बाहर का कुछ भी पता नही, अंदर ही बैठे रहते हो, तुम साकार, जगत साकार, निराकार कुछ हो तो कहो, साकार बिना जाने ही प्यार
Sagar vm Jangid
अगर मैं रावण होता तो जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् #dashhara #ravan जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण