Nojoto: Largest Storytelling Platform

New व्यवहार की प्रकृति Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about व्यवहार की प्रकृति from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, व्यवहार की प्रकृति.

SohrabAlam

किसी का व्यवहार आपके ऊपर निर्भर करता है 💯✅

read more

Ashutosh Mishra

Jyoti

#leafbook # प्रकृति🌿🍃

read more
Unsplash  जब आप प्रकृति🌿🍃से सच्चा करते हैं, 
तो आप को दुनिया की
हर जगह खुबसूरत लगेगी।

©Jyoti #leafbook # प्रकृति🌿🍃

Lili Dey

व्यवहार

read more
आपके व्यवहार बहत महत्वपूर्ण
 होता है आपके जीवन में,
क्यूं की आपके व्यवहार सुनिश्चित करते हैं 
की आपका व्यक्तित कैसा है...

©Lili Dey व्यवहार

neelu

#love_shayari हम #क्या #सिखते हैं यह तो हमारी #सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....

read more
White हम क्या सिखते हैं
 यह तो हमारी 
सीखने की प्रकृति पर निर्भर करता है 
पर लोग हमें सिखाने ही आते हैं....

©neelu #love_shayari हम #क्या #सिखते हैं
 यह तो हमारी 
#सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है 
पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....

Dinesh Sharma Jind Haryana

प्रतिभा ईश्वर से मिलती है 
ख्याति समाज से मिलती है
पर हृदय में स्थान
अपने व्यवहार से मिलती है

©Dinesh Sharma Jind Haryana #व्यवहार

नवनीत ठाकुर

White दरख्त काट के हमने शहर बसाए,
अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है।

दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं,
हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है।

जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं,
फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है।

 हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा,
हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है।

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति

Vinod Mishra

"खुशी मानव की अपनी प्रकृति है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन ✍️

read more

Ghanshyam Ratre

प्रकृति की सुंदरता

read more

नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

read more
जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile