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Archana Deshpande-Pol
तुझ्या माझ्या गं दुःखाची जात वेगळी गं बाई.. तुझ्या ओटीत चांदणे माझ्या निखारे गं सई.. तुझ्या पायी मखमल मऊ मऊ रेशमाची.. माझ्या पायी काटेकुटे माझी वाट गं उन्हाची.. तुझे दुःख मखमली त्याला फुंकरीचे गाणे.. माझे दुःख काळजात त्याचे अश्रूंत भिजणे. तुझ्या वेगळ्या जाणीवा त्याला झालर सोनेरी.. माझ्या जाणीवांची बयो सय डोळ्यात उन्हेरी.. तुझ्या दुःखाच्या सोबत गार फुंकरीचा वारा.. माझ्या सोबतीला सये संग उन्हाचाच सारा.. हसरे दुःख
Ek villain
कवि बनारस दास का आत्म चरित्र का नाटक को हिंदी भाषा की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है हिंदी में यह प्रचलित रहा है कि एक दौर में बादशाहों के जीवन चरित्र लेखन की प्रथा तो थी मगर प्रजा के लिए अपना आत्म चरित्र लिखना एक अनोखी घटना थी यह भी माना जाता है कि बनारस रात के 3:00 मुगल बादशाह अकबर जहांगीर और शाहजहां का राज्य काल देखा जाए इस दौरान कवि का आत्म चरित्र लिखना और उससे साफ है कि कोली समाज में मान्यता दिलवाना असंभव की तरह बढ़ता जा रहा था इस अर्थ में बनारस दास का अर्ध नाग कथानक किसी भी भारतीय भाषा में लिखा गया पहला प्रमाणिक आत्मचरित्र माना जाता था विद्वान ज्ञान चंद्र जैन ने उसकी इस चरित्र को और बाद में उनकी अनेक कृतियों को आधार बनाकर कभी बनारसी दास की आत्मकथा जैसी संस्कृति का प्राण ने किया यह भी जानना योग्य था कि आज दिनांक तक को एक पहली बार हिंदी जगत में मान्यता दिलवाने के पीछे एक गुमनाम हिंदी सेवी स्वामी नाथूराम प्रेमी ने पहल की थी कि जो ग्रंथ रचनाकार कार्यालय मुंबई से संबंधित है उनके भी अनुरोध पर अर्धना तक प्रकाशित किया गया आजादी के हीरक जयंती वह ऐसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक आत्म चरित्र को पुनर पाठ की तरह देखना आधुनिक ग्रंथ भाषा का विकास का अध्ययन करने के साथ-साथ मुगल काल में शासक वर्ग का प्रचार वर्ग के बीच आपसी संवाद को भी देखना जैसा है यह भी उल्लेखनीय है कि कभी होने के साथ बनारसीदास एक व्यापारी भी थे जिनके परिवार में 3 पीढ़ियों से व्यापार जीविकोपार्जन का साधन था इसलिए आज मैं सहित सामाजिक सेवा कर्म में लिप्त एक आम इंसान की जिंदगी की गाथा का रोचक दस्तावेज आकृति जिस पर शुभम से ज्ञान चंद्र जैन टिप्पणियों पर हम आशा करते हैं ©Ek villain #कवि बनारसी दास का दर्पण की तरह बेबस आत्मचरित्र #Hope
Mahendra Banshi Meghwanshi
दुःख का दुःख दुःख को भी एक दुःख है न जाने क्यों लोगों को मुझसे परहेज है मेरा होना लोगों को बहुत खलता है पर इंसान मेरे ही साये में पलता है सुख की सुनहरी बाते ही भविष्य में मेरे रूप में बदलती है फिर भी दुनिया मुझसे ही जलती है लोगों को मालूम नहीं जिसे वो अभी ख़ुशी समझकर गले लगाते है बाद ये ही मेरी आग में उनको जलाते है इंसान इतनी सी बात को समझता नहीं बिना दुःख के सुख कभी मिलता नहीं मैं एक दुःख हुं और मुझे भी एक दुःख है दुनिया में मेरे बिना कहा सुख है दुःख को भी दुःख है
Samadhan Navale
दु:ख कुणाकुणाच्या जीवनात नाही दुःख ? कुणाकुणाच्या जीवनात नाही सुख ? हिंडलो वणवण त्या सुखासाठी तरी येते दु:ख माझ्या पाठी, नाही क्षणाचाही विसावा मला न मिळाले कधी सुख, जीवनभर फक्त झेलले दु:ख, का प्रत्येक सुखात माझ्या.. देत असते दखल दु:ख ? जीवनात करायचे काही खास हाच मनी धरुनी ध्यास.. गेलो मी सोडून घरास, तिथेही मज स्वार्थापायी..दिलेले सर्वांनी दु:ख काही माणसांच्या जिवनात नसतेच का हो चांदणे ? जीवनभर त्यांनाच का, लागते उन्हात चालणे ? दु:खात सुख मानुनि निराशेत आशा पाहुनी केलेत खूप प्रयत्न,चुका माझ्या सुधाराया तरीही नाही दुःखाने.. मला त्यागीले सुखाने, तरीही नव्या आत्मविश्वासाने.. पुन्हा चाललो रस्त्याने, मिळेल कुठेतरी उन्हात या थंड सावली रस्त्याने. ©Samadhan Navale #दुःख
R.Laxman
मैंने पूछा पिताजी से– "क्या होता है दुःख का रंग" उन्होंने कहा, दुःख का रंग होता है गहरा नीला, कम उम्र में ब्याही गई बहन ने गुज़रते हुए पास से कहा-"नहीं लाल", उस एक पल में दुःख के तीन रंग थे तीसरा रंग मौन था। ©R.Laxman #दुःख
suresh pawar
गर्दीत माणसांच्या पण मनी एकांत आहे तो विद्रोह करत असावा म्हणून शांत आहे त्यास आहे रडायचे पण अश्रूंच्या साठ्याचा पडला आकांत आहे दुःख दाबून आतल्या आत म्हणतो निवांत आहे सुरेश #दुःख
Dev singhaniya
😧😧😧 दुख क्या होता है, यह उस व्यक्ति से पूछिए, जिसने भंडारे में एक भी पूरी नहीं पाया हो और उसकी चप्पल खो गई हो ,😁😁😁 दुःख
@Mp.khaqzada
#OpenPoetry जो दुख दे उसे छोड़ दो, मगर जिसे छोड़ दो उसे दुःख ना दो। ***zainu*** दुःख