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Yusufi Media
ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है ©Yusufi Media ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है #YusufiMedia #islamicpost #viralpost
ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है #YusufiMedia #islamicpost #viralpost
read moremeri_lekhni_12
Unsplash मुझको तेरा आना जाना अच्छा लगता था, हर पल तेरा साथ निभाना अच्छा लगता था। चुपके से आकर जब तू हंस देता था मुझ पर, तेरा यूँ दिल को बहलाना अच्छा लगता था। तेरी बातें, तेरी यादें, तेरे शिकवे ग़म, हर लम्हा तेरा आजमाना अच्छा लगता था। रूठ के जाना, फिर खुद ही लौट के आना, तेरा हर अंदाज़ पुराना अच्छा लगता था। अब तन्हा है पूनम यादें महका करती हैं, बीता हर एक वो अफसाना अच्छा लगता था। ©meri_lekhni_12 आना जाना ♥️
आना जाना ♥️
read moreUrmeela Raikwar (parihar)
New Year 2025 क्या लाया था क्या ले जायेगा, जैसे वो आया था क्या तू भी जायेगा. Urmee ki Diary ©Urmeela Raikwar (parihar) #Newyear2025 आना जाना
#Newyear2025 आना जाना
read moreShakeel Jaan
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आजा कि अभी जब्त क मौसम नही गुजरा। आजा कि पहाड़ी पर अभी बर्फ जमी है खुशबू के जजिरो से महक रहा है जमाना सारा इस शहर में सब कुछ है बस तेरी कमी है ©Shakeel Jaan आ जा 💝
आ जा 💝
read moreअनिल कसेर "उजाला"
White प्यार में जीना और मर जाना है, जग में रंग प्रेम का भर जाना है। निकले हैं 'उजाला' हम कमाने को, लौट कर फिर हमें तो घर जाना है। ©अनिल कसेर "उजाला" घर जाना है।
घर जाना है।
read more- Arun Aarya
Unsplash मेरे ख़ुश होने पर तुम्हारे उदासी का आना ! अगर है यही दोस्ती , तो मुझें भूल जाना..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #lovelife #भूल जाना
Rameshwar Shingade
New Year 2025 aap sab ko meri taraf se Happy New year badhai ho 2025 ©Rameshwar Shingade #Newyear2025 आ
मनोज कुमार झा "मनु"
दिसंबर का महीना तुम्हीं आकर के अब बचा लो मुझे, बहुत कम बचा हूं दिसम्बर की तरह।। ©मनोज कुमार झा "मनु" #december तुम्हीं आ जाओ
#december तुम्हीं आ जाओ
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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