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Monika Suman
खफा हो ज़ाते है अक्सर मुझसे लोग, तुमसे मेरी बढ़ती नजदीकियाँ देखकर ... ज़िन्हे भी लगता हैँ मैं सिर्फ अपनी कहती हुँ , वो इन किताबो से पुछे , मैं अक्षर तो क्या , कौमा , पुरनविराम , हर एक हल्फ तथा दो शब्दो, दो वाक्यो , दो कहानियों के बीच खाली पड़े पन्ने की भी सुनती हुँ .... ©Monika Suman #ms #monikabijendra
Monika Suman
ये मेरे चेहरे के दरारो से झांकती, जो ज़िन्दगीयां हैं , ये सिर्फ मेरी नहीं , मैं ज़िनसे भी होकर गुजरी , यें उनकी भी बास्तियाँ हैं ... ये जो पुछते हैं मुझसे कि मेरे उजड़ जाने से क्या होगा , कुछ नहीं होगा उनको जो अब यहाँ नहीं रहते , पर ज़िनका ठिकाना अब भी यहीं हैं , गुंजेगी विरानो में रह रह कर जो , उनकी सिसकियां हैं ... फिर बसेंगे लोग उजड़ने के लिए , मैं देखुंगी तमाशा , हजार हाथो से उठाते हुए एक सपने को , चार कांधो पे जाते हुए एक हकीकत के लिए .... ©Monika Suman #ms #monikabijendra
Monika Suman
सोचती हुँ उससे मिलुँगी तो फिर क्या कहुँगी , सारी बाते तो पहले ही तय हो चुकी हैँ... बिछड़ने के शर्त पर मिलना तय हो चुका है और किसी गैर की ज़मी पर बना रही हुँ आशियाँ , उजड़ने के शर्त पर संवरना तय हो चुका हैँ ... ©Monika Suman #ms #monikabijendra
Monika Suman
अपनी ही कहानी में मुझे मेरा किरदार नहीं मिल रहा , मैं देखती हुँ आईना अपना मर्ज़ जानने के लिए , पर आईने के उस तरफ मुझे मुझसा कोई बीमार नहीं मिल रहा ... ©Monika Suman #ms #monikabijendra
Monika Suman
उसे चाहने की शर्त बस इतनी थी की बदले में कुछ नहीं चाहना था , वो मेरे हिस्से में आया भी युँ था कि मुझे सिर्फ उसे , उससे ही बांटना था.. मैं भी चांद को आसमाँ से उतार कर क्या करती , जब अपने अपने हिस्से का सुख दुख खुद ही काटना था उजड़ गई थी कितनी ही बस्तियाँ , उसके महलो के ख्वाब देखकर, मैं खुश हुँ उसकी रोशनदान से आती रोशनी से भी मुझे महलो तक के सफ़र के लिये अपनी बस्ती को नहीं तापना था .... ©Monika Suman #ms #monikabijendra