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Devanand Jadhav
.......... ©Devanand Jadhav #MahavirJayanti अहिंसा परमो धर्म: ...जगाला शांती, अहिंसा व सत्य यांचा मार्ग दाखविणारे भगवान महावीर हे जैन धर्माचे 24 वे तिर्थकार आहेत...त्य
Ankit Singh
“मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं।” ©Ankit Singh मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं #anima
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों करके क्रोध , बोलते हो कटु वाणी । भूल प्रेम व्यवहार , खड़ा करते हो झंझट । आज परीक्षा मान , भूल जाओ सब संकट ।। २२/०३/२०२४ -महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- संकट सम्मुख देखकर , देते आपा खोय । देते फिर भी ज्ञान हैं , राम करे सो होय।। राम करे सो होय , जानते सब है प्राणी । फिर क्यों कर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं , देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु
वंदना ....
हमने रिश्ते को बिगड़ते हुए देखा ....... अपनों को अपनों से झगड़ते हुए देखा ........हमने घरों को उजड़ते हुए देखा हर इंसान को बदलते हुए देखा छल , कपट , खुदगर्जी ............... ...........……इन्हें अपनाते हुए देखा प्रेम , त्याग , इंसानियत को भुलाते हुए देखा ..............…........ पैसा , धर्म , जात ,रंग , भाषा , जमीन ..........…...........इसके लिए इंसान को जानवर होते हुए देखा सच में इंसान को ......................... इतनी नीचे गिरते हुए देखा ©वंदना .... हमारे पूर्वज जो बंदर थे ना ..धीरे-धीरे उनकी बुद्धि डेवलप होती गई ...आज उसका अंजाम हमारे सामने है ....कभी-कभी सवाल आता है . .और भी प्राणी थे
Satish Ghorela
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत मन की गति को रोक न पाये , जो भी इस धरती पे आये । मन के बहकावें में भैय्या , सब कुछ अपना खो के आये ।। मन की गति को रोक न पाये..... मन ये मंथन करता रहता , तेरा मेरा कहता रहता । सोचो इस पे पुनः आप भी , क्यों ऐसे ये बहता रहता ।। ध्यान धरो बस इतना भैय्या , नहीं किसी का आने पाये । मन की गति को रोक न पाये.... गति पवन कि तब अति शीतल है , हो मापदंड पे जो निश्चित । जरा तेज गति में जो बहती , हो जाते सब ही फिर चिंतित ।। इच्छा बनें नहीं सुन इर्ष्या , इतना मन काबू में लाये । मन की गति को रोक न पाये ..... बिजली रानी करे उँजाला , दुबका बैठा है अँधियारा । मौका पाते पैर पसारे , हर प्राणी इससे है हारा ।। करो उजाला वो जीवन में , संसार नहीं जलने पाये । मन की गति को रोक न पाये.... मन की गति को रोक न पाये , जो भी इस धरती पे आये । मन के बहकावें में भैय्या , सब कुछ अपना खो के आये ।। १९/०२/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत मन की गति को रोक न पाये , जो भी इस धरती पे आये । मन के बहकावें में भैय्या , सब कुछ अपना खो के आये ।। मन की गति को रोक न पाये.....
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा:- भर लोटा अर्पण करो , शिवशंभू को नीर । खुश होकर वे एक दिन , हर लेंगे सब पीर ।।१ महादेव के नाम से , होता जग कल्याण । मरते में भी दिख रहे , हम सबको अब प्राण ।।२ जिसको देता कष्ट तू , समझ यहाँ इंसान । उसमें भी तो देख ले , बसते हैं भगवान ।।३ हर जन में सुन देव है , कर प्राणी पहचान । इनको उनको देखकर , भटक नहीं इंसान ।।४ मन से मन का है मिलन , प्यारी है मुस्कान । उसमें अपना ईश है , हुआ अभी अनुमान ।।५ हृदय किसी के घर बना , मिल जाये भगवान । इससे सुंदर है नहीं , जग में कोई स्थान ।।६ अंतिम साँसें तक सुनो , बँधी रहेगी गाठ । वह पल चाहे आज हो , या हो जाये साठ ।।७ देखो खुशियों की कभी, राह न होवें बंद । जीवन भर लेते रहो , जीवन का आनंद ।।८ जीवन भर आनंद लें , जीवन साथी संग । शुभ दिवस ये विवाह का , सदा खिलाए रंग।।९ शुभकामना विवाह की , देते है सब लोग । निशिदिन खुशियों का सदा , बना रहे ये योग ।।१० वैवाहिक शुभकामना , करिये आप काबूल । दिन खुशियों के नित मिले , राह बिछे हो फूल ।।११ मान अनुज अपना मुझे , रखो सदा ही ध्यान । यही विनय करता प्रखर , पाकर तुमसे ज्ञान ।।१२ ०७/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भर लोटा अर्पण करो , शिवशंभू को नीर । खुश होकर वे एक दिन , हर लेंगे सब पीर ।।१ महादेव के नाम से , होता जग कल्याण । मरते में भी दिख रहे ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विधा दोहा :- विषय :-मतदाता दिवस ऐसे क्यों करते रहें , सब तेरा उपयोग । अपने भी अधिकार को , पहचानों सब लोग ।।१ अपने इस अधिकार को , रख लो सभी सँभाल । आयेंगे वह पूछने , तब ही तेरा हाल ।।२ मानव का मतदान पर , सुनो प्रथम अधिकार । जिसकी चाहे आज वह , कर दे यह उपकार ।।३ राजनीति के खेल में , मानव बना विसात । खेल रहे धनवान सब , करके मीठी बात ।।४ धर्म-कर्म को एक पल, रख दे अपनी ताख । जाकर आज टटोल ले, तू भी इनकी साख ।।५ जब तक हक मतदान का , सुन है तेरे हाथ । तब तक मानो ये सभी , हर पल तेरे साथ ।।६ मानव की इस बात से , अब होती पहचान । पीछे देख चुनाव में , क्या इसका मतदान ।।७ सबके नेक चुनाव से , मिले सही सरकार । भूलो मत प्राणी अभी , अपना यह अधिकार ।।८ आप दिवस मतदान का , रखो हमेशा ध्यान । जन-जन को जाग्रति करो , देकर फिर यह ज्ञान ।।९ इनकी उनकी मत सुनो , मन की अपनी मान । जो देता सहयोग हो , दो उसको मतदान ।।१० कम मत होने दो कभी , तुम अपनी यह शान । चाहे इसके ही लिए , दे देना बलिदान ।।११ २५/०१/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा दोहा :- विषय :-मतदाता दिवस ऐसे क्यों करते रहें , सब तेरा उपयोग । अपने भी अधिकार को , पहचानों सब लोग ।।१