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Jitendra Kumar Som
तीसरी पुतली चंद्रकला की कहानी तीसरे दिन जब वह सिंहासन पर बैठने को हुआ तो चंद्रकला नाम की तीसरी पुतली ने उसे रोककर कहा, 'हे राजन्! यह क्या करते हो? पहले विक्रमादित्य जैसे काम करों, तब सिंहासन पर बैठना!' राजा ने पूछा, 'विक्रमादित्य ने कैसे काम किए थे?' पुतली बोली, 'लो, सुनो।' तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है - एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है? पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसको जो भी मिलता है भाग्य से मिलता है। परिश्रम की कोई भूमिका नहीं होती है। उनके विवाद ने ऐसा उग्र रूप ग्रहण कर लिया कि दोनों को देवराज इन्द्र के पास जाना पड़ा। झगड़ा बहुत ही पेचीदा था इसलिए इन्द्र भी चकरा गए। पुरुषार्थ को वे नहीं मानते जिन्हें भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त हो चुका था। दूसरी तरफ अगर भाग्य को बड़ा बताते तो पुरुषार्थ उनका उदाहरण प्रस्तुत करता जिन्होंने मेहनत से सब कुछ अर्जित किया था। इन्द्र असमंजस में पड़ गए और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे। काफी सोचने के बाद उन्हें विक्रमादित्य की याद आई। उन्हें लगा सारे विश्व में इस झगड़े का समाधान सिर्फ वही कर सकते हैं। उन्होंने पुरुषार्थ और भाग्य को विक्रमादित्य के पास जाने के लिए कहा। पुरुषार्थ और भाग्य मानव वेष में विक्रमादित्य के पास चल पड़े। विक्रमादित्य को भी झगड़े का तुरंत कोई समाधान नहीं सूझा। उन्होंने दोनों से छ: महीने बाद आने को कहा। जब वे चले गए तो विक्रमादित्य ने काफी सोचा। समाधान के लिए वे सामान्य जनता के बीच वेष बदलकर घूमने लगे। काफी घूमने के बाद भी जब कोई संतोषजनक हल नहीं खोज पाए तो दूसरे राज्यों में भी घूमने का निर्णय किया। काफी भटकने के बाद भी जब कोई समाधान नहीं निकला तो उन्होंने एक व्यापारी के यहां नौकरी कर ली। व्यापारी ने उन्हें नौकरी उनके यह कहने पर दी कि जो काम दूसरे नहीं कर सकते हैं वे कर देंगे। कुछ दिनों बाद वह व्यापारी जहाज पर अपना माल लादकर दूसरे देशों में व्यापार करने के लिए समुद्री रास्ते से चल पड़ा। अन्य नौकरों के अलावा उसके साथ विक्रमादित्य भी थे। जहाज कुछ ही दूर गया होगा कि भयानक तूफान आ गया। जहाज पर सवार लोगों में भय और हताशा की लहर दौड़ गई। किसी तरह जहाज एक टापू के पास आया और वहां लंगर डाल दिया गया। जब तूफान समाप्त हुआ तो लंगर उठाया जाने लगा। मगर लंगर किसी के उठाए न उठा। अब व्यापारी को याद आया कि विक्रमादित्य ने यह कहकर नौकरी ली थी कि जो कोई न कर सकेगा वे कर देंगे। उसने विक्रम से लंगर उठाने को कहा। लंगर उनसे आसानी से उठ गया। लंगर उठते ही जहाज तेज गति से बढ़ गया लेकिन टापू पर विक्रमादित्य छूट गए। उनकी समझ में नहीं आया क्या किया जाए। द्वीप पर घूमने-फिरने चल पड़े। नगर के द्वार पर एक पट्टिका टंगी थी, जिस पर लिखा था कि वहां की राजकुमारी का विवाह पराक्रमी विक्रमादित्य से ही होगा। वे चलते-चलते महल तक पहुंचे। राजकुमारी उनका परिचय पाकर खुश हुई और दोनों का विवाह हो गया। कुछ समय बाद वे कुछ सेवकों को साथ ले अपने राज्य की ओर चल पड़े। रास्ते में विश्राम के लिए जहां डेरा डाला वहीं एक संन्यासी से उनकी भेंट हुई। संन्यासी ने उन्हें एक माला और एक छड़ी दी। उस माला की दो विशेषताएं थीं- उसे पहनने वाला अदृश्य होकर सब कुछ देख सकता था तथा गले में माला रहने पर उसका हर कार्य सिद्ध हो जाता। छड़ी से उसका मालिक सोने के पूर्व कोई भी आभूषण मांग सकता था। संन्यासी को धन्यवाद देकर विक्रमादित्य अपने राज्य लौटे। एक उद्यान में ठहरकर संग आए सेवकों को वापस भेज दिया तथा अपनी पत्नी को संदेश भिजवाया कि शीघ्र ही वे उसे अपने राज्य बुलवा लेंगे। उद्यान में ही उनकी भेंट एक ब्राह्मण और एक भाट से हुई। वे दोनों काफी समय से उस उद्यान की देखभाल कर रहे थे। उन्हें आशा थी कि उनके राजा कभी उनकी सुध लेंगे तथा उनकी विपन्नता को दूर करेंगे। विक्रमादित्य पसीज गए। उन्होंने संन्यासी वाली माला भाट को तथा छड़ी ब्राह्मण को दे दी। ऐसी अमूल्य चीजें पाकर दोनों धन्य हुए और विक्रम का गुणगान करते हुए चले गए। विक्रम राज दरबार में पहुंचकर अपने कार्य में संलग्न हो गए। छ: मास की अवधि पूरी हुई, तो पुरुषार्थ तथा भाग्य अपने फैसले के लिए उनके पास आए। विक्रमादित्य ने फैस ला दिया कि कि भाग्य और पुरुषार्थ एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्हें छड़ी और माला का उदाहरण याद आया। जो छड़ी और माला उन्हें भाग्य से संन्यासी से प्राप्त हुई थीं। उन्हें ब्राह्मण और भाट ने पुरुषार्थ से प्राप्त किया। पुरुषार्थ और भाग्य पूरी तरह संतुष्ट होकर वहां से चले गए। कहानी सुनाकर पुतली बोली- बोलो राजा, क्या आप में है ऐसा न्यायप्रिय फैसला देने की दक्षता और अमूल्य वस्तुएं दान में देने का ह्रदय और सामर्थ्य? राजा फिर सोच में पड़ गए और तीसरे दिन भी सिंहासन पर नहीं बैठ सके। चौथे दिन चौथी पुतली कामकंदला ने सुनाई विक्रमादित्य की दानवीरता की कथा। ©Jitendra Kumar Som #happyholi तीसरी पुतली चंद्रकला की कहानी
Jyoti Nawhal
इसकी खूबसूरती वो भी नजाकत में लिपटी सी नजाकत भी मासुमियत से लबरेज सी और इसकी मासुमियत रूहानियत की गुलाम सी #देवी
Rajat N Bharadwaj
*देवी मेरो घरको देवालमा टासिएकी ,, माँ भगवतिको ठुलो तस्वीर हेर्दा म सोचने गर्थे दुर्गा शक्तिशाली छन जब बर्षको दुई चोटी दशै आउथो अनि म तिन दिन सम्म जय दुर्गा गाउथे मलाई लाग्थो साचै दुर्गानै सबै भन्दा ठुली हुन । तर ,,, यो संसारमा दिउसो घाम उदाउदा ति तारा अनि जुन विलाए जस्तै ,,,,, देवी पनि चोउथो दिन फुल पाति हुदि रछि म बड़दै ग्ए यो संसार देख्दै ग्ए ,,, मानो जो देखिन्छ तो कहिलै साचो हुदैन देवी पुजने पुजारीत आफ्नी देवीलाई बुजदैन । अनि म चै बुजदै ग्ए कुरा केचै रछ मानो मासु खान खसी घरमा पाले जस्तै सायद देवीलाई लुटनै देवी पुजीने गर्दा रछुम हामी ! तिमि भगवती स्वरुप भनि घरकि देवीलाई तीन दिने पुजा गरि माँ भगवतीलाई देवीकै अस्मिता लुटन खोज्दा रछुम हामी। ✍🏻रजत भारद्वाज देवी
maher singaniya
देवी में देवी तो कहलाती हूं, पर कोख में मारी जाती हूं मां अगर बचाती है, तब दुनिया में आती हूं। फिर दुनिया में आते ही चैन कहा में पाती हूं सड़कों में हर गलियों में नोच कर खायी जाती हूं। में देवी तो कहलाती हूं पर कोख में मारी जाती हूं। हूं तो में छोटी बच्ची पर बहुत सताई जाती हूं सहेती हूं में जुल्म तमाम और बहोत रुलाई जाती हूं मां अब ना मुझे बचाना तुम, न कोख से बाहर लाना तुम। में देवी तो कहलाती हूं पर नोची खायी जाती हूं। ©maher singaniya देवी...
Bhairav
🔯 ब्रम्हचारणी देवी 🔯 📿बीज मंत्र📿 ह्रीं श्री अम्बिकाये नमः shraddhaabhaktee90@gmail.com 🌸 माता ब्रम्हचारिणी स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है... 📿 संयम,तप,वैराग्य,तथा विजय प्राप्ति की दायिका है....🚩 💐🤝🏻💐 राधे-राधे shraddhaabhaktee90@gmail.com #देवी