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Parasram Arora
जीवन मे हमारे कई दुख वृहदआकार क़े होते है जो हमें रुलाते भी हैँ उलझाते भी है लेकिन ज्यादातर दुख सूक्ष्म रूप मे ही आते है जो रुलाते तो नहीं लेकिन क्रोध और तनाव आदि को आने से रोक नहीं पाते. हैँ जैसे दाल चावल खाते हुए मुँह मे कंकड़ का आ जाना........ रोटी क़े किसी निवाले मे गृहणी क़े बाल का आ जाना...... या फिऱ दाल सब्जी मे नमक का ज़्यदा होना और कभी कभार किसी उत्पाती मच्छर की मृत देह का किसी तरी वाली सब्जी मे आ जाना... इन लघु दुखों क़े लिए हमें कई बार वृहद ग़ुस्से को देखा जा सकता है और फलस्वरूप परोसी हुई थाली को उठा कर फैंक देने. का प्रतिकार भी हमसे हो जाता है ©Parasram Arora दुखों की संरचना........
Rakesh Kumar Dogra
हम केन्द्र में है दिल्ली-वासी कोई बतलाएगा कि "हमें कौन सी सरकार चलाती है" चलाना=बनाना
Sanjeev gupta
ना जाने वो कौनसा पल था दस्तक हुई उनकी इस विरान दिल में महक गई सांसें बहक गया मन चांदनी बिखर गई सारी महफिल में रेशम से बाल उस पर सुर्ख गाल गोता लगा रहे थे देखते ही देखते उनकी नशीली नैनों की झील में नर्म गुलाबी होठों का कंवल सा खिल जाना उस पर उनके चमकते दांतों का बतियाना गजब ढा गया अनजान बन जिंदगी में आना नशा उनको कहें या कहें शराब को दोनों का ही काम अपना महबूब बनाना महबूब बनाना
Praveen Jain "पल्लव"
#IndiaFightsCorona पल्लव की डायरी मिटाकर सब जज्बा शान खो बैठे है कोरोना के चक्रव्यूह में आन भारत की खो बैठे है साजिशों के ताम झाम से कत्ल करने के पैगाम दे बैठे है झूठ की बुनियाद पर दर्द की संरचना रच बैठे है स्टैंडर वर्ल्ड हेल्थ के अपनाकर जहर डोजो का देकर लाशो का सौदा कर बैठे है ईमान धर्म गया भाड़ में जीने का जज्बा जनता से छीन बैठे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" दर्द की संरचना रच बैठे है #IndiaFightsCorona
Esther
#OpenPoetry बनना और बिखरना ,कभी ईश्क से पूछीएगा , जो हर बार उठ के खडे होने की हिम्मत रखता है।। बनाना और बिखरना