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Pushpendra Kumar Tiwari
अमलतास उन्ही पुरानी मेढ़ पर बैठकर, निहारता हूं अमलतास के पेड़ो को जहाँ से ढलते शाम के सूरज को निहारता था। पीले-पीले फूलों से लदी लंबी लंबी डालियां मन को उल्लसित करती थी कभी। अभी पतझड़ है घास का रंग मटमैला है फिर भी दूर उँचे टिल्हो पर सिना ताने खड़ा है अमलतास का वह पेड़। दूर झूरमूट में तितर फूदक रहे हैं उन्हें भी मेरे जैसा वसंत का इंतजार है शायद। महुए के पेड़ पर पंछियों के चहचहाने से आकाश गुंज रहा है दिन भर के सफर के बाद सूरज से छितिज के आलिंगन का यह उत्सव है या है अपनों से मिलने की खुशी। जी चाहता है दूर तक फैले इन मेंढ़ों के जाल को समेट लू इन आँखो में जिस पर दूर से पीपल और खजूर के टहनियों से छनकर धूप छिटक रहा है। मै और मेरा अमलतास वसंत के इंतजार में।। ©Pushpendra Kumar Tiwari अमलतास #think
Mo k sh K an
तितलियाँ इतरा कर कभी, बेबाक हो कर फूलों से ख़फा हो बैठी फूल मुस्कुराए और खुश्बू बिखेर दी अमलतास की तासीर में बस मुहब्बत होती है #NojotoQuote अमलतास #hindinama #kavishala #nidhu#amaltash
Raj Bhandari
अमलतास मगर है मुझे पूरा विश्वास कि अबके आएगा, खिला है खूब अमलतास कि अबके आएगा !
Vini Patel
मेने मेरे सर से पूछा :- सर इन्सान को बदलना हैं तो केसे बदले? सर ने कहा:- इन्सान अनुभव से बदलता है। मेने कहाँ:- सर इन्सान चाहे तो वो अच्छे पुस्तक पढ़ने से भी बदल सकता है। पुस्तक।
कवी - के. गणेश
आयुष्य वाचलेल्या पानासारखं आठवणींनी मनात भरावं.. आपण संपलो तरीही आपलं अस्तित्व उरावं..! पुस्तक..
Bharat
कभी वो मेरे पास आने से कटराती थी आज तो वो हमेशा मेरे संग को बतलाती है क्योकि मैने मन से उसको अपना बनाया था कभी उसको मैने अपनी सांस समाया था जब से मैने उसको अपने कर में थामा है तब से इस जहां ने मुझे संग से जाना है रात-रात भर उसके संग में बतियाता हूँ समय आने पर उसको में हथियाता हूँ पुस्तक
Sankranti
क्या मैं इतनी बुरी हूं.... पुस्तक सोई पुस्तकालय में बोली इतने दिन चुप रहने के बाद आज वो अपना मुंह खोली मुस्किल से कोई मुझे ले जाता है वो भी रख मुझे टेबल पर सामने मेरे सो जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं एक जगह रखे रखे थक जाती हूं एक बार भी तो वो मुझे खोलकर देख ले इसके लिए तरस जाती हूं जब वो बाहर जाता फोन साथ ले जाता जब वापस आता फोन में लग जाता वो तो मेरा ख्याल ही भूल जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं मददगार..., इतनी काम की हूं फिर भी क्यों लगती बेकार हूं कुछ तो देख मुझे अजीब सी शक्ल बनाते जैसे लिखा हो मुझमें ऐसा कुछ जिसे देख वो डर जाते क्या मैं इतनी बुरी हूं.... ©Sankranti #पुस्तक