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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#Sad_shayri खुदाया तेरी ये दुनियां भी उकता गई हैं,के*जुल्मते _गिरफ्त से घबरा गई है//१ *घोर अन्धकार की पकड़ क्या उफ्फ करूँ,और क्या आह भरूं,बि #shamawritesBebaak

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- आर्यावृत संविधान है देखा । जनता करती सम्मान है देखा ।।१ तुमने तुर्की जपान है देखा । पर मैने हिन्दुस्तान है देखा ।।२ अपना भारत है इक #शायरी

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ग़ज़ल :-
आर्यावृत संविधान है देखा ।
जनता करती सम्मान है देखा ।।१

तुमने तुर्की जपान है देखा ।
पर मैने हिन्दुस्तान है देखा ।।२

अपना भारत है इक ऐसा भारत ।
जिसमे नेता महान है देखा ।।३

इस पत्थर दिल की नगरी में हमने ।
बनते उसको इंसान है देखा ।। ४

हिन्दू करता मूरत की पूजा तो ।
पढ़ता मुस्लिम अज़ान है देखा ।।५

उनका ये बढ़ता प्रेम ही जग में ।
हर मुश्किल का निदान है देखा ।।६

होली औ ईद दीवाली पर भी ।
रखते वे सबका ध्यान है देखा ।।७

 २५/०१/२०२४  --   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
आर्यावृत संविधान है देखा ।
जनता करती सम्मान है देखा ।।१

तुमने तुर्की जपान है देखा ।
पर मैने हिन्दुस्तान है देखा ।।२

अपना भारत है इक

Aparna Pathak

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- हाथ आते नही निवाले हैं । दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१ आज बाज़ार हो गये मँहगें । रूल सरकार के निराले हैं ।।२ किसलिए आप खोजते इंसा । #शायरी

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White ग़ज़ल :-
हाथ आते नही निवाले हैं ।
दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१
आज बाज़ार हो गये मँहगें ।
रूल सरकार के निराले हैं ।।२
किसलिए आप खोजते इंसा ।
भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३
आप जिनपे किए यकीं बैठे ।
लोग दिल के वो कितने काले हैं ।।४
सच के होते नही नुमाये भी।
इस लिए सब लगाये ताले हैं ।।५
खामियां पा दहेज में अब वह ।
पगडिय़ां देख लो उछाले हैं ।।६
राम के नाम से यहाँ सब ही ।
पा रहे आज सब  उजाले हैं ।।७
राम का नाम ही भजो सारे ।
क्या हुआ जो जुबाँ पे छाले हैं ।।८
चोट खाकर प्रखर वफ़ा में भी ।
दिल को अपने अभी सँभाले हैं ।।९
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
हाथ आते नही निवाले हैं ।
दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१
आज बाज़ार हो गये मँहगें ।
रूल सरकार के निराले हैं ।।२
किसलिए आप खोजते इंसा ।

shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स #shamawritesBebaak

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- गीत हम पे कोई लिखो तुम भी । कितनी सुंदर हूँ मैं कहो तुम भी ।।१ पढ़ लिया तुमने चेहरा मेरा । शेर कुछ अर्ज अब करो तुम भी ।।२ चाहते हो अगर #शायरी

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ग़ज़ल :-
गीत हम पे कोई लिखो तुम भी ।
कितनी सुंदर हूँ मैं कहो तुम भी ।।१
पढ़ लिया तुमने चेहरा मेरा ।
शेर कुछ अर्ज अब करो तुम भी ।।२
चाहते हो अगर हमें दिल से ।
ख्वाब मेरे भी फिर बुनो तुम भी ।।३
बढ़ न जाये ये बेकरारी फिर ।
क्यों न आकर कभी मिलो तुम भी ।।४
प्यार में क्यूँ ये दूरियाँ बोलो ।
आज आकर गले लगो तुम भी ।।५
क्यों हो मायूस आज तुम इतना ।
प्यार के नाम खत लिखो तुम भी ।।६
अब न रोना नसीब को लेकर ।
कर्म भी कुछ प्रखर करो तुम भी ।।७

०८/०४/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
गीत हम पे कोई लिखो तुम भी ।
कितनी सुंदर हूँ मैं कहो तुम भी ।।१
पढ़ लिया तुमने चेहरा मेरा ।
शेर कुछ अर्ज अब करो तुम भी ।।२
चाहते हो अगर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- नज़्म हम आपसे उठाते हैं । आपको देख मुस्कराते हैं ।।१ #शायरी

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ग़ज़ल :-
नज़्म हम आपसे उठाते हैं ।
आपको देख मुस्कराते हैं ।।१
आज बरसो हुए लिए फेरे ।
गिफ्ट तुमको चलो दिलाते हैं ।।२
प्यार कब बाँटते यहाँ बच्चे ।
प्यार तो और ये बढाते हैं ।।३
हाथ जब भी लगा तेरे आटा ।
रुख से लट तब हमीं हटाते हैं ।।४
जब भी आयी विवाह तारीखें ।
घर को खुशियों से हम सजाते हैं ।।५
घर के बाहर कभी न थी खुशियाँ ।
सोचकर शाम घर बिताते हैं ।।६
दीप बुझने न दूँ मुहब्बत का ।
नाम का तेरे सुर लगाते हैं ।।७
है खुशी का महौल घर में अब ।
बच्चे किलकारियां लगाते हैं ।।८
हाथ मेरा न छोड देना कल ।
जी न पाये प्रखर बताते हैं ।।९
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


नज़्म हम आपसे उठाते हैं ।

आपको देख मुस्कराते हैं ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- तुम्हें दिल की धड़कन बना लूँ । न देखे कोई मैं छुपा लूँ ।।१ सजा कर तेरी माँग को मैं । तुम्हें दिल की रानी बना लूँ ।।२ दफन कितने अरमान द #शायरी

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White ग़ज़ल :-
तुम्हें दिल की धड़कन बना लूँ ।
न देखे कोई मैं छुपा लूँ ।।१
सजा कर तेरी माँग को मैं ।
तुम्हें दिल की रानी बना लूँ ।।२
दफन कितने अरमान दिल में ।
ठहर तो जरा मैं मिटा लूँ ।।३
बुरा ही कहेगा जमाना ।
अगर गोद में जो उठा लूँ ।।४
खिलेंगे सुमन भी चमन में ।
कदम इश्क़ में जो बढ़ा लूँ ।।५
इजाजत हमें तुम अगर दो ।
नज़र से नज़र मैं मिला लूँ ।।६
प्रखर हर्ज तुमको नहीं तो ।
उसे देख कर मुस्कुरा लूँ ।।७

२२/०४/२०२४  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
तुम्हें दिल की धड़कन बना लूँ ।
न देखे कोई मैं छुपा लूँ ।।१
सजा कर तेरी माँग को मैं ।
तुम्हें दिल की रानी बना लूँ ।।२
दफन कितने अरमान द

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं । कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१ लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।। न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२ मन #शायरी

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ग़ज़ल :-
वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं ।
कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१
लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।।
न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२
मनाएं उन्हें हम भला आज कैसे ।
जिन्हें आज अपना खुदा जानते हैं ।।३
मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।४
मुझे बस है उम्मीद अपने सनम से ।
कि देना वही इक दुआ जानते हैं ।। ५
न रहता मेरा दिल कभी दूर उनसे ।
मगर लोग सारे  जुदा जानते हैं ।।६
ठहरती नहीं है नज़र उन पे कोई ।
तभी से उन्हें हम बला जानते हैं ।।७
नही प्यार तू उस तरह कर सकेगा ।
वो करना हमेशा जफ़ा जानते हैं ।।८
न पूछो प्रखर तुम हँसी वो है कितना ।
कहूँ सच तो सब अप्सरा जानते हैं ।।९
३०/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं ।
कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१
लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।।
न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२
मन

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल जिसकी खातिर मैं यहाँ फूलों का लेकर हार बैठा । वो छुपाए हाथ में अब देख लो तलवार बैठा ।।१ #शायरी

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White ग़ज़ल
जिसकी खातिर मैं यहाँ फूलों का लेकर हार बैठा ।
वो छुपाए हाथ में अब देख लो तलवार बैठा ।।१
प्यार में जिसके लिए मैं जान तक ये वार बैठा  ।
वो हमें ही देखकर अब देख लो फुफकार बैठा ।।२
फर्ज हमने बाप का कुछ इस तरह से है निभाया ।
कह रही औलाद मेरी वो मेरा सरकार बैठा ।।३
मत हँसों संसार पे रघुनाथ की जयकार बोलो  ।
देखता है वो सभी को जो लगा दरबार बैठा ।।४
जन्म देकर जो हमे संसार के काबिल बनाया ।
मैं उसे ही इस तरह दहलीज से दुत्कार बैठा ।।५
पूछ लो गुरुदेव से वो ही बतायेंगे तुम्हें सच ।
माँ पिता की गोद में तो यह सारा संसार बैठा ।।६
कौन सा वो फर्ज है संतान का तूने निभाया ।
जो प्रखर तू माँगने अब आज है अधिकार बैठा ।।७

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


जिसकी खातिर मैं यहाँ फूलों का लेकर हार बैठा ।

वो छुपाए हाथ में अब देख लो तलवार बैठा ।।१
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