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Vikash Sharma
मन की गहराइयों में, जाने कितनी बार खोया हूं, भीड़ में मुस्कुरा के, अकेले में जाने कितनी बार रोया हूं, तभी तो भावनाओ में बह जाता हूं, दिल को छू ले, अक्सर ऐसी बात कह जाता हूं, ©Dr Vikash Sharma जाने कितनी बार रोया हूं
Rajni Kant Dixit
जिंदगी ना जाने कितनी बार फिसले गी.. बनकर भी रेत की तरह बिखरे गी.. ©Rajni Kant Dixit #PhisaltaSamay #goodeveningpost #जिंदगी ना जाने कितनी बार फिसले गी..
Lokesh Mishra
बड़े बेअबरू होकर वो निकले, खिलोने सा खेले,और डाल दिए कहीं अलग ही डेरे, खेलते, खेलते ना जाने कितने ही बार बदले बेवफा चेहरे, खेलते,खेलते ना जाने कितनी बार बदले बेवफा चेहरे,
mukesh verma
न जाने कितनी बार भूला तुमको न जाने कितनी बार तुझें याद किया न जाने कितनी बार तू मुझसे दूर गई न जाने कितनी बार मैं तेरे साथ जिया न जाने कितनी बार तू ख़्वाब बनी न जाने कितनी बार मैं हक्कीत रहा न जाने कितनी बार दिल को छुआ तुमने न जाने कितनी बार दिल दुःखा दिया न जाने कितनी बार तू मुझमें कैद हुईं न जाने कितनी बार तुझे आज़ाद किया न जाने कितनी बार तू मरी मुझमे न जाने कितनी बार तुझे जिन्दा किया @कुमार मुकेश न जाने कितनी बार-by कुमार मुकेश #nojoto#quotes#मk Satyaprem Mukesh Poonia Internet Jockey Annu Poonia Amit Sharma
Akash Saini
Poetry and you ना जाने कितनी बार तूने हाथ थामकर हाथ छोड़ दिया ना जाने कितनी बार साथ रहने का वादा करके साथ छोड़ दिया दिल दिया हर बार मैंने तुझपे यक़ीन करके ना जाने तूने हर बार क्यो मेरा दिल तोड़ दिया ना जाने कितनी बार तूने हाथ थामकर हाथ छोड़ दिया ना जाने कितनी बार साथ रहने का वादा करके साथ छोड़ दिया दिल दिया हर बार मैंने तुझपे यक़ीन करके
Geeta Sharma
जो पुरुष बात - 2 पर अपनी पत्नी का अपमान करता है, वह स्त्री कुछ मजबूरियों के चलते उसके साथ रहती तो है लेकिन वह उसका त्याग ऐसे कर देती है जैसे मृत शरीर में से आत्मा निकल जाती है , सिर्फ शरीर रुपी मिट्टी रह जाती है । ©Geeta Sharma ### न जाने कितनी बार एक स्त्री अपने आप से हार जाती है , लेकिन फिर भी चलती रहती है थकान के बावजूद ।
परवाज़ हाज़िर ........
" सरकारें आएंगी , जाएंगी , पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए । " - गीत नहीं गाता हूँ बेनक़ाब चेहरे हैं, दाग़ बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ पीठ मे छुरी सा चांद राहू गया रेखा फांद मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ ©G0V!ND DHAkAD #birthanniversaryofABV #atalbihari मैंने जन्म नहीं मांगा था, किन्तु मरण की मांग करुँगा। जाने कितनी बार जिया हूँ
बादल सिंह 'कलमगार'