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Vikas Deep Sharma
Sagar vm Jangid
जेहि पर कृपा करहि जनु जानी! कवि उर अजिर नचावहि बानी!! मोरि सुधारिहि सो सब भांति! जासु कृपा नहि कृपा अघाति!! आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और परीक्षा में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहते हैं तो आपके लिए है यह चौपाई जेहि पर कृपा करहि जनु
~anshul
मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी #पधारो_राम_अयोध्या_धाम #भारत_के_कण_कण_में_राम #जय_श्रीराम 🚩 जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता।। प्रिय राम भक्तों, आपका अभिनंदन, आपको बधाई जय श्री राम! मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी #पधारो_राम_अयोध्या_धाम #भारत_के_कण_कण_में_राम #जय_श्रीराम 🚩
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 19 मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र चलाया ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥ मेघनाद अनेक अस्त्र चलाकर थक गया,तब उसने ब्रम्हास्त्र चलाया-उसे देखकर हनुमानजी ने मन मे विचार किया कि इससे बंध जाना ही ठीक है क्योंकि जो मै इस ब्रम्हास्त्र को नहीं मानूंगा तो इस अस्त्र की अपार और अद्भुत महिमा घट जायेगी ॥19॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाकर रावणकी सभा में ले जाता है ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥ तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥ मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रम्हास्त्र चलाया,उस ब्रम्हास्त्र से हनुमानजी गिरने लगे तो गिरते समय भी उन्होंने अपने शरीर से बहुतसे राक्षसों का संहार कर डाला॥जब मेघनाद ने जान लिया कि हनुमानजी अचेत हो गए है, तब वह उन्हें नागपाश से बांधकर लंका मे ले गया॥ हनुमानजी ने अपने आप को क्यों ब्रह्मास्त्र में बँधा लिया? जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥ तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥ महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! सुनो,जिनके नाम का जप करने से ज्ञानी लोग भवबंधन को काट देते है (जिनका नाम जपकर ज्ञानी और विवेकी मनुष्य संसार अर्थात जन्म मरण के बंधन को काट डालते है)॥उस प्रभु का दूत (हनुमानजी) भला बंधन में कैसे आ सकता है?परंतु अपने प्रभु के कार्य के लिए हनुमान् जी ने स्वयं अपने को बँधा लिया॥ हनुमानजी रावण की सभा देखते है कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥ दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥ हनुमानजी को बंधा हुआ सुनकर सब राक्षस देखने को दौड़े और कौतुक के लिए सब सभा मे आये॥हनुमानजी ने जाकर रावण की सभा देखी,तो उसकी प्रभुता और ऐश्वर्य किसी कदर कही जाय ऐसी नहीं थी॥ रावण की सभा का वर्णन कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥ देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥ तमाम देवता और दिक्पाल बड़े विनय के साथ हाथ जोड़े सामने खड़े उसकी भ्रूकुटी की ओर भय सहित देख रहे है॥यद्यपि हनुमानजी ने उसका ऐसा प्रताप देखा,परंतु उनके मन में ज़रा भी डर नहीं था।हनुमानजी उस सभा में राक्षसों के बीच ऐसे निडर खड़े थे कि जैसे गरुड़ सर्पो के बीच निडर रहा करता है॥ आगे मंगलवार को ....., श्री राम,जय राम,जय जय राम 🙏 विष्णु सहस्रनाम( एक हजार नाम) आज 766 से 777 नाम 766 चतुर्बाहुः जिनकी चार भुजाएं हैं 767 चतुर्व्यूहः जिनके चार व्यूह हैं 768 चतुर्गतिः जिनके चार आश्रम और चार वर्णों की गति है 769 चतुरात्मा राग द्वेष से रहित जिनका मन चतुर है 770 चतुर्भावः जिनसे धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष पैदा होते हैं 771 चतुर्वेदविद् चारों वेदों को जानने वाले 772 एकपात् जिनका एक पाद है 773 समावर्तः संसार चक्र को भली प्रकार घुमाने वाले हैं 774 निवृत्तात्मा जिनका मन विषयों से निवृत्त है 775 दुर्जयः जो किसी से जीते नहीं जा सकते 776 दुरतिक्रमः जिनकी आज्ञा का उल्लंघन सूर्यादि भी नहीं कर सकते 777 दुर्लभः दुर्लभ भक्ति से प्राप्त होने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 19 मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र चलाया ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 20 रावण हनुमानजी की ओर देखकर हँसता है कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥ रावण हनुमानजी की और देख कर हँसा और कुछ दुर्वचन भी कहे,परंतु फिर उसे पुत्र का मरण याद आ जानेसे उसके हृदय मे बड़ा संताप पैदा हुआ॥ हनुमानजी और रावण का संवाद रावण हनुमानजी से उनके बारे में पूछता है? कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥ की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥ रावण ने हनुमानजी से कहा कि हे वानर!तू कौन है और कहां से आया है?और तूने किसके बल से मेरे वनका विध्वंस कर दिया है॥मैं तुझे अत्यंत निडर देख रहा हूँ।क्या तूने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना है?॥ हनुमानजी श्री राम के बारे में बताते है मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥ सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचति माया॥ तुझको हम नहीं मारेंगे, परन्तु सच कह दे कि तूने हमारे राक्षसों को किस अपराध के लिए मारा है?रावण के ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रावण से कहा कि हे रावण! सुन,यह माया (प्रकृति) जिस परमात्माके बल (चैतन्य शक्ति) को पाकर अनेक ब्रम्हांड समूह रचती है॥ श्री राम का बल और सामर्थ्य जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥ जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥ जिसके बल से ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनो देव जगत को रचते है,पालते है और संहार करते है॥और जिनकी सामर्थ्य से शेषजी अपने सिर पर वन और पर्वतों सहित इस सारे ब्रम्हांड को धारण करते है॥ भगवान राम के अवतार का कारण धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥ हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥ और जो देवताओ के रक्षा के लिए और तुम्हारे जैसे दुष्टो को दंड देने के लिए अनेक शरीर (अवतार) धारण करते है॥जिसने महादेवजी के अति कठिन धनुष को तोड़ कर तेरे साथ तमाम राजसमूहो के मद को भंजन किया (गर्व चूर्ण कर दिया) है॥ खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥ और जिन्होने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि ऐसे बड़े बलवाले योद्धओको मारा है॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम आगे शनिवार को...., श्री राम, जय राम, जय जय राम विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 789 से799 नाम 789 कृतागमः जिन्होंने वेदरूप आगम बनाया है 790 उद्भवः जिनका जन्म नहीं होता 791 सुन्दरः विश्व से बढ़कर सौभाग्यशाली 792 सुन्दः शुभ उंदन (आर्द्रभाव) करते हैं 793 रत्ननाभः जिनकी नाभि रत्न के समान सुन्दर है 794 सुलोचनः जिनके लोचन सुन्दर हैं 795 अर्कः ब्रह्मा आदि पूजनीयों के भी पूजनीय हैं 796 वाजसनः याचकों को वाज(अन्न) देते हैं 797 शृंगी प्रलय समुद्र में सींगवाले मत्स्यविशेष का रूप धारण करने वाले हैं 798 जयन्तः शत्रुओं को अतिशय से जीतने वाले हैं 799 सर्वविज्जयी जो सर्ववित हैं और जयी हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 20 रावण हनुमानजी की ओर देखकर हँसता है कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥2