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Anupam Tiwari
छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था... एक नाई, एक मोची,एक काला लुहार था.. छोटे छोटे घर थे,हर आदमी बङा दिलदार था.. कही भी रोटी खा लेते,हर घर मे भोजऩ तैयार था.. दो मिऩट की मैगी ना,झटपट दलिया तैयार था.. नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था.. छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.. अपना घड़ा कस के बजा लेते.. समारू पूरा संगीतकार था.. और फिर कबड्डी खेल लेते,हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था.. दादी की कहानी सुन लेते,कहाँ टेलीविज़न और अखबार था.. भाई -भाई को देख के खुश था,सभी लोगों मे बहुत प्यार था.. छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.....!! छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था... एक नाई, एक मोची,एक काला लुहार था.. छोटे छोटे घर थे,हर आदमी बङा दिलदार था.. कही भी रोटी खा लेते,हर घर
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज ©अरुणशुक्ल अर्जुन #NojotoWriter #internationaldaughtersday विश्व भर के समस्त बेटियों को अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस के शुभ अवसर पर बहुत-बहुत बधाइयां एवं शुभका
विनेश सिंह
#OpenPoetry छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.....!! एक नाई, एक मोची,एक काला लुहार था.....!! छोटे छोटे घर थे,हर आदमी बङा दिलदार था.....!! कही भी रोटी खा लेते,हर घर मे भोजऩ तैयार था.....!! बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे जिसके आगे शाही पनीर बेकार था....!! दो मिऩट की मैगी ना,झटपट दलिया तैयार था.....!! नीम की निम्बोली और शहतुत सदाबहार था.....!! छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.....!! अपना घड़ा कस के बजा लेते.....!! समारू पूरा संगीतकार था.....!! मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते,साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था.....!! और फिर कबड्डी खेल लेते,हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था.....!! दादी की कहानी सुन लेते,कहाँ टेलीविज़न और अखबार था.....!! भाई -भाई को देख के खुश था,सभी लोगों मे बहुत प्यार था.....!! छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.....!! छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था.....!! एक नाई, एक मोची,एक काला लुहार था.....!! छोटे छोटे घर थे,हर आदमी बङा दिलदार था.....!! कही भी रोटी
Divyanshu Pathak
मैं भारतीय जीवनशैली के वैभवशाली इतिहास में यहाँ की मिट्टी और पर्यावरण का विशेष योगदान मानता हूँ।आज हम प्रकृति के सामीप्य का ढोंग तो करते हैं लेकिन हमें ये पता नहीं होता कि ऋतुओं के अनुरूप पथ्य और अपथ्य क्या है?पहला सुख निरोगी काया तो सब जानते हैं। फिर भी भक्ष्य और अभक्ष्य का भेद भुलाकर "स्वाद" के ग़ुलाम हो नए रोगों को निमंत्रण देते हैं। घी- संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं आपको। माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन। "भादवे का घी" भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है। जिसे हम घास कहते हैं। वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ #औषधियाँ हैं। इनमें धामन जो कि गायों को