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जगदीश कैंथला

उपसर्ग,प्रत्यय #बात

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जगदीश कैंथला

उपसर्ग व प्रत्यय #बात

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Prince Singh Rana

मानवता से बढ़कर कुछ नहीं है इस दुनिया में!

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जब कोई दवा काम ना आए तब वह दुआ काम आती हैं... 
धर्म और जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर सोचने का समय आ गया है.. 
इस कठिन समय की घड़ी में हमको सब कुछ भूल कर एक दूसरे की मदद करनी चाहिए..  यही हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य होना चाहिए, अगर हम लोग इस समय एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो हम लोग सिर्फ इतिहास के पन्नों में दबकर रह जायेंगे। 
इसीलिए हम लोगो को एक साथ मिलकर आगे आना होगा और कॉरोना से पूरे मानव सामाज की सुरक्षा का जिम्मा लेना होगा। मानवता से बढ़कर कुछ नहीं है इस दुनिया में!

Rashmi Kumari

#मानवता ही है धर्म #कविता

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मां को जख्मी करें.......
कौन- सा धर्म में लिखा है....... #मानवता ही है धर्म

Aman Deep Pandey

मानवता क्या सिखलाती है

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हम किसी की इतनी भी बुराई ना करे कि उसकी हमे अच्छाई दिखाई ना देl मानवता क्या सिखलाती है

नरेंद्र राजपुरोहित

मानवता के मन मंदिर में

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नरेंद्र राजपुरोहित

मानवता के मन मंदिर में

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Amit Gupta

Poetry : मानवता किताबों में या बातों में

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मानवता किताबों में या बातों में 

हमने पढ़ा, प्रबुद्धों से संदेश पाया,
इंसान ओ जो इंसान के काम आया ।
यहां दीन, दुखी, बेवश को अनदेखा किया,
जब तक कि उसका अंत समय न आया ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में ।
जिसने दुश्मनों से प्रेम करने का संदेश दिया,
मानवों ने उसे कब का स्वर्गवासी बनाया ।
जो मानवता की बात करे, दूर किया या दूरी बनाया,
ऐसे इंसान को कब - कहां - किसने  अपनाया ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में ।
न कोई किसी दुखी का दुख बांटता, 
जिसको देखो ओ बस नश्तर चुभाता ।
हां झूठा दिखावा कर मूर्ख है बनाता,
जरूरत पड़ने पर है असली रूप दिखाता ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में ।
मैंने देखा लोग बारम्बार तमाशाबीन हुए,
झुलसता रहा मानवता, मूकदर्शक प्रवीण हुए ।
फिर झूठे दिलासे और मानवता का बाज़ार हुए,
फरेब का नकाब पहन, समर्थन पुरजोर किए ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में ।
न देखा कभी इंसान को इंसान से मिलते,
जब भी देखा, देखा स्वार्थियों को इंसान बनते ।
यूं कहे तो जरूरत से ही लोग हैं एक दूसरे से मिलते,
वरना ये कभी दूसरों से गलती से भी न मिलते ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में ।
कहते हैं मानव प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है,
पर गर कहूं बिन मानवता सबसे बड़ी विकृति है ।
मानव जन्मे है पर अदृश्य मानवता की प्रकृति है,
करुणा नहीं, हमदर्दी नहीं, क्या यही मानवता की अभिवृत्ति है ।
मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में,
मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । Poetry : मानवता किताबों में या बातों में

Raj Ashiya

मानवता ढूंढ रही है तुम्हें #राज़

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कहीं राष्ट्र कहीं धर्म कहीं जाती में उलझा हुआ हूँ मैं

शायद इंसान हूँ कहीं कतरों में बंटा हुआ हूँ मैं
#राज़ मानवता ढूंढ रही है तुम्हें
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