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DINESH KUMAR MEENA

देसी चोरा चमारा #शायरी #nojotophoto

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 देसी चोरा चमारा

Rajendra Maill

#Sadmusic राजस्थानी चोरा #ज़िन्दगी

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CHAD musicLaxmipura

गुज्जर का चोरा बोले का Bhagat #Mahashivratri2021

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KP EDUCATION HD

जय जय आरती वेणु गोपाला वेणु गोपाला वेणु लोला पाप विदुरा नवनीत चोरा जय जय आरती वेंकटरमणा #Quotes #SunSet

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जय जय आरती वेणु गोपाला

वेणु गोपाला वेणु लोला

पाप विदुरा नवनीत चोरा

जय जय आरती वेंकटरमणा

वेंकटरमणा संकटहरणा

सीता राम राधे श्याम

जय जय आरती गौरी मनोहर

गौरी मनोहर भवानी शंकर

साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर

जय जय आरती राज राजेश्वरि

राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि

महा सरस्वती महा लक्ष्मी

महा काली महा लक्ष्मी

जय जय आरती आन्जनेय

आन्जनेय हनुमन्ता

जय जय आरति दत्तात्रेय

दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार

जय जय आरती सिद्धि विनायक

सिद्धि विनायक श्री गणेश

जय जय आरती सुब्रह्मण्य

सुब्रह्मण्य कार्तिकेय।

©KP TAILOR HD जय जय आरती वेणु गोपाला

वेणु गोपाला वेणु लोला

पाप विदुरा नवनीत चोरा

जय जय आरती वेंकटरमणा

Shashwat Rai

कलम से ✍️ "धक धक धक करत चले ले, बड़की चकिया वाली। पापा हमके बुलेट चाहीं, गोलकी बत्तिया वाली।।" "देख के लइकी मारस सिटी, बीच रोड इतरा के। #Hindi #bihari #yqbaba #हिंदी #bhojpuri #yqdidi #bullet

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पूरा कैप्शन में पढ़ें ........ कलम से ✍️
"धक धक धक करत चले ले,
बड़की चकिया वाली।
पापा हमके बुलेट चाहीं,
गोलकी बत्तिया वाली।।"

"देख के लइकी मारस सिटी, 
बीच रोड इतरा के।

Rupam Jha

गामक वर्णन की करब गाम त होइते अछि अमूल्य(ओना प्रयास केने छी अयि स पहुलका पोस्ट म गांव क वर्णित करै क)मुदा आब बहुत तेजी सँ बहुत किछु बदैल रहल #yqdidi #मैथिली #अनवरत #bestyqhindiquotes #नवरूप #yqmaithili #jhapost #मैथिलीकविता

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कतय हेरायल ढेंगा-पानी आ कतय चोरा-नुकी क खेल,
कतय गेल ओ धप्पा-धुप्पी आ कतय हेरायल पोसम्पा क रेल,
कबड्डीयो नै खेलै आब बच्चा,इ कोन कलजुग भेल,
फोने म खेल ताकी लेलक ,छूटल नेना-भुटका क सँझुका मेल,
कतय चली गेल माटिक चूल्हा परहक भोजन-भात,
ओय भोज्य क वर्णन की करब,अहा!गजबे होय छल स्वाद,
चिनबारक चूल्हा-चेकी बिला गेल,भेल गैस-सिलिंडरक साथ,
विलुप्त भ गेल सबटा संस्कृति,उफ! कतेक नमहर छैक आधुनिकताक हाथ,
डहि गेल सबटा खर क घर,बदैल गेल देहातक हालात,
बड़का-बड़का इमारत बनि गेल,बढ़ि गेल सबहक आब बिसात,
नै जैत अइछ आब कियो कलम-गाछी,नै रहल ओ पहुलका बात,
बूढ़-पुराण सँ लय बच्चा-बुदरुक सब अपने मँ मग्न रहै छैथ,केने रहै छैथ सब क कात,
कोनाक नेनाक हड्डी मजगूत हेतै,जँ नै वो अपन मैट पर लोड़ीयैत,
नून-रोटी क जगह पिज़्ज़ा-बर्गर ल लेलकै,स्वास्थ्य पर होयत अछि वज्रनिपात,
कंसारक चूड़ा-मुरही निपत्ता भेल,फास्ट-फूड लगौने अछि सब पर घात,
खेती-पातीं चौपट भ गेल,बदैल गेल सबटा हालात, 
शहर बनेता गांव क सब मिल,नै जानी की छैन ग्रामीणक जज्बात,
शहर बनबैक सपना त नहिये पुरतैन,धोता गाम सँ सेहो हाथ!! गामक वर्णन की करब गाम त होइते अछि अमूल्य(ओना प्रयास केने छी अयि स पहुलका पोस्ट म गांव क वर्णित करै क)मुदा आब बहुत तेजी सँ बहुत किछु बदैल रहल

atrisheartfeelings

#Sundarkand #Sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #Devotional #GoodMorning मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंक

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मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥
पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥ #sundarkand #sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #goodmorning 

मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंक

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 3 हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरों नि #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 3
हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥
हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंकिनी का प्रसंग और ब्रह्माजी का वरदान
हनुमानजी राम नामका स्मरण करते हुए लंका में प्रवेश करते है
मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥1
हनुमानजी मच्छर के समान छोटा-सा रूप धारण कर,प्रभु श्री रामचन्द्रजी के नाम का सुमिरन करते हुए लंका में प्रवेश करते है॥लंकिनी, हनुमानजी का रास्ता रोकती हैलंका के द्वार पर लंकिनी नाम की एक राक्षसी रहती थी।हनुमानजी की भेंट, उस लंकिनी राक्षसी से होती है।वह पूछती है कि,
मेरा निरादर करके (बिना मुझसे पूछे) कहा जा रहे हो?

हनुमानजी लंकिनी को घूँसा मारते है
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा।
मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥
तूने मेरा भेद नहीं जाना?
जहाँ तक चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं॥
महाकपि हनुमानजी उसे एक घूँसा मारते है,जिससे वह पृथ्वी पर लुढक पड़ती है।

लंकिनी हनुमानजी को प्रणाम करती है
पुनि संभारि उठी सो लंका।
जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा।
चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥3॥
वह राक्षसी लंकिनी, अपने को सँभाल कर फिर उठती है और डर के मारे हाथ जोड़ कर हनुमानजी से कहती है॥

लंकिनी, हनुमानजी को, ब्रह्माजी के वरदान के बारे में बताती है
जब ब्रह्मा ने रावण को वर दिया था,
तब चलते समय उन्होंने राक्षसों के विनाश की यह पहचान मुझे बता दी थी कि॥

ब्रह्माजी के वरदान में राक्षसों के संहार का संकेत
बिकल होसि तैं कपि कें मारे।
तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता।
देखेउँ नयन राम कर दूता॥4॥
जब तू बंदर के मारने से व्याकुल हो जाए,तब तू राक्षसों का संहार हुआ जान लेना।

हनुमानजी के दर्शन होने के कारण, लंकिनी खुदको भाग्यशाली समझती है
हे तात! मेरे बड़े पुण्य हैं,
जो मैं श्री रामजी के दूत को अपनी आँखों से देख पाई।

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 133 से 143 नाम 
133 लोकाध्यक्षः समस्त लोकों का निरीक्षण करने वाले
134 सुराध्यक्षः सुरों (देवताओं) के अध्यक्ष
135 धर्माध्यक्षः धर्म और अधर्म को साक्षात देखने वाले
136 कृताकृतः कार्य रूप से कृत और कारणरूप से अकृत
137 चतुरात्मा चार पृथक विभूतियों वाले
138 चतुर्व्यूहः चार व्यूहों वाले
139 चतुर्दंष्ट्रः चार दाढ़ों या सींगों वाले
140 चतुर्भुजः चार भुजाओं वाले
141 भ्राजिष्णुः एकरस प्रकाशस्वरूप
142 भोजनम् प्रकृति रूप भोज्य माया
143 भोक्ता पुरुष रूप से प्रकृति को भोगने वाले

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 3
हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों नि
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